Jharkhand: एक सपने की वजह से बची जान, जानें- 4 दिनों तक कोयले की खदान में फंसे मजदूरों के जिंदा बच निकलने की दास्तान
Jharkhand News: बोकारो में कोयले की खुदाई करते समय अचानक चाल धंसने से 4 लोग खदान में फंस गए थे. जमा गंदा पानी पीकर इन चारों ने खुद को जिंदा रखा और खदान से बाहर निकलने में कामयाब हुए.
Jharkhand Bokaro Parvatpur Coal Block: झारखंड (Jharkhand) के बोकारो (Bokaro) जिले में 4 लोग तकरीबन 90 घंटे तक कोयला खदान (Coal Block) की एक ऐसी सुरंग में फंसे रहे, जहां उन्हें ना तो खाना मयस्सर था और ना ही सूरज की रोशनी. खदान में जमा गंदा पानी पीकर इन चारों ने खुद को जिंदा रखा. चारों खदान से कैसे बाहर निकले ये जानना भी बेहद दिलचस्प है. खदान में फंसे एक मजदूर अनादि सिंह का कहना है कि, 'सुरंग में फंसने के बाद उन्हें परिवार याद आ रहा था, मौत सामने खड़ी थी, रोना भी आया लेकिन खदान में जमा गंदा पानी पीकर खुद को जिंदा रखा. अनादि बताते हैं कि, इस बीच आशा की किरण तब नजर आई जब उन्हें कहीं से हवा का झोंका महसूस हुआ.'
सपने में देखा निकलने का रास्ता
अनादि ने बताया कि 'वो और उनके साथी 2 दिनों तक एक ही स्थान पर रहे, वो ऊपर से गिरते पत्थरों की आवाज को साफ सुन सकते थे. अनादि कहते हैं कि, भूख के कारण पेट में ऐंठन होने लगी थी और समय बीतने के साथ ही सारी समझ भी खोती जा रही थी. उन्होंने बताया कि इसी दौरान उन्होंने महसूस किया कि कहीं से हवा आ रही है, जिसने उनकी जिंदा बचने की आशाओं को जगा दिया. अनादि ने कहा कि, इसके बाद वो सो गए और सपना देखा जिसमें एक निकास मार्ग दिखाई दिया. उन्होंने कहा कि वो इस रास्ते के बारे में जानते थे लेकिन पहले निश्चित नहीं थे, अगले दिन, उस रास्ते से बहुत देर तक चले और बाहर आ गए.'
हमारे पास कोई विकल्प नहीं
तिलाटांड़ गांव की आबादी लगभग 1500 है और यहां के अधिकांश परिवार खेती और दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं. अनादि बताते हैं कि 'जब से 2008 में खदानें बंद हुई तो उसके बाद हम अपने घरों में खाना पकाने के लिए ईंधन लेने के लिए वहां जाते थे. हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, पैसा भी नहीं है. आपको क्या लगता है कि हमने अपनी जान जोखिम में क्यों डाली?' अनादी ने कहा कि 'उनके 6 सदस्यों के परिवार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रति व्यक्ति केवल 5 किलो चावल मिलता है'. उन्होंने कहा कि, 'एक बार किसी ऐसे व्यक्ति ने धोखा दिया था, जिस पर उन्हें भरोसा था, पीएम आवास योजना का लाभ उन्हें नहीं दिया गया.'
याद आ रहा था परिवार
कोयले की खदान से जीवित बाहर निकले एक और मजदूर लक्ष्मण रजवार ने बताया कि, 'हमारे पास 4 टॉर्च थी. एक-दो दिन बाद उनमें से 2 की बैटरी खत्म हो गई, मुश्किल से एक दूसरे के चेहरे देख सकते थे. रजवार कहते हैं कि एक समय तो वो बहुत डर गए थे और बच्चों के बारे में सोच रहे थे कि क्या वो उन्हें एक अच्छा भविष्य दे पाए. भूखे-प्यासे होने की वजह से हालत और खराब हो गई थी. उन्होंने बताया कि, हमने एक-दूसरे से पूछा 'हमारी भूख हमें इस जगह तक ले गई, अब क्या ये हमें भी मार डालेगी.'
हैरान हैं अधिकारी
खदान में फंसे चारों मजदूरों के जिंदा बाहर निकल आने पर अधिकारी भी हैरान हैं. स्थानीय अधिकारियों और निवासियों का कहना है कि उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि अनादि सिंह (45), लक्ष्मण रजवार (42), रावण रजवार (46) और भरत सिंह (45) ने कैसे खदान से निकलने में कामयाबी हासिल की. ये चारों पिछले 26 नवंबर की सुबह लगभग 9 बजे बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड अंतर्गत बंद पड़ी कोयला खदान के भीतर अवैध तरीके से कोयला निकालने के लिए घुसे थे और खदान की चाल अचानक धंस जाने से अंदर ही फंस गए थे.
मौत की सुरंग से निकले बाहर
मौत की सुरंग से बाहर आए लोगों ने घरवालों को बताया कि कोयले की खुदाई करते समय अचानक चाल धंस गई. सुरंग का मुंह पूरी तरह बंद हो गया. गनीमत रही कि उन्हें चोट नहीं आई. वो किसी तरह वहीं घंटों बैठे रहे. काफी देर बाद उन्होंने बाहर निकलने के लिए रास्ता बनाने की कोशिश की, लेकिन ये संभव नहीं हो पाया. खदान के एक हिस्से में पानी था, जिसे पीकर वो जिंदगी-मौत से लड़ते रहे. उन चारों के पास एक-एक टॉर्च थी. उन्होंने तय किया कि एक समय में सिर्फ एक टॉर्च जलाकर रोशनी के सहारे बाहर निकलने का कोई रास्ता तलाशा जाए. जब तक टॉर्च की बैटरी रही, उसकी रोशनी के सहारे उनकी जिंदगी की उम्मीदें भी बची रहीं. काफी कोशिश के बाद आखिरकार वो सुरंग से निकलने का दूसरा रास्ता तलाशकर बाहर आने में कामयाब रहे और तड़के चार बजे के आसपास घर पहुंचे.
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