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Jharkhand Politics: राज्यपाल रमेश बैस के निशाने पर JMM गठबंधन की सरकार, जानिए क्या है तल्खी की प्रमुख वजहें

Governor Ramesh Bais: बीते कई दिनों से राज्यपाल और राज्य सरकार के रिश्ते तल्ख बने हुए हैं. कई मौकों पर राज्यपाल प्रदेश सरकार की नीतियों पर खुले मंच से अपनी नाराजगी भी जता चुके हैं.

Jharkhand Politics: झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस (Ramesh Bais) और हेमंत सोरेन सरकार (Hemant Soren Govt) के रिश्तों में तल्खियां लगातार बढ़ रही हैं. बीते डेढ़ साल में कम से कम डेढ़ दर्जन मौके ऐसे आए हैं, जब राज्यपाल ने सरकार के विजन और कामकाज से लेकर उसके निर्णयों तक पर सवाल खड़े किए हैं. इसके जवाब में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता भी राज्यपाल पर सीधे-सीधे निशाना साधने का मौका नहीं चूकते.

लगभग डेढ़ साल पहले झारखंड के राज्यपाल का कार्यभार संभालने वाले रमेश बैस ने बीते दिनों कहा था- मुझे झारखंड की राजनीति को समझने में थोड़ा वक्त लग गया. इसके बाद बीते 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर जब पत्रकारों से मुखातिब थे तो उन्होंने कहा, राज्यपाल संवैधानिक पद है. उनपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. लेकिन कुछ घटनाओं से कभी-कभी लगता है कि यह डबल गेम तो नहीं है. अब वे यहां राज्यपाल की हैसियत से आए हैं या राजनीति करने, यह तो वही बताएंगे.

राज्यपाल के भाषणों का स्वर रहा विपक्षी नेताओं का सरीखा
झारखंड के अब तक के 22 वर्षों के इतिहास में कुल 10 राज्यपाल नियुक्त हुए हैं. इनमें से वर्ष 2004 से 2009 के बीच राज्यपाल रहे सैयद सिब्ते रजी और अब दसवें राज्यपाल के रूप में कार्यरत रमेश बैस का कार्यकाल राजनीतिक विवादों के लिए याद किया जाएगा.

छत्तीसगढ़ के रायपुर निवासी रमेश बैस का लगभग 45 से 50 वर्षों का पूरा राजनीतिक करियर बीजेपी के साथ गुजरा है. झारखंड के राज्यपाल के तौर पर उनका कार्यकाल 7 जुलाई 2021 से शुरू हुआ. पिछले डेढ़ वर्ष के कार्यकाल के दौरान कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके भाषणों का स्वर किसी विपक्षी नेता सरीखा रहा है.

राज्यपाल ने एक कार्यक्रम में सरकारी विश्वविद्यालय की थी आलोचना
मसलन, बीते 12 जनवरी को रांची में एक संस्था की ओर से युवा दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि झारखंड के सरकारी विश्वविद्यालय भगवान भरोसे चल रहे हैं. उन्होंने विश्वविद्यालयों की तमाम कमियां गिनाईं और साथ में यह भी जोड़ा कि उनकी कोशिश है कि स्थिति में सुधार हो. इसके पहले 5 जनवरी को उन्होंने झारखंड में आदिवासियों के लिए संचालित विभिन्न योजनाओं की समीक्षा के लिए संबंधित अफसरों के साथ बैठक की. 

बैठक के बाद राजभवन की ओर से जो रिलीज जारी की गई, उसके मुताबिक राज्यपाल ने कहा, 'झारखंड में अनुसूचित जनजातियों के कल्याणार्थ राशि की कमी नहीं है, कमी है तो विजन की और प्रतिबद्धता के साथ योजनाओं का क्रियान्वयन करने की. केंद्र सरकार से प्राप्त राशि पड़ी है लेकिन उचित योजना बनाकर खर्च नहीं कर रहे हैं.'

