Jharkhand Politics: झारखंड (Jharkhand) में सत्ता के समीकरण बदलते हुए नजर आ रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) ने हाल के दिनों में कांग्रेस (Congress) को जोरदार झटके दिए हैं. जेएमएम ने राष्ट्रपति पद के लिए गठबंधन की परवाह ना करते हुए द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को समर्थन दिया. पार्टी के सुप्रीमो शिबू सोरेन (Shibu Soren) ने तो यहां तक कह दिया कि, द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश में पहली बार महिला आदिवासी को राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल होने जा रहा है, इसलिए पार्टी ने उनके समर्थन का फैसला लिया है. जेएमएम के इस फैसले को कांग्रेस के लिए बड़े झटके रूप में देखा गया. इतना ही नहीं इससे पहले बीते महीने हुए राज्यसभा चुनाव में भी जेएमएम ने एक सीट पर कांग्रेस की 'मजबूत दावेदारी' को खारिज करते हुए अपना प्रत्याशी उतार दिया था. जेएमएम के इन कदमों से साफ जाहिर होता है कि, उसके फैसलों पर गठबंधन की सियासत हावी नहीं है. 


झारखंड पर बीजेपी की नजर 
एक तरफ जेएमएम का रुख साफ नजर आ रहा है तो वहीं, 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता गंवाने वाली भारतीय जनता पार्टी भी सत्ता समीकरणों में उलटफेर करने की कोशिशों में जुटी है. ये तो कहा ही जा सकता है कि, हाल के महीनों में हुए घटनाक्रम को लेकर बीजेपी की जो भूमिका रही है उससे झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन सरकार की रिश्ते कमजोर जरूर हुए हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि महाराष्ट्र के बाद बीजेपी के 'ऑपरेशन कमल' का अगला पड़ाव झारखंड ही है. 


बीजेपी और झामुमो के बीच गायब हैं तल्खियां
राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते 27 जून को दिल्ली जाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. बंद कमरे में एक घंटे की बातचीत के बाद जब हेमंत सोरेन रांची लौटे, तभी से बीजेपी और झामुमो के बीच की पुरानी तल्खियां गायब हैं. कहना गलत नहीं होगा कि, बीजेपी झारखंड की मौजूदा सरकार का रुख मोड़ने के लिए कभी रणनीति के तहत काम कर रही है. एक तरफ कभी जांच एजेंसियों के खौफ और अदालती दांव-पेंच से राज्य सरकार के मुखिया के लिए डर पैदा करने की कोशिश हो रही है तो दूसरी तरफ दोस्ताना के प्रस्ताव भी बढ़ाए जा रहे हैं. बीजेपी की ये कोशिशें एक हद तक रंग भी लाती दिख रही हैं. पिछले कुछ दिनों में झारखंड मुक्ति मोर्चा और बीजेपी के बीच सियासी रिश्ता भी विकसित होता दिख रहा है.


झारखंड की सियासत पर पड़ेगा असर
इतना ही नहीं, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बीते कुछ महीनों से चुनाव आयोग और अदालतों में सामने आए मामलों और राज्य में ईडी की ओर से हो रही कार्रवाई को लेकर असहज हैं. चुनाव आयोग में तो बीजेपी ने उनके खिलाफ सीधी शिकायत की है. ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप लगाते हुए उसने आयोग से हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की है. इस मामले में चुनाव आयोग में सुनवाई का सिलसिला जारी है. अदालत में भी सीएम के खिलाफ 2 पीआईएल दाखिल की गई हैं, जिसपर हो रही सुनवाई उनके लिए परेशानी बढ़ाने वाली है. अब ऐसे में ये कहा जा सकता है कि, घेराबंदी इस तरह है कि जेएमएम अब बीजेपी सरकार के खिलाफ पहले की तरह आक्रामक नहीं हो सकती है. आने वाले दिनों में इसका असर राज्य की सियासत पर देखने को मिल सकता है.


बदलते रहे हैं सियासी समीकरण 
अब ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि, मौजूदा समय में क्या जेएमएम राज्य में कांग्रेस से किनारा कर बीजेपी के साथ नई राह पकड़ सकती है. चूंकि दोनों की दोस्ती वाली सत्ता राज्य में पहले भी रह चुकी है तो इस संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. यहां ये बताना जरूरी है कि, 2012 में जब राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे, तब झारखंड में बीजेपी-जेएमएम और आजसू गठबंधन की सरकार चल रही थी. उस वक्त जेएमएम ने बीजेपी समर्थित प्रत्याशी पीए संगमा के बजाय यूपीए प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी को समर्थन दिया था. इसके कुछ ही महीनों के बाद झारखंड में जेएमएम ने समर्थन वापस लेकर बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार को गिरा दिया था. फिर कुछ महीनों तक राज्य में लागू रहे राष्ट्रपति शासन के बाद उसने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी. 


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