Jharkhand Politics: शिबू सोरेन से लेकर हेमंत सोरेन तक, जानें- 50 साल पुरानी पार्टी JMM की दिलचस्प कहानी
Jharkhand News: झारखंड मुक्ति मोर्चा के इतिहास, इसकी राजनीतिक शैली और अब तक के सफरनामे पर गौर किया जाए तो ये एक असाधारण राजनीतिक घटनाक्रम है.
Jharkhand Shibu Soren And JMM Story: तकरीबन 50 साल पुरानी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) ने 78 साल के शिबू सोरेन (Shibu Soren) को लगातार 10वीं बार सर्वसम्मति से अध्यक्ष और उनके पुत्र झारखंड (Jharkhand) के सीएम हेमंत सोरेन (Hemant Soren) को तीसरी बार कार्यकारी अध्यक्ष चुना है. जेएमएम के इतिहास, इसकी राजनीतिक शैली और अब तक के सफरनामे पर गौर किया जाए तो ये एक असाधारण राजनीतिक घटनाक्रम है. बीते 50 सालों में पूर्ववर्ती बिहार और मौजूदा झारखंड की राजनीति में एक बड़ी धुरी बनने, खेत-खलिहानों, खदानों और जंगलों के संघर्ष से लेकर राज्य में सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने और एक पार्टी के लिए एक खास परिवार के अपरिहार्य हो जाने की दास्तान है.
हेमंत सोरोन ने खुद को किया साबित
बढ़ती उम्र का तकाजा है कि अब शिबू सोरेन बहुत सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वो आज भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के पर्याय माने जाते हैं. ये सभी जानते हैं कि वे जब तक हैं, पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए किसी और नाम की चर्चा भी नहीं हो सकती. ऐसे में 18 दिसंबर को रांची में आयोजित पार्टी के 12वें महाधिवेशन में उनको 10वीं बार सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा महज एक औपचारिकता है. इसके साथ उनके पुत्र और झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लगातार तीसरी बार पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया है. लगभग सात वर्षों से संगठन में इस पद पर हेमंत सोरेन की निर्विवाद मौजूदगी बताती है कि पार्टी की शीर्ष कमान पिता से पुत्र यानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सफलतापूर्वक ट्रांसफर हो चुकी है. हेमंत सोरेन ने इन वर्षों में खुद को शिबू सोरेन का सफल उत्तराधिकारी साबित भी किया है.
हेमंत सोरेन की अगुवाई में लड़ा गया 2019 का विधानसभा चुनाव
पार्टी ने 2019 में विधानसभा चुनाव हेमंत सोरेन की अगुवाई में ही लड़ा और अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता हासिल कर ली. जेएमएम ने राज्य की 81 में से 30 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया और कांग्रेस एवं आरजेडी के साथ मिलकर कुल 47 सीटों के साथ गठबंधन की सरकार बनाई. आगामी 29 दिसंबर को इस सरकार के 23 साल पूरे हो रहे हैं. आज की तारीख में हेमंत सोरेन के लिए जेएमएम के भीतर और कमोबेश राज्य में कांग्रेस और राजद को मिलाकर चल रही गठबंधन सरकार के अंदर भी कोई चुनौती नहीं है. हाल के महीनों में कांग्रेस के कई विधायकों ने कुछ मुद्दों पर सरकार के निर्णयों पर सवाल जरूर उठाए हैं, लेकिन गठबंधन में जेएमएम के मजबूत संख्याबल के चलते हेमंत सोरेन अपने निर्णयों पर अडिग हैं.
5 बार JMM को मिली सत्ता
15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य के निर्माण से लेकर अब तक राज्य में पांच बार सत्ता की कमान झामुमो यानी सोरेन परिवार के पास आई. वर्ष 2005, 2008 और 2009 में शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने थे, जबकि 2013-14 में हेमंत सोरेन पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. जेएमएम की अगुवाई वाली ये चारों सरकारें अल्पजीवी रहीं. कोई सरकार महज कुछ रोज का मेहमान रही, कोई छह महीने तो कोई 14 महीने तक चली. 2019 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जेएमएम की अगुवाई में पांचवीं बार सरकार बनी और हेमंत सोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने. जेएमएम की ये अब तक की सबसे लंबी चलने वाली सरकार है.
सीएम सोरेन ने विपक्ष पर किया हमला
18 दिसंबर को जेएमएम के महाधिवेशन में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष चुने जाने के बाद हेमंत सोरेन ने अपने संबोधन में अपनी इस उपलब्धि को इस तरह बयां किया- पहले विरोधी हमारे बारे में दुष्प्रचार करते थे कि आदिवासी-मूलवासी भला क्या सरकार चलाएंगे? ये लोग तो दारू-हड़िया पीकर मस्त रहते हैं, लेकिन दो वर्षों के कार्यकाल में ही हमने दिखा दिया कि झारखंड के गरीबों, मजदूरों, शोषितों और किसानों के हक में सरकार को कैसे काम करना चाहिए. आज विपक्ष के पास हमारे खिलाफ कोई मुद्दा नहीं है.
