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Jharkhand: सीएम सोरेन और JMM के लिए चुनौती बने बागी विधायक हेंब्रम, पारसनाथ मुद्दे पर सरकार को दिया ये अल्टीमेटम

लोबिन हेंब्रम बोरियो सीट से पांच बार विधायक चुने गए हैं. आदिवासी मतदाताओं के बीच उनके जनाधार को देखते हुए जेएमएम आलाकमान और सीएम सोरेन कुछ भी कहने से बच रहे हैं.

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार (Hemant Soren) और सत्तारूढ़ पार्टी जेएमएम (JMM) के लिए, पार्टी नेता और सीनियर विधायक लोबिन हेंब्रम (Lobin Hembrom) ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. उनके बागी तेवरों से पार्टी पहले भी कई बार असहज हुई है, लेकिन इस बार उन्होंने पारसनाथ पहाड़ी (Parasnath Pahadi) के मुद्दे पर आदिवासियों की विशाल रैली आयोजित कर जिस तरह सीधे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर हमला बोला, वह झारखंड में आने वाले दिनों की राजनीति के लिए एक बड़ा संकेत हो सकता है.

यह सभी जानते हैं कि राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा के राजनीतिक जनाधार का सबसे बड़ा फैक्टर आदिवासी-मूलवासी आबादी है. राज्य के संथाल परगना प्रमंडल में बहुसंख्यक आदिवासी आज भी जेएमएम के अध्यक्ष शिबू सोरेन को देवता नहीं तो किसी देवता से कम नहीं मानते. बीजेपी की लगातार कोशिशों के बावजूद जेएमएम ने इस इलाके में अपने किले को पिछले कई दशकों से बनाए और बचाए रखा है.

सीएम सोरेन नहीं दे रहे विधायक हेंब्रम बयानों को तवज्जो
लेकिन अब व्यावहारिक तौर पर जेएमएम की कमान शिबू सोरेन नहीं, बल्कि उनके बेटे और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के पास है, जो राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं. संथाल परगना के बोरियो क्षेत्र के जेएमएम विधायक लोबिन हेंब्रम पिछले डेढ़-दो साल से हेमंत सोरेन के कई फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं. जेएमएम नेतृत्व या यों कहें कि सीएम हेमंत सोरेन ने लोबिन के तल्ख बयानों पर अब तक कभी खास तवज्जो नहीं दी.

बीजेपी नेता सोशल मीडिया पर सरकार को घेरने में जुटे
शायद लोबिन की गतिविधियों पर उनकी इस चुप्पी के पीछे खास रणनीतिक वजह रही हो लेकिन, इस बार लोबिन हेंब्रम ने पारसनाथ पहाड़ी के मुद्दे को जिस तरह आदिवासियों के धर्म, उनके हक और पहचान के सवाल से जोड़ दिया है. वह जेएमएम के परंपरागत राजनीतिक समीकरण को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है. लोबिन हेंब्रम ने विगत 10 जनवरी को पारसनाथ में सरकार के खिलाफ आदिवासियों के प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए जिस तरह के तेवर दिखाए और जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, उसकी क्लिंपिंग का इस्तेमाल कर अब बीजेपी के नेता भी सोशल मीडिया पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.

लोबिन हेंब्रम ने सरकार को दी ये चेतावनी
पारसनाथ पहाड़ी पर दावेदारी करते हुए आदिवासी संगठनों ने 10 जनवरी को परंपरागत हथियारों के साथ प्रदर्शन किया और विशाल सभा की. पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासियों का पूजा स्थल 'मरांग बुरू' बताते हुए झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने कहा कि वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अल्टीमेटम दे रहे हैं कि आगामी 25 जनवरी तक पारसनाथ पहाड़ी पर आदिवासियों का अधिकार बहाल करें, अन्यथा झारखंड बचाओ मोर्चा के तहत जोरदार आंदोलन होगा. जरूरत पड़ी तो झारखंड भी बंद कराया जाएगा.

