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Jharkhand: 84 वर्षों से है बंद है गिरिडीह में मौजूद महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की तिजोरी, आज तक नहीं खुला रहस्य  

Jharkhand News: जगदीश चंद्र बोस (Jagadish Chandra Bose) की बंद तिजोरी का रहस्य अब तक सामने नहीं आ सका है. ये तिजोरी पिछले 84 वर्षों से झारखंड के गिरिडीह में मौजूद है.

Jagadish Chandra Bose Birth Anniversary: महान वैज्ञानिक (Scientist) जगदीश चंद्र बोस (Jagadish Chandra Bose) की बंद तिजोरी का रहस्य आखिर क्या है. ये तिजोरी पिछले 84 वर्षों से झारखंड के गिरिडीह स्थित उस मकान में मौजूद है, जहां उन्होंने 23 नवंबर 1937 को आखिरी सांस ली थी. उनकी तिजोरी आज तक बंद है. 2 बार इसे खोलने को लेकर स्थानीय जिला प्रशासन के स्तर पर विचार-विमर्श हुआ. इसके लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) को गिरिडीह (Giridih) आमंत्रित करने की योजना बनी. किन्हीं कारणों से वो नहीं आ सके, तो तिजोरी अब तक नहीं खुल सकी है. 

गिरिडीह से था खास लगाव 
आज यानी 30 नवंबर को जगदीश चंद्र बोस की जयंती है. 1858 में उनका जन्म मौजूदा बांग्लादेश और तत्कालीन बंगाल प्रेसिडेंसी के मेमनसिंह में हुआ था. गिरिडीह भी तब बंगाल प्रेसिडेंसी के अंतर्गत ही था. यहां जगदीश चंद्र बोस के रिश्तेदार रहते थे. गिरिडीह जंगलों और तरह-तरह के पेड़-पौधों से घिरा इलाका था. चूंकि जगदीश चंद्र बोस का सबसे प्रमुख रिसर्च पेड़-पौधों पर ही रहा है, इसलिए उनका यहां से खास लगाव था. वो ना सिर्फ गिरिडीह लगातार आते रहते थे, बल्कि माना जाता है कि उनके एकांत वैज्ञानिक शोध का बड़ा वक्त यहीं गुजरा था, उनके जीवन के आखिरी वर्ष गिरिडीह में ही गुजरे थे.

पहले कम लोगों को थी जानकारी 
यहां झंडा मैदान के पास स्थित जिस मकान में वो रहते थे, उसके बारे में पहले बहुत कम लोगों को पता था. बाद में ये जानकारी सरकार के संज्ञान में आई तो गिरिडीह के तत्कालीन उपायुक्त केके पाठक के कार्यकाल में इसका अधिग्रहण कर लिया गया. इस भवन को जगदीश चंद्र बोस स्मृति विज्ञान भवन का नाम दिया गया. बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने 28 फरवरी 1997 को इसका उद्घाटन किया. 


Jharkhand: 84 वर्षों से है बंद है गिरिडीह में मौजूद महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की तिजोरी, आज तक नहीं खुला रहस्य  

नहीं खुला तिजोरी का रहस्य 
यूं तो कहने को ये आज भी विज्ञान भवन है, लेकिन महान वैज्ञानिक की निशानियों और उनसे जुड़े धरोहरों को सहेजने की दिशा में इसके बाद कोई ठोस पहल नहीं हुई है. महान वैज्ञानिक से संबंधित कई निशानियां नष्ट भी हो चुकी हैं. आज भी इस भवन में बोस की कई तस्वीरें, उन्हें जीवन काल में मिले विभिन्न तरह के सम्मान और उनके आविष्कारों की मान्यताओं से संबंधित दस्तावेज भी इस भवन में मौजूद हैं. लेकिन, इन्हें कायदे से सहेजने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई है. सबसे ज्यादा जिज्ञासा इस भवन में मौजूद तिजोरी को लेकर है.

2 बार हुई तिजोरी को खोलने की बनी योजना 
जगदीश चंद्र बोस पर किताब लिख रहे और गिरिडीह में मौजूद उनसे जुड़े धरोहरों के संरक्षण के लिए सरकारों का ध्यान आकृष्ट कराने वाले स्थानीय पत्रकार रितेश सराक बताते हैं कि, जिला प्रशासन ने पिछले दशक में 2 बार इसे खोलने की योजना बनाई. तय हुआ कि तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल को गिरिडीह आमंत्रित किया जाए और उन्हीं के हाथों ये तिजोरी खुलवाई जाए, लेकिन बात आई-गई हो गई. भवन में एक ओर सूक्ष्म तरंग डिटेक्टर की प्रतिकृति का मॉडल है, तो दूसरी तरफ केस्कोग्राफ की प्रतिकृति का मॉडल. इन दोनों का आविष्कार बोस ने ही किया था. बोस की खोज केस्कोग्राफ वो यंत्र है, जिससे पता चला था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है. यहां जगदीश चंद्र बोस की बाल्यावस्था, युवावस्था के साथ-साथ शोध और अनुसंधान के दौरान उनकी विभिन्न गतिविधियों से संबंधित तस्वीरें रखी गई हैं. उनके माता-पिता सहित परिवार के अन्य सदस्यों और उनके दोस्तों की तस्वीरें भी यहां मौजूद हैं. तस्वीरें बताती हैं कि उनके निधन के बाद उनके अंतिम दर्शन को भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी. 


Jharkhand: 84 वर्षों से है बंद है गिरिडीह में मौजूद महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की तिजोरी, आज तक नहीं खुला रहस्य  

हैरान करने वाली है ये बात 
जगदीश चंद्र बोस ने अपने जीवन में फिजिक्स, बायोलॉजी और बॉटनी में कई सफल शोध किए. इटली के वैज्ञानिक गुल्येल्मो माकोर्नी को रेडियो का आविष्कारक माना जाता है, लेकिन बोस पर लिखे गए कई आर्टिकल्स में ये कहा गया है कि उन्होंने माकोर्नी से पहले रेडियो का आविष्कार कर लिया था, पर उन्हें इसका श्रेय नहीं मिला. माकोर्नी ने 1901 में दुनिया के सामने पहली बार वो मॉडल पेश किया था, जिससे अटलांटिक महासागर के पार रेडियो संकेत प्राप्त हुआ था. लेकिन, इससे पहले ही, 1885 में जेसी बोस ने रेडियो तरंगों के बेतार संचार को प्रदर्शित किया था. जगदीश चंद्र बोस अपने इस आविष्कार का पेटेंट हासिल नहीं कर सके और रेडियो के आविष्कार का श्रेय माकोर्नी को मिल गया, जिसके लिए उन्हें 1909 में नोबेल पुरस्कार भी मिला. इसके बाद ही जेसी बोस पेड़-पौधों के अध्ययन में लग गए. उन्होंने दुनिया को बताया पेड़-पौधे इंसानों की तरह सांस लेते हैं और दर्द को महसूस कर सकते हैं. उनके इस प्रयोग ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों को हैरान करके रख दिया. उन्होंने पौधों की वृद्धि को मापने के लिए 'क्रेस्कोग्राफ' का आविष्कार किया था. कौन जानता है कि गिरिडीह में उनकी 84 वर्षों से बंद तिजोरी में किसी अत्यंत महत्वपूर्ण रिसर्च से जुड़े साक्ष्य हों या फिर कुछ ऐसा हो, जिसके सामने आने से दुनिया चमत्कृत हो जाए. 

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