Jharkhand News: झारखंड (Jharkhand) के दुमका (Dumka) में एक SHG महिलाओं के लिए sanitary pad का निर्माण कर रही है. यह महिला दुमका के उन गरीब आदिवासी के माहवारी में हो रहे infection को बचाने के लिए सस्ते दामों पर Napkin तैयार कर रही है यही नहीं घर में बैठ कर महिलाएं Hygienic pad बना रही हैं. जिससे उनको रोजगार भी मिल रहा है.


2018 में आई थी फिल्म
वर्ष 2018 में एक फिल्म आई थी पैडमैन जिसमे अक्षय कुमार और सोनम कपूर ने माहवारी के दौरान होने वाले इंफेक्शन से बचाने के नैपकिन पैड बनाकर महिलाओं के बीच सस्ते दामों में बेचा करते थे. यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय जगत में भी अपनी छाप छोड़ी और पुरी दुनिया की महिलाओं को जागरूक भी किया. 


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फिल्म से मिली प्रेरणा
इसी फिल्म की तरह वास्तविक जीवन में सच्चाई से रूबरू कराता चैतन्य झारखण्ड नामक एक एनजीओ है. जो झारखंड के दुमका स्थित बन्दर जोड़ी मुहल्ले में सिनेटरी पेड का निर्माण कर रहा है. यह एनजीओ घर घर जाकर महिलाओं को जागरूक कर उन्हें सस्ते दामों पर नैपकिन पैड उपलब्ध कराती है. स्त्री स्वाभिमान नाम से बना रहे नैपकिन में "सहयोगी हाथ सखी मंडल " के महिला समूह में करीब बीस से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं. जो अपने हाथो से को बड़ी कुशलता के साथ काट छांट कर उसे फिर मशीनों में सनराइज करती है. इसके बाद तैयार हुए नैपकिन को पैकिंग करती है. पैक हुए नैपकिन को घर-घर ले जाकर महिलाओं को जागरूक करती हैं. इसमें काम करने वाली महिलाएं बताती है कि इस काम से रोजगार के साथ-साथ समाज की सेवा भी कर रही है.
 
पति ने किया पूरा सहयोग
इस एनजीओ को संचालित करने वाली श्वेता झा ने ABP NEWS को बताया कि अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन को देखकर मैने भी गरीब महिलाओं और समाज के लिए काम करने की ठानी. श्वेता बताती हैं कि उनके पति ने पूरा सहयोग किया. इसके साथ ही उनके पति ने नैपकिन तैयार करने वाली करीब ढाई लाख की मशीन और इसमें इस्तेमाल होने वाले सामग्री खरीदा. श्वेता बताती हैं कि इस मुहिम चलाने के लिए महिलाओं का एक समूह बनाकर उन्हें प्रशिक्षित किया गया. इनमें से कुछ महिलाएं घर-घर जाकर ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करने के साथ ही सस्ते दाम पर पैड भी देती थी. इस समूह में अब तक करीब 20 महिलाएं जुड़ चुकी है. इन महिलाओं द्वारा प्रतिदिन 500 नैपकिन पैड बनाया जाता है. इस पैड को बनाते वक्त इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि यह पुरी तरह से हाइजेनिक और सुरक्षित हो. हालांकि बाजार में जागरुकता न होने का कारण इसका बिक्री कम हो रही है. संचालिका का कहना है कि पैड को आवासीय विद्यालयों में सरकार के तरफ से सप्लाई की अनुमति मिल जाती तो और अधिक महिलाओं को रोजगार मिल जाता.


महिलाओं में नहीं है जागरूकता
संताल परगना गरीब और आदिवासियों का इलाका माना जाता है. और यहाँ स्वास्थ्य ,शिक्षा और रोजगार के साधन से पूरी तरह लोग उपेक्षित है. छोटी से छोटी बीमारियों के इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टर पर निर्भर रहना पड़ता है. कई ऐसे भी लोग हैं जो संकोच के वजह से इलाज नहीं कराते है ऐसे में दुमका की श्वेता झा ने फिल्म देखकर महिलाओं को होने वाली इंफेक्शन के खतरे से बचाने का संकल्प लिया है और महिलाओं को सस्ते दर पर नैपकिन पैड तैयार कर समाज सेवा के साथ रोजगार का भी जरिया बना दिया जो अपने आप में काबिले तारीफ है.


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