New Year 2023: अंग्रेजी कैलेंडर की पहली तारीख को पूरा विश्व जश्न में सराबोर रहता है. वहीं भारत के झारखंड में एक ऐसा जिला है जहां सदियों से लोगों ने नए साल का जश्न नहीं देखा है. हम बात कर रहे हैं झारखंड के सबसे बड़े औद्योगिक जिले सरायकेला खरसावां की. यहां एक ऐसा स्थान है जहां हर बरस शहीदों के नाम पर एक जनवरी को मेला लगता है, जिसमें पूरे झारखंड और उड़ीसा के आदिवासी जनजातीय समुदाय के लोग शामिल होते हैं.


यही नहीं झारखंड के मुख्यमंत्री चाहे वह किसी भी दल से हों हर साल इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति अनिवार्य समझते हैं. इस बार भी मौके पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पूरे कैबिनेट के साथ खरसावां के समाधि स्थल पहुंचेंगे और वहां पारंपरिक तरीके से शहीदों की समाधि पर श्रद्धांजलि भी अर्पित करेंगे. इसे लेकर प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है.


क्या है पूरी कहानी
1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था, तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां व सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी. इस दौरान एक जनवरी 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां व सरायकेला को ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आह्वान किया था. 


सैकड़ों लोग हुए थे शहीद
विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे. एक जनवरी 1948 का दिन गुरुवार और साप्ताहिक बाजार-हाट का दिन था इस कारण भीड़ काफी अधिक थी, लेकिन किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके. रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल भी तैनात थी. इसी दौरान पुलिस व जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया तभी अचानक फायरिंग शुरू हो गई और पुलिस की गोलियों से सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हो गए.



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