बिहारी सलाहकारों से घिरे रहते हैं सीएम- हेंब्रम
लोबिन हेंब्रम ने हेमंत सोरेन पर बिहारी सलाहकारों से घिरे होने का आरोप लगाया और कहा कि ये लोग आदिवासी विरोधी हैं. उन्होंने सीएम के प्रेस सलाहकार अभिषेक पिंटू, जेल में बंद उनके राजनीतिक प्रतिनिधि पंकज मिश्र, सलाहकार सुनील श्रीवास्तव, सुप्रियो भट्टाचार्य आदि का जिक्र करते हुए यहां तक कह दिया कि मन करता है कि इन्हें दस लात मारें. बीजेपी के कई नेताओं ने लोबिन के भाषण की इस क्लिपिंग को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए सीएम पर तंज किया है.

सीएम को हेंब्रम ने दिया ये अल्टीमेटम
पारसनाथ पहाड़ी पर अधिकार को लेकर उठे विवाद के फिलहाल थमने के आसार नहीं दिख रहे. लोबिन हेंब्रम ने इस मुद्दे पर आगामी 30 जनवरी को आदिवासी महानायक बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू और 2 फरवरी को सिदो-कान्हू के बलिदान स्थल भोगनाडीह में उपवास और धरना का ऐलान किया है.

हेंब्रम नए संगठन के साथ जेएमएम के लिए बन सकते हैं खतरा
जाहिर है, इस मुद्दे पर आदिवासियों की भावनात्मक तौर पर गोलबंदी को वे रणनीतिक तौर पर मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, अगर इस प्रयास में उन्हें सफलता मिली तो वे हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली सरकार के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं. लोबिन हेंब्रम आज की तारीख में भले जेएमएम में हैं, लेकिन उन्हें कुछ महीने पहले झारखंड बचाओ मोर्चा नामक एक संगठन बनाया है.

इस संगठन को भले वह फिलहाल गैर राजनीतिक बताते हैं, लेकिन झारखंड की राजनीति के जानकारों का मानना है कि आदिवासी गोलबंदी में उन्हें सफलता मिली तो वे इस संभावना से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि आगामी विधानसभा चुनाव में इस बैनर के तहत वह झामुमो से अलग रास्ता भी अख्तियार कर सकते हैं.

इन मुद्दों पर सरका को घेर चुके हैं हेंब्रम
लोबिन हेंब्रम ने इसके पहले 1932 की खतियान नीति के नाम पर झारखंड के लोगों को ठगने, राज्य में अवैध खनन, विगत सितंबर महीने में सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों को रिज़ॉर्ट में ले जाकर रखने, शराब नीति को लेकर भी अपनी ही सरकार पर हमले बोले हैं. उन्होंने कई बार कहा कि तीन साल में इस सरकार ने आदिवासियों-मूलवासियों के लिए कुछ भी नहीं किया. विधानसभा में भी वह सरकार के खिलाफ कई बार बोल चुके हैं. एक बार वे अपनी सरकार की आलोचना करते हुए विधानसभा में रो पड़े थे.

पांच बार रह चुके हैं हेंब्रम विधायक
लोबिन हेंब्रम संथाल परगना की बोरियो सीट से पांच बार विधायक चुने गए हैं. एक बार जेएमएम ने उनका टिकट काट दिया था तो वे निर्दलीय चुनाव जीत गए थे. अपने इलाके में उनका खासा जनाधार है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि जेएमएम नेतृत्व उनके खिलाफ कार्रवाई से परहेज इसलिए कर रहा है कि इससे उन्हें अपनी शहादत भुनाने और आदिवासियों के एक समूह की सहानुभूति बटोरने का मौका मिल सकता है. ऐसे में पार्टी नहीं चाहती कि उनकी अगुवाई में कोई ऐसा मोर्चा बन जाए, जिसकी वजह से आगामी चुनाव में आदिवासियों के वोटों के बंटवारे की गुंजाइश पैदा हो.

स्टीफन मरांडी ने हेंब्रम के बयानों पर ये कहा
जेएमएम के सीनियर नेता स्टीफन मरांडी इतना जरूर कहते हैं कि लोबिन हेंब्रम को सरकार के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर नहीं बोलना चाहिए. जो भी मुद्दे हैं, उन्हें पार्टी फोरम पर उठाना चाहिए. बहरहाल, जेएमएम के भीतर यह चुनौती जरूर है कि लगातार अपनी ही सरकार को चुनौती दे रहे अपनी ही पार्टी के इस विधायक को कैसे साधा जाए.

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