Jharkhand Kauleshwari Shiva Temple: तीर्थ और पर्यटन के लिहाज से कौलेश्वरी पर्वत की ख्याति पूरी दुनिया में है. ये स्थान माता कौलेश्वरी (Kauleshwari) के दिव्य दर्शन के साथ भगवान शिव की आराधना के लिए भी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि, पर्वत के शिखर पर महाभारत (Mahabharat) कालीन शिव मंदिर है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी. 2 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कौलेश्वरी पर्वत के शिव मंदिर (Shiva Temple) में जलाभिषेक के लिए पहाड़ पर एक प्राकृतिक सरोवर बना हुआ है. यहां स्नान कर श्रद्धालु जल लेकर भीगे बदन ही भगवान शिव का अभिषेक करते हैं. हर सोमवार को कौलेश्वरी पर्वत के शिव मंदिर में विशेष भजन-कीर्तन होता है. रविवार को ही श्रद्धालु यहां पहुंच जाते हैं और रात भर कीर्तन करते हैं. अगले दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के बाद वापस लौटते हैं.
आस्था का केंद्र हैं माता कौलेश्वरी
कहा जाता है कि महाभारत काल में ये राजा विराट की राजधानी थी. राजा विराट ने ही मां कौलेश्वरी की प्रतिमा को स्थापित किया था. तब से लेकर आज तक मां कौलेश्वरी जन-जन की आस्था का केंद्र बनी हुई हैं. बौद्ध धर्म के लोगों के लिए ये पहाड़ भगवान बुद्ध की तपोभूमि के साथ-साथ मोक्ष प्राप्त करने का एक पवित्र स्थल है. यहां के मांडवा-मांडवी नाम के स्थल पर बौद्ध धर्मावलंबी बाल और नाखून का दान कर मोक्ष प्राप्त करने का संस्कार करते हैं. पहाड़ के कई पाषाणों में बौद्ध भिक्षुओं की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं.
विदेशों के आते हैं पर्यटक
कौलेश्वरी पर्वत पर हर साल चीन, बर्मा, थाईलैंड, श्रीलंका, ताइवान जैसे तमाम देशों से काफी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं. इस पर्वत का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है. मनोहारी वादियों के बीच मां कौलेश्वरी मंदिर, शिव मंदिर, जैन मंदिर और बौध स्थल स्थित है. इनके इर्द-गिर्द स्थित 3 झीलनुमा तालाबों की नैसर्गिकता शानदार नजारा पेश करती है.
खाली हाथ पहुंचते हैं श्रद्धालु
कौलेश्वरी पहाड़ गया अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से 45 किमी, जीटी रोड पर डोभी से 25 किमी दूर है. हंटरगंज मुख्यालय से इसकी दूरी 7 किमी और चतरा से ये 37 किमी दूर है. यहां ऑटो या निजी वाहन से आ सकते हैं. कौलेश्वरी पर्वत के शिव मंदिर में भोले का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं को अपने साथ कुछ भी ले जाने की आवश्यकता नहीं है. मंदिर के इर्द-गिर्द पूजा सामग्री उपलब्ध हो जाती है. श्रद्धालु शिव तालाब में डुबकी लगाकर मंदिर प्रांगण से फूल, बेलपत्र, जल लेते हैं और भगवान को अर्पण करते हैं.
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