Jharkhand Life Of Women Naxalites: झारखंड (Jharkhnd) में बोकारो (Bokaro) जिले के चतरोचट्टी थाना क्षेत्र का एक सुदूर जंगलवर्ती गांव है खचार्बेड़ा. तकरीबन 2 दशक पहले खचार्बेड़ा सहित आस-पास के कई गांवों में नक्सलियों (Naxalites) की धमक थी. उन्होंने इस गांव में एक गरीब आदिवासी परिवार को डरा-धमकाकर उनकी 12 साल की बच्ची रीला उर्फ माला को अपने संगठन के काम के लिए मांग लिया. ये 2004-05 की बात है. 17 साल गुजर गए, माला तब से कभी गांव नहीं लौटी. वो नक्सली कमांडरों के साथ हथियार ढोते जंगल-पहाड़ भटकती रही. इस बीच उसके माता-पिता की मौत हो गई. गांव में उसके परिवार में अब सिर्फ एक भाई है, जो दिहाड़ी मजदूरी करता है. बीते 2 सितंबर की शाम गांव के लोगों को खबर मिली कि रीला सरायकेला जिले में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारी गई है.
 
तबाह हुई है लड़कियों की जिंदगी 
ये अकेली रीला की कहानी नहीं है. नक्सली संगठनों के चलते झारखंड में ऐसी कई मासूम लड़कियों की जिंदगियां तबाह हुई हैं. पुलिस की फाइलों में ऐसी कई कहानियां दर्ज हैं, जो बताती हैं कि संगठन के भीतर भी लड़कियों को किस तरह भयंकर शोषण और जुल्म का शिकार होना पड़ता है. पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले नक्सलियों के फर्द बयान में भी ऐसी दास्तानें बार-बार उजागर हुई हैं.


विरोध करने पर की जाती है मारपीट 
वर्ष 2020 के मार्च महीने में पुलिस और सीआरपीएफ की टीम ने चाईबासा जिले के गुदड़ी थाना क्षेत्र में एक नाबालिग बच्ची को नक्सलियों के चंगुल से मुक्त कराया था. उसने बताया था कि 2017 में माओवादियों ने गांव से उसका अपहरण कर लिया था. उस समय उसकी उम्र लगभग 10 वर्ष रही होगी. पुलिस को दिए बयान में उसने बताया था कि एरिया कमांडर जीवन कंडुलना उर्फ लम्बु, सुरेश मुंडा, सुभाष उर्फ लोदरो लोहार, सूर्या सोय, चोकोय सुंडी सहित संगठन के कई पुरुष सदस्य लगातार उसका शारीरिक शोषण करते थे. जब भी वो विरोध करती, उसके साथ मारपीट की जाती. बात ना मानने पर जान से मारने की धमकी दी जाती थी.


महिलाओं और बच्चियों को हर रोज अत्याचार झेलना पड़ता है
जून 2019 में दुमका जिला पुलिस के सामने एके 47 के साथ सरेंडर करने वाली महिला नक्सली पीसी दी उर्फ प्रीशिला देवी ने सबके सामने बताया था कि नक्सली संगठन में महिलाओं और बच्चियों को हर रोज अत्याचार झेलना पड़ता है. उसे संगठन के भीतर सब जोनल कमांडर का ओहदा हासिल था, लेकिन इसके बावजूद उसे शोषण का शिकार होना पड़ा. पुलिस के सामने हथियार डालते हुए उसने कहा था कि उसे खुशी है कि वो शोषण और अत्याचार की उस जिंदगी से बाहर निकल आई है, लेकिन संगठन में कई ऐसी लड़कियां हैं जिनके लिए उस घेरेबंदी से निकलना आसान नहीं है.


