(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Jharkhand: अंग्रेजों के खिलाफ हमेशा याद रहेगा इन 2 भाइयों का विद्रोह, CM सोरेन बोले- भुलाया नहीं जा सकता बलिदान
Hul Diwas 2022: अंग्रेजों के खिलाफ संथाल आदिवासियों के विद्रोह के नायक सिदो-कान्हू थे. 30 जून को लोग इन अमर शहीदों की क़ुर्बानियों को याद कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं.
Jharkhand Hul Diwas: झारखंड (Jharkhand) में 30 जून 1855 को अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका गया था. अमर शहीद सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू की याद में लोग इस दिन को हूल दिवस (Hul Diwas) के रूप में मनाते हैं. कहा जाता है कि इन दोनों भाइयों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. हालांकि, बाद में अंग्रेजों ने धोखे से दोनों भाइयों को पकड़कर फांसी में लटका दिया था. साहिबगंज जिले के बरहेट प्रखंड के पंचकटिया गांव के पास वो वटवृक्ष आज भी गवाह बनकर खड़ा है जहां इन शहीदों को फांसी दी गई थी. आज ये स्थल आदिवासियों के लिए तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. 30 जून के दिन यहां भारी संख्या में आदिवासी जुटते हैं और अमर शहीदों की क़ुर्बानियों को याद कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं.
महाजनी और शोषण के विरुद्ध लड़ी लड़ाई
बताया जाता है अविभाजित बंगाल और बिहार के समय साहिबगंज जंगलों से भरा पड़ा था. उस वक्त महाजन और जमीदार आदिवासियों पर शोषण और अत्याचार करते थे. वर्त्तमान में झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह में 1820 में जन्मे सिदो मुर्मू और 1832 में जन्मे कान्हू मुर्मू ने जवान होते ही महाजनों, सूदखोरों और जमींदारों के विरुद्ध अपनी आवाज को बुलंद कर दिया. महाजन सिदो और कान्हू मुर्मू के विरुद्ध अंग्रेजो से साठ-गांठ कर विद्रोह को दबाने में लग गए. सिदो और कान्हू ने इसके विरोध में 30 जून को आदिवासियों को एकजुट कर एक बैठक की और फिर वहीं से एलान हुआ हूल आंदोलन का.
15000 से ज्यादा संताल हुए शहीद
करीब 30 हजार से ज्यादा आदिवासी हाथ में तीर-धनुष लेकर इस आंदोलन में कूद पड़े. 6 माह के अंदर आंदोलन ने भयानक रूप ले लिया. आंदोलन संताल परगना के अलावा हजारीबाग, बंगाल के धुलियान, बांकुड़ा और बिहार के भागलपुर तक फैल गया. 21 सितम्बर 1855 राजमहल, पश्चिम बंगाल के सैंथिया और भागलपुर जिले के इलाकों में विदोह तेज हो चुका था. संताल विद्रोहियों ने बीरभूम के अलावा हजारीबाग समेत कई इलाकों में पुलिस चौकियों को लूटकर ईस्ट इण्डिया कंपनी के सामने मुश्किलें खड़ी कर दीं. ऐसे में अंग्रेजी हुकूमत ने इन दोनों को पकड़ने के लिए सेना का इस्तेमाल किया. युद्ध में करीब 15000 से ज्यादा संताल अंग्रजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. 1856 तक ज्यादातर विद्रोही अंग्रेजों के हाथों पकड़े जा चुके थे. सिदो और कान्हू मुर्मू को भी अंग्रजों ने गिरफ्तार कर लिया था. इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजो ने दोनों भाइयों को बरहेट के पंचकठिया गांव स्थित वटवृक्ष में फांसी से लटका दिया.
बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता
हूल दिवस के मौके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि हमारे आदिवासी पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने जीवन को बलिदान कर दिया. बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता बल्कि उन्हें अपने दिलो में याद और जीवित रखने की जरुरत है.
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