Jharkhand की सत्ता में साझीदार कांग्रेस का हाल? मंत्री बन्ना गुप्ता खुद जता चुके हैं बड़ा खतरा
Jharkhand में कांग्रेस सत्ता में साझीदार है लेकिन पावरफुल नहीं. कांग्रेस के मंत्रियों, पार्टी के विधायकों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी इसका अहसास है. कई मौकों पर दर्द सामने भी आ चुका है.
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Jharkhand Congress Politics: झारखंड में एक बार फिर सियासी पारा चढ़ा हुआ है. जमशेदपुर से आई एक तस्वीर ने सूबे की राजनीति में हलचल मचा दी है. यहां, दुर्गा पूजा के एक पंडाल में पहुंचे कांग्रेस नेता और राज्य के स्वास्थय मंत्री पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास (Raghuvar Das) के पैर छूते हुए नजर आए. अब इस तस्वीर को लेकर सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. खौर हो चाहे जो भी लेकिन हकीकत तो यही है कि, झारखंड (Jharkhand) में पौने तीन साल से चल रही गठबंधन सरकार में कांग्रेस (Congress) पार्टनर जरूर है, लