Jharkhand Politics: झारखंड में बीजेपी के सुस्त रवैये से हेमंत सोरेन सरकार को मिला फायदा? जानिए इसकी इनसाइड स्टोरी
Ranchi: हेमंत सोरेन की सरकार के खिलाफ सबसे पहले नियोजन नीति का मुद्दा बीजेपी ने उठाया. तकरीबन 40 फीसदी ऐसी आबादी के हित में बीजेपी राज्यव्यापी आंदोलन कर सकती थी पर उसने चुप्पी साध ली.
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Jharkhand News: झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तमाम बातें अब ट्वीटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म तक सिमट कर रह गए हैं. बीजेपी राज्य में प्रमुख विपक्षी पार्टी है. जाहिर है राज्य सरकार के गलत फैसलों या नीतियों के विरोध का सारा दारोमदार उसी पर है. राज्य की हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के इतने सारे मामले उजागर हुए, जिनकी मुखालफत बीजेपी सतह पर करती तो उसका खोया रुतबा फिर हासिल हो सकता था, लेकिन इसकी जरूरत राज्य के बीजेपी नेताओं को कभी महसूस नहीं होती है.
हेमंत सरकार के साढ़े तीन साल पूरे हो रहे हैं. इस दौरान बीजेपी के सामने इतने मौके आए, जिनके खिलाफ बीजेपी सड़क पर उतरती तो अगली बार हेमंत सरकार की सत्ता में दोबारा वापसी की संभावना ही खत्म हो जाती. एक-दो अवसरों को छोड़ दें तो बीजेपी ने ज्यादातर अपना विरोध ट्वीटर या फेसबुक तक ही सीमित रखा. इसकी चिंता न बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सांसद दीपक प्रकाश ने कभी महसूस की और न विरोधी दल के नेता होने के नाते पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने की. ये लोग अक्सर ट्विटर हैंडल या फेसबुक अकाउंट के जरिए ही बयानबाजी करते नजर आए.
नियोजन नीति हो सकता था बड़ा मुद्दा
हेमंत सोरेन की सरकार के खिलाफ सबसे पहले नियोजन नीति का मुद्दा बीजेपी ने उठाया. नियोजन नीति में बिहार, यूपी जैसे राज्यों से आकर झारखंड में बसे लोगों की नौकरी के अवसर राज्य सरकार ने खत्म कर दिए थे. तकरीबन 40 फीसदी ऐसी आबादी के हित में बीजेपी राज्यव्यापी आंदोलन कर सकती थी पर उसने चुप्पी साध ली. विरोध सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हुआ. यह तो हाई कोर्ट था जिसने नियोजन नीति को खारिज कर दिया. यह राज्य सरकार की सबसे बड़ी विफलता थी. बीजेपी ने इसे लेकर रांची में सचिवालय का घेराव कार्यक्रम किया. हालांकि, हो सकता है कि हाई कोर्ट से पहले नियोजन नीति का विरोध करना बीजेपी को नुकसान पहुंचाता, क्योंकि इसमें मूल झारखंडियों को राज्य सरकार ने लाभ देने की घोषणा की थी.
स्थानीय मुद्दों पर शांति
वहीं हाई कोर्ट के फैसले के बाद उसे सरकार की विफलता बता कर या झारखंडियों के साथ छल कह कर सतत आंदोलन बीजेपी चला सकती थी. बीजेपी को मालूम था कि स्थानीय नीति का आधार 1932 के खतियान को बनाना कानूनी रूप से उचित नहीं है. हेमंत सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति का प्रस्ताव पास करा लिया. बीजेपी ने मुखर रूप से इसका विरोध नहीं किया. वह जनता के बीच इस हकीकत के साथ जा सकती थी कि स्थानीय नीति का झुनझुना थमा कर सरकार झारखंडियों के साथ छल कर रही है.
भ्रष्टाचार के मामलों पर बीजेपी शांत
वहीं जब राजभवन ने इसमें कानूनी कमियां गिना कर विधेयक लौटा दिया, तब भी बीजेपी राज्य सरकार की धोखेबाजी को लेकर जनता के बीच जा सकती थी. यह अवसर भी बीजेपी ने गंवा दिया. हेमंत सोरेन की सरकार पर शुरू से ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है. पद का दुरुपयोग कर खनन पट्टा हेमंत सोरेन ने अपने और पत्नी के नाम लिया. इसमें बीजेपी ने अपनी भूमिका सिर्फ इसकी शिकायत राज्यपाल से करने तक सीमित रखी. वहीं आईएस पूजा सिंघल और छवि रंजन के अलावा हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र और अन्य कई लोग गिरफ्तार किये गए. बीजेपी को इन मुद्दों को जनता के बीच जाकर का भुनाने की कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.
ईडी ने निभाई विपक्ष की भूमिका
सत्ता से नजदीकी संबंध रखने वाले दलालों के नाम उजागर हुए. उनमें कई की गिरफ्तारी हुई. जमीन घोटाले में ही आईएएस छवि रंजन की गिरफ्तारी हुई. बता दें कि, झारखंड की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी का काम ईडी और सीबीआई कर रहे हैं. हाई कोर्ट और राजभवन ऐसे मामलों में संज्ञान लेकर राय और फैसले दे रहे, लेकिन बीजेपी के नेता अपनी भूमिका सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित रखे हुए हैं. आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार समेत कई राज्यों में बड़ा सांगठनिक फेर-बदल किया, लेकिन झारखंड में अब तक यह काम नहीं हो पाया है. लगता है कि प्रदेश बीजेपी के नेता यह मान कर चल रहे कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह कोई न कोई करिश्मा कर ही देंगे.
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