Jharkhand: दुनियाभर में होगी देवघर के स्वादिष्ट पेड़े की पहचान, खाड़ी देश के लोगों की जुबान पर चढ़ चुका है स्वाद
Deoghar News: देवघर का मशहूर और स्वादिष्ट पेड़ा बहरीन-कुवैत जैसे खाड़ी देशों (Gulf Countries) के लोगों को अपना दीवाना बना रहा है. पेड़े का मौजूदा सालाना कारोबार लगभग 125 करोड़ का है.
Jharkhand Deoghar Peda Global Recognition: झारखंड (Jharkhand) के देवघर (Deoghar) में देश-दुनिया का कोई व्यक्ति आए और उसकी जुबान पर यहां के पेड़े का जायका ना चढ़े, यह हो नहीं सकता. अब यहां का मशहूर और स्वादिष्ट पेड़ा बहरीन-कुवैत जैसे खाड़ी देशों (Gulf Countries) के लोगों को भी अपना दीवाना बना रहा है. 2 महीने पहले इसे इंटरनेशनल मार्केट में बेचने का लाइसेंस हासिल हो गया है. इसे जीआई (ज्योग्राफिल इंडिकेशन) टैग दिलाने के लिए दावेदारी भी पेश की गई है और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इसकी विशिष्ट पहचान को मान्यता मिल जाएगी. आगामी 11 जुलाई को देवघर में नवनिर्मित इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उदघाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के हाथों होने वाला है. जाहिर है, इसके साथ यहां का पेड़ा ऊंची उड़ान भरकर देश-विदेश में कोने-कोने में पहुंचने लगेगा.
हर साल पहुंचते हैं करीब 2 से ढाई करोड़ लोग
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर के ज्योतिर्लिगों में से एक बाबा वैद्यनाथ का धाम देवघर है, जहां हर साल तकरीबन 2 से ढाई करोड़ श्रद्धालु-सैलानी पहुंचते हैं. यहां महीने भर चलने वाला श्रावणी मेला इस बार आगामी 14 जुलाई को शुरू हो रहा है, जिसमें करीब 80 लाख से एक करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है. बाबाधाम पेड़ा ट्रेडर्स एसोसिएशन (बीपीटीए) के एक सदस्य बताते हैं कि श्रावणी मेले के दौरान लगभग 10 हजार टन पेड़े का कारोबार होने की संभावना है. वो इस अनुमान के पीछे सीधा गणित समझाते हैं. मेले में 80 लाख से एक करोड़ लोग पहुंचेंगे. यहां से लौटते वक्त प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में कम से कम एक से लेकर पांच किलोग्राम तक पेड़े भी पैकेट भी जरूर होगा. प्रति किग्रा 280 से 300 रुपये की दर से हिसाब लगाने से यह कारोबार महीने भर में 50 से 60 करोड़ रुपये का बैठता है.
पेड़े ने दिलाई वैश्विक पहचान
श्रावणी मेले के बाद भी साल भर देश-विदेश से श्रद्धालुओं और सैलानियों का यहां आगमन होता है और इनकी बदौलत पेड़े का मौजूदा सालाना कारोबार लगभग 125 करोड़ का है. धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ पेड़े ने देवघर को वैश्विक पहचान दिलाई है. यह देवघर नगर सहित बासुकिनाथ, जसीडीह, घोड़मारा जैसे उपनगरों की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा आधार भी है.
बहरीन और कुवैत भेजा गया पेड़ा
देवघर के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री बताते हैं कि जिला प्रशासन की ओर से बाबाधाम पेड़ा की ब्रांडिंग और इसे इंटरनेशनल मार्केट में प्रमोट करने के लिए बकायदा योजनाबद्ध तरीके से प्रयास किया जा रहा है. इसी कड़ी में झारखंड सरकार की मेधा डेयरी की ओर से यहां उत्पादित पेड़े को इंटरनेशनल मार्केट में बेचने का लाइसेंस प्राप्त हो गया है. बहरीन और कुवैत में पेड़े की खेप भेजी गई है, जिसे बहुत पसंद किया गया है. इंटरनेशनल मार्केटिंग में क्वालिटी पैरामीटर, पैकेजिंग स्पेसिफिकेशन, लॉजिस्टिक अरेंजमेन्ट आदि का विशेष ध्यान रखा जा रहा है. देवघर जिला प्रशासन ने 2 माह पहले पेड़ा कारोबार से जुड़े विभिन्न स्टेक हॉल्डरों के साथ बैठक की थी. इसमें पेड़ा के कमर्शियल शिपमेन्ट एवं सप्लाई के लिए संयुक्त कार्ययोजना बनाई गई है. भारत सरकार की संस्था एपीईडीए (द एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी) भी इसमें मदद कर रही है.
मशहूर है पेड़ा
बाबाधाम के इस प्रसिद्ध उत्पाद को जीआइ टैगिंग दिलाने के लिए चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्रार के समक्ष की गई वैधानिक दावेदारी का कामला नेशनल स्कूल ऑफ लॉ बेंगलुरू के सत्यटदीप सिंह देख रहे हैं. झारखंड की सोहराई-कोहबर पेंटिंग को पिछले साल मिली जीआई टैग का केस भी सत्यदीप सिंह ने ही फाइल किया था. उन्होंने देवघर के पेड़े को लेकर जो डॉक्यूमेंटेशन तैयार किया है, उसके मुताबिक इसका इतिहास 120 वर्षों का है. देवघर के बाबाधाम मंदिर के करीब में ही 3 से 4सौ पेड़ा की दुकानें हैं. देवघर से कोई 20-22 किलोमीटर दूर बासुकीनाथ के रास्तें में घोड़ामारा का पेड़ा सबसे ज्यादा मशहूर है, यहां पेड़े की कोई 5-6सौ दुकानें हैं.
जानें दिलचस्प बात
देवघर के स्थानीय पत्रकार सुनील झा ने बताया कि यहां सुखाड़ी मंडल की 100 साल पुरानी दुकान है. वो शुरुआत में चाय और पेड़ा बेचते थे. उनकी दुकान मशहूर हुई तो इस नाम से कुछ और भी दुकानें खुल गई हैं. खोए और गुड़ से बनाया जाने वाला यहां का बढ़िया पेड़ा 10 से 12 दिनों तक बगैर रेफ्रिजरेशन के भी सुरक्षित और खाने के लायक रहता है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि बाबा वैद्यनाथ के मंदिर में पेड़ा प्रसाद के रूप में नहीं चढ़ता, लेकिन श्रद्धालु यहां से प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से पेड़ा ही लेकर लौटते हैं. दरअसल पेड़े में बाबा मंदिर में चढ़ाया जाने वाला नीर मिलाया जाता है और इसी वजह से इसे बाबा का महाप्रसाद माना जाता है.
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