Jharkhand Lok Sabha Chunav Result 2024: झारखंड में लोकसभा चुनाव के नतीजे राज्य के बदलते सियासी हालात का संकेत दे रहे हैं. इन नतीजों से वोटों का जो अंकगणित सामने आया है, वह राज्य में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अलार्मिंग है. राज्य की सभी पांच ट्राइबल सीटों पर हार से जहां बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. वहीं वोटों की विधानसभावार गिनती के आंकड़ों में खासे अंतर से पिछड़ जाना झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन को परेशानी में डालने वाला संकेत है.
झारखंड की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल जनवरी 2025 के पहले हफ्ते में पूरा हो रहा है. ऐसे में अगले चार से पांच महीनों के भीतर चुनाव संभावित है. लिहाजा, लोकसभा चुनाव परिणाम के आंकड़ों का आकलन पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ की पार्टियां कर रही हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजों का विधानसभावार विश्लेषण करने पर यह फैक्ट सामने आया है कि राज्य की 81 में से 50 विधानसभा सीटों पर एनडीए को बढ़त हासिल हुई है. राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन को एनडीए से काफी कम मात्र 29 सीटों पर बढ़त मिली है.
दो सीटों पर JBKSS को बढ़त
दो सीटों पर एक नए संगठन जेबीकेएसएस (झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति) को बढ़त हासिल हुई है. अगर विधानसभा चुनाव में भी एनडीए इसी आंकड़े को बरकरार रखने में कामयाब हो जाए तो राज्य की मौजूदा सरकार की जमीन खिसकनी तय है, लेकिन लोकसभा चुनाव की बढ़त को विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रखना एनडीए के लिए कठिन चुनौती है. 2019 के चुनाव में बीजेपी की तत्कालीन रघुवर दास के नेतृत्व वाली सरकार भी उस साल हुए लोकसभा चुनाव की बढ़त से उत्साहित थी. उन्होंने उत्साहित होकर 'अबकी बार 65 पार' का नारा दिया था, लेकिन जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे तो पार्टी मात्र 26 सीटों पर सिमट गई थी और उसे राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी थी.
बीजेपी ने किया ये काम
बीजेपी राज्य में आदिवासियों के लिए रिजर्व 28 में से 26 सीटें हारने की वजह से सत्ता से बाहर हो गई थी. उस वक्त पार्टी नेतृत्व ने स्वीकार किया था कि उनसे झारखंड के आदिवासियों के सेंटिमेंट्स को समझने में चूक हुई है. पार्टी ने इसकी भरपाई के लिए कई कोशिशें की. केंद्र सरकार ने झारखंड के सबसे बड़े जनजातीय नायक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर 'जनजातीय गौरव दिवस' घोषित किया. बीजेपी से 2004 में अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले बाबूलाल मरांडी को वापस पार्टी में सम्मानपूर्वक लाया गया और उन्हें पार्टी की कमान सौंपी गई. आदिवासी कल्याण के लिए केंद्र सरकार की ओर से कई योजनाएं लागू की गई.
सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों पर बीजेपी को शिकस्त
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भगवान बिरसा मुंडा के गांव गए. झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनाई गईं, लेकिन इन तमाम कोशिशों के बाद भी इस लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों पर बीजेपी को शिकस्त मिली. विधानसभावार आंकड़ों पर भी निगाह डालें तो बीजेपी 28 में से 23 ट्राइबल सीटों पर पिछड़ गई है. संकेत साफ है कि आदिवासी बाजेपी से बिदके हुए हैं. उनकी नाराजगी का सबसे बड़ा कारण झारखंड के आदिवासी नेता और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को माना जा रहा है.
"इंडिया" गठबंधन में इस बात को लेकर चिंता
बहरहाल, बीजेपी में अब एक बार फिर झारखंड में आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के लिए नए सिरे से मंथन की तैयारी चल रही है. सत्तारूढ़ जेएमएम-कांग्रेस-राजद के खेमे में सबसे ज्यादा इस बात को लेकर चिंता है कि सरकार के सात मंत्रियों सहित करीब 20 विधायक अपने ही विधानसभा क्षेत्रों में "इंडिया" गठबंधन के प्रत्याशियों को बढ़त दिलाने में नाकाम रहे. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, मंत्री बन्ना गुप्ता, बादल, मिथिलेश ठाकुर, सत्यानंद भोक्ता, बेबी देवी और बसंत सोरेन की विधानसभा सीटों पर भी उनके दल-गठबंधन के प्रत्याशी पीछे रह गए.
केवल चार मंत्री आलमगीर आलम, दीपक बिरुआ, रामेश्वर उरांव और हफीजुल हसन ऐसे रहे, जिनके क्षेत्रों में "इंडिया" गठबंधन के प्रत्याशियों को बढ़त हासिल हुई. विधानसभावार कुल 52 सीटों पर पिछड़ना "इंडिया" गठबंधन के लिए चिंता का विषय है. जाहिर है, विधानसभा चुनाव के लिए यहां भी नई रणनीति पर विचार-विमर्श शुरू हो गया है.