Jharkhand News: कोनार नदी पुल पर ग्रामीणों का आवागमन ठप, असामाजिक तत्वों ने तोड़ा पुल, कार्रवाई की मांग
Konar River Bridge News: देश आजाद होने के 75 साल बाद भी बोकारो थर्मल के धार गांव और गोमिया के ससबेड़ा गांव के बीच कोनार नदी पर पुल नहीं बना.
Bokaro News: झारखंड के बोकारो थर्मल और गोमिया के बीच में कोनार नदी बहती है. इस पर कोई ब्रिज आज तक नहीं बना. ग्रामीणों ने आपसी श्रमदान से नदी पर लकड़ी का पुल बनाया. ताकि एक ओर से दूसरी ओर लोगों का आना-जाना संभव हो सके. वर्षों से इसी तरह लकड़ी के पुल के जरिए ग्रामीण आना जाना करते रहे हैं, लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों ने इस पुल को क्षतिग्रस्त कर दिया. असामाजिक तत्वों की इस हरकत से नदी के दोनों छोरों पर रहने वाले लोगों का आपस में संपर्क टूट गया. साथ ही लोगों का आवागमन भी ठप हो गया है. असामाजिक तत्वों के इस सोच के खिलाफ स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है.
लोगों का कहना है कि सरकारी सुविधा नहीं मिली तो लोगों ने खुद पुल बनाया. ताकि बच्चों और तमाम ग्रामीणों को कठिनाई ना हो, लेकिन असामाजिक लोगों ने पुल को क्षतिग्रस्त कर दिया. पुल तोड़े जाने की घटना के बाद से लोग दोषियों की पहचान कर कर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. ग्रामीण जमुना यादव ने बताया कि इस पुल की सहायता से ही कोनार नदी के दोनों ओर बसे ग्रामीण आना जाना करते रहे हैं. बच्चे भी इसी पुल से होकर स्कूल जाते हैं. अब पुल तोड़े जाने के बाद सभी को परेशानी हो रही है.
ग्रामीणों के हंगामे पर पहुंची पुलिस
लकड़ी का पुल क्षतिग्रस्त किए जाने से आक्रोशित ग्रामीणों ने बोकारो थर्मल थाने के समक्ष विरोध जबरदस्त प्रदर्शन किया. ग्रामीण दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. ग्रामीणों के आक्रोश को देखते हुए बोकारो थर्मल थाना के पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और घटनास्थल का जायजा लिया. मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी प्रभास कुमार ने बताया कि किसी ने जान बूझकर लकड़ी के पुल को तोड़ने का काम किया है. उन्होंने ग्रामीणों को भरोसा दिया कि जल्द ही दोषियों कि पहचान कर उनकी गिरफ्तारी कि जाएगी.
75 वर्षों बाद भी नहीं बना पुल
बता दें कि देश आजाद होने के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी बोकारो थर्मल के धार गांव और गोमिया के ससबेड़ा गांव के बीच कोनार नदी पर पुल नहीं बना. वर्षों से यहां के ग्रामीण उपेक्षा के शिकार हैं. बच्चों को स्कूल जाने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. लिहाजा दोनों छोर के ग्रामीणों ने आपसी श्रमदान कर नदी के ऊपर लकड़ी के पुल का निर्माण किया. जिससे ना सिर्फ यहां के रोजमर्रा के कामकाजी लोगों को सुविधा हुई, बल्कि स्कूल जाने वाले बच्चे भी आराम से नदी पर कर स्कूल जाने लगे.
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