शिबू सोरेन की कहानी
जेएमएम की नींव 4 फरवरी, 1972 को धनबाद में रखी गई थी. उस समय शिबू सोरेन 28 साल के युवा थे. इसके पहले वो जब 12 वर्ष के थे, तब उनके पिता सोबरन मांझी की नृशंस हत्या सूदखोरों ने कर दी थी. तत्कालीन हजारीबाग जिले के गोला प्रखंड अंतर्गत नेमरा गांव के रहने वाले किशोर शिबू सोरेन ने उसी वक्त से सूदखोरों-महाजनों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लिया था. पिता के हत्यारों को अदालत से सजा दिलाने के लिए शिबू और उनके परिवार ने लंबे संघर्ष के दौरान जो दुश्वारियां झेलीं, उसने उन्हें विद्रोही बना दिया. वो आदिवासियों को एकजुट कर महाजनों-सूदखोरों के खिलाफ लड़ने लगे. वो और उनके अनुयाई तीर-धनुष लेकर चलते थे. धनबाद, हजारीबाग, गिरिडीह जैसे इलाकों में महाजनों के खिलाफ इस आंदोलन ने कई बार हिंसक रूप ले लिया था.
शिबू सोरेन के आह्वान पर इन इलाकों में धान काटो आंदोलन चला. आदिवासी महिलाएं खेतों में उतर गईं. आदिवासी पुरुष खेतों के बाहर तीर-धनुष लेकर पहरा देते और आदिवासी महिलाएं धान काटती थीं. इसे लेकर कुछ स्थानों पर महाजन और पुलिस के साथ आंदोलनकारियों का हिंसक संघर्ष भी हुआ, कई लोगों की जान भी गई. विभिन्न थानों में शिबू सोरेन पर मामला भी दर्ज हुआ. पुलिस-प्रशासन के लिए शिबू सोरेन बड़ी चुनौती बन गए. वो कभी पारसनाथ की पहाड़ी तो कभी टुंडी के जंगलों में अंडरग्राउंड रहे. उनकी एक पुकार पर डुगडुगी बजते ही हजारों लोग तीर-धनुष लेकर इकट्ठा हो जाते थे. बाद में धनबाद के तत्कालीन डीसी केबी सक्सेना और कद्दावर कांग्रेसी नेता ज्ञानरंजन के सहयोग से शिबू सोरेन ने सरेंडर किया था. दो महीने जेल में रहने के बाद बाहर आए. उन्होंने सोनोत संताल नाम का संगठन बनाकर आंदोलन किया. इसी दौरान उन्हें संताली समाज ने दिशोम गुरु की उपाधि दी गई. दिशोम गुरु का शाब्दिक अर्थ होता है देश का नेता.
बाद में 1972 में शिबू सोरेन के सोनोत संताल संगठन और विनोद बिहारी महतो के शिवाजी समाज नाम का संगठन का विलय हुआ और झारखंड मुक्ति मोर्चा का उदय हुआ. इसमें ट्रेड यूनियन लीडर कॉमरेड एके राय की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही. विनोद बिहारी महतो जेएमएण के पहले अध्यक्ष बने थे और शिबू सोरेन पहले महासचिव. कुछ सालों में पार्टी ने दक्षिण बिहार (वर्तमान झारखंड) के साथ-साथ उड़ीसा और बंगाल में जनमुद्दों खास तौर पर अलग राज्य के आंदोलन की बदौलत जनाधार विकसित कर लिया.
1980 में शिबू सोरेन पहली बार दुमका से सांसद चुने गए. इसी वर्ष बिहार विधानसभा के लिए हुए चुनाव में पार्टी ने संताल परगना क्षेत्र की 18 में से 9 सीटें जीतकर पहली बार अपने मजबूत राजनीतिक वजूद का एहसास कराया. 1991 में झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद शिबू सोरेन पार्टी के अध्यक्ष बने और इसके बाद से वो इस पार्टी के पर्याय बन गए. झारखंड अलग राज्य के लिए चले आंदोलन को निर्णायक दौर में पहुंचाने का बहुत हद तक श्रेय जेएमएम को जाता है. 2015 में जमशेदपुर में पार्टी के दसवें महाधिवेशन में हेमंत सोरेन को जब पहली बार पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया, तभी से पार्टी में एक नए दौर की शुरूआत हुई. आज शिबू सोरेन पार्टी के संघर्षों के प्रतीक पुरुष बन चुके हैं. वो औपचारिक तौर पर पार्टी के प्रमुख हैं और व्याहारिक एवं रणनीतिक तौर पर पार्टी की कमान उनके पुत्र हेमंत सोरेन के हाथ में है.
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