राज्य सरकार को राज्यपाल ने बताया विजनलेसनेस
इसके पहले दिसंबर महीने में रांची के मोरहाबादी मैदान में एक एक्सपो के उदघाटन के दौरान भी राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि झारखंड में संसाधनों की कोई कमी नहीं है, कमी है तो सिर्फ विजन की. इस कमी के चलते झारखंड आज भी पिछड़ा है. इस संबंध में सीनियर पत्रकार सुधीर पाल कहते हैं, 'राज्यपाल रमेश बैस भले अपने भाषण में हेमंत सोरेन का नाम न लें, जब वह बार-बार झारखंड की बदहाली का जिक्र करते हुए इसके लिए सीधे-सीधे विजनलेसनेस की बात करते हैं, तो प्रकारांतर से वह राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं.'

जांच रिपोर्ट नहीं मिलने राज्यपाल ने राज्य सरकार पर जताई हैरानी
बीते 14 दिसंबर को राज्यपाल रमेश बैस ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने 10 अप्रैल 2022 को देवघर के त्रिकूट पर्वत पर हुए रोपवे हादसे और 10 जून 2022 को रांची के मेन रोड में हुई सांप्रदायिक हिंसा और पुलिस फायरिंग की घटना का जिक्र करते हुए, इनकी जांच रिपोर्ट अब तक नहीं मिलने पर हैरत जताई. उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी घटनाओं की जांच पर राज्य सरकार की ओर से कोई नोटिस नहीं लिया गया है. ऐसे में भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति कैसे रोकी जा सकेगी? उन्होंने सीएम से कहा कि इन दोनों मामलों की जांच जल्द से जल्द कराकर की गई कार्रवाई से उन्हें अवगत कराया जाए.

राज्यपाल इसके पहले रांची हिंसा, दुमका में छात्रा को जिंदा जलाए जाने सहित कई घटनाओं को लेकर राज्य की विधि-व्यवस्था पर तल्ख टिप्पणियां कर चुके हैं. बीते जून में रांची में हुई हिंसा की घटना के बाद तो उन्होंने राज्य के डीजीपी और रांची के एसएसपी को राजभवन तलब कर लिया था और हिंसा फैलाने वाले उपद्रवियों की तस्वीर वाले होर्डिंग लगाने का आदेश दिया था. इसके बाद दूसरे दिन पुलिस ने ऐसी होर्डिंग भी लगा दी. इसकी खबर मिलते ही राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने अफसरों की क्लास लगाई. राज्यपाल के आदेश से लगी होर्डिंग्स कुछ ही घंटे में हटाए गए.

राज्यपाल राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित आधा दर्जन बिल अलग-अलग वजहों से दिए थे. हालांकि इनमें से तीन विधेयक विधानसभा के बीते सत्र में पुन: पारित कराए और राज्यपाल की कई आपत्तियों को खारिज कर दिया.

निर्वाचन आयोग की चिट्ठी से प्रेदश की राजनीति गरमाई
इन प्रकरणों से इतर जिस मुद्दे पर राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच सबसे ज्यादा रस्साकशी हुई, वह है भारत के निर्वाचन आयोग से आई चिट्ठी. सभी जानते हैं कि इसे लेकर राज्य में इस कदर राजनीतिक तूफान खड़ा हुआ कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार को रिजॉर्ट प्रवास से लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर बहुमत साबित करने तक की मशक्कत करनी पड़ी. निर्वाचन आयोग की यह सीलबंद चिट्ठी बीते 25 अगस्त को नई दिल्ली से रांची स्थित राजभवन पहुंची थी. 

चुनाव आयोग की यह चिट्ठी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की योग्यता-अयोग्यता तय किये जाने के संबंध में थी, लेकिन आज तक इसका आधिकारिक तौर पर खुलासा नहीं हुआ है कि इस चिट्ठी का मजमून क्या है? फिलहाल चिट्ठी वाला यह प्रकरण तो ठंडा पड़ा है, लेकिन हेमंत सोरेन की सरकार को यह आशंका बनी हुई है कि राज्यपाल कभी भी यह चिट्ठी सामने ला सकते हैं और इसका इस्तेमाल सरकार के खिलाफ किया जा सकता है.

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