बदल दिया जाता है नाम 
पिछले साल जुलाई में हजारीबाग के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कार्तिक एस के सामने एक लाख की इनामी महिला नक्सल कमांडर उषा किस्कू और सरिता सोरेन ने सरेंडर किया था. 27 साल की उषा किस्कू के अनुसार वो पढ़कर जिंदगी में अच्छा मुकाम हासिल करना चाहती थी, लेकिन करीब 15 साल पूर्व गांव आए माओवादियों ने उसे जबरन बाल दस्ता में शामिल कर लिया. पहले उसका काम इलाके में पुलिस आने पर संगठन को सूचना देना होता था. 2009 में उसे हथियारबंद दस्ता में शामिल कर लिया गया. नाम फूलमनी उर्फ उषा संथाली रख दिया गया. वो कहती है कि नक्सली संगठन में लड़कियों के लिए जिंदगी बेहद मुश्किल है. सरिता सोरेन उर्फ ममता संथाली हजारीबाग के ढुकरू टोला हरली गांव की रहने वाली है. इसे मात्र 13 साल की उम्र में संगठन में शामिल कर लिया गया. वहां हथियार ढोते और नक्सली कमांडरों का हुक्म बजाते-बजाते परेशान हो गई थी. वहां से निकलकर वो सुकून महसूस कर रही है.


किया जाता है शारीरिक शोषण 
2015 के मई महीने में हजारीबाग पुलिस की गिरफ्त में आई भाकपा माओवादी संगठन की हार्डकोर नक्सली ललिता, सुनीता और 3 बच्चियों ने पुलिस के सामने जो बयान दिया, उसके मुताबिक महिलाओं और बच्चियों का यौन शोषण करना नक्सलियों की फितरत है. 2010 में माओवादी संगठन से सरेंडर करने वाली पूर्व माओवादी शोभा मंडी और उमा उर्फ शिखा में अपनी किताब में लिखा है कि माओवादी शिविरों में महिलाओं की जिंदगी सबसे मुश्किल होती है. उनका वहां जमकर शारीरिक शोषण किया जाता है. उसने खुद पर हुए जुल्म को बयां करते हुए लिखा कि उनके साथी कमांडर ने 7 साल तक कई बार उसके साथ बलात्कार किया. ये भी तब हुआ जब वो 25-30 सशस्त्र माओवादियों की कमांडर हुआ करती थी.


मिलती है खौफनाक सजा 
2011 में झारखंड के लोहरदगा से गिरफ्तार की गई महिला नक्सली कमांडर सुनीता उर्फ शांति ने बताया था बंदूक की नोक पर उसे संगठन में शामिल किया गया था. उसने बताया था कि घाघरा गांव की रहने वाली पूनम कुमारी का संगठन में भयंकर यौन शोषण हुआ. इससे आजिज आकर उसने भागने का प्रयास किया तो पुरुष कमांडरों ने उसे हुक्म दिया कि वो स्वयं को स्टेनगन से गोली मारे. उसे ऐसा ही करना पड़ा और उसका अंत हो गया.


पुलिस से हो जाता है बचाव 
झारखंड के एक आईपीएस बताते हैं कि सुदूर ग्रामीण इलाकों की आदिवासी लड़कियां नक्सलियों के निशाने पर रहती हैं. पुलिस जब भी नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाती है, वो महिलाओं और बच्चियों को ढाल बनाने की कोशिश करते हैं. कई बार पुलिस ऑपरेशन में घिर जाने पर वो महिलाओं और बच्चियों के साथ सामने आकर खुद को आम ग्रामीण बताते हुए बच निकलते हैं. महिलाओं को नक्सली संगठन में शामिल करने का फायदा ये होता है कि आमतौर पर महिला होने के कारण उन्हें पुलिस शक की निगाह से नहीं देखती. 


पुलिस के बड़ी चुनौती हैं महिला नक्सली 
संगठन के भीतर महिलाओं के लिए मुश्किल हालात के बावजूद कई ऐसी महिला नक्सल कमांडर हैं, जो झारखंड पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई हैं. झारखंड पुलिस ने कुल 136 नक्सलियों पर इनाम घोषित कर रखा है, इनमें 7 महिला नक्सली भी हैं. इनमें बेला सरकार उर्फ पंचमी उर्फ दीपा सरकार पर 15 लाख, पूनम उर्फ जोवा उर्फ भवानी उर्फ सुजाता पर 15 लाख, बुंडू के बारूहातू की रहने वाली जयंती उर्फ रेखा पर 5 लाख, बुल्लू उर्फ गौरी पर 5 लाख, मेरिना सिरका पर एक लाख, मीता उर्फ नयनतारा उर्फ झुंपा उर्फ परी पर एक लाख रुपए का इनाम घोषित है.


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