Jharkhand MP Geeta Koda Reaction Over 1932 khatian: झारखंड (Jharkhand) की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य में डोमिसाइल (Domicile) के लिए नई पॉलिसी के ड्राफ्ट को बुधवार को मंजूरी दे दी है. ये बिल के तौर विधानसभा में पारित कराए जाने और राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून का रूप लेगा. इस पॉलिसी में झारखंड का स्थानीय निवासी (डोमिसाइल) होने के लिए 1932 के खतियान (khatian) की शर्त लगाई गई है. इस पॉलिसी पर पूरे झारखंड में बहस छिड़ गई है और विरोध के स्वर भी सुनाई पड़ने लगे हैं. 
 
सांसद गीता कोड़ा ने जताया विरोध 
राज्य सरकार की तरफ से 1932 खतियान के आधार पर स्थानीय नीति परिभाषित किए जाने के मामले पर चाईबासा से कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा (Geeta kora) ने कहा की वो सीधे तौर पर इसका विरोध करती हैं, कोल्हान का सेटलमेंट सर्वे आखरी बार 1964 और 1967 में हुआ था और 1932 के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने से लाखों लाख लोग इस नीति से वंचित हो जाएंगे. इस कारण मुख्यमंत्री को इसपर विचार कर इसे वापस लेते हुए स्थानीय नीति स्पस्ट करनी चाहिए. 


'कोल्हान जलेगा'
सांसद गीता कोड़ा ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है की अगर इस नीति को स्पस्ट नहीं किया गया तो कोल्हान की धरती आंदोलन से जल उठेगी. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जल्द ही स्पष्ट करें कि 1932 का खतियान चलेगा या फिर लास्ट सर्वे सेटलमेंट होगा. अगर ये मामला जल्द सेटलमेंट नहीं करते हैं तो कोल्हान जलेगा और उसकी जवाबदेही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की होगी. 


झारखंडी होने की शर्त, एक कागज
झारखंड में झारखंडी कहलाने के लिए अब वर्ष 1932 में हुए भूमि सर्वे के कागजात की जरूरत होगी. इस कागजात को खतियान कहते हैं. जो लोग इस कागजात को पेश करते हुए साबित कर पाएंगे कि इसमें उनके पूर्वजों के नाम हैं, उन्हें ही झारखंडी माना जाएगा. झारखंड का मूल निवासी यानी डोमिसाइल का प्रमाण पत्र इसी कागजात के आधार पर जारी किया जाएगा.


ये भी जानें
जिन लोगों के पूर्वज 1932 या उससे पहले से झारखंड की मौजूदा भौगोलिक सीमा में रह रहे थे, लेकिन भूमिहीन होने की वजह से उनका नाम भूमि सर्वे के कागजात (खतियान) में नहीं दर्ज हुआ है, उनके झारखंडी होने की पहचान ग्राम सभाएं उनकी भाषा, रहन-सहन, व्यवहार के आधार पर करेंगी. ग्राम सभा की सिफारिश पर उन्हें झारखंड के डोमिसाइल का सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा. झारखंड की मौजूदा भौगोलिक सीमा में जो लोग 1932 के बाद आकर बसे हैं, उन्हें या उनकी संतानों को झारखंड का डोमिसाइल यानी मूल निवासी नहीं माना जाएगा. ऐसे लोग जिनका जन्म 1932 के बाद झारखंड में हुआ, पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई, जिन्होंने इसके बाद यहां जमीन खरीदी या मकान बनाए, उन्हें भी झारखंडी नहीं माना जाएगा, यानी उनका डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं बनेगा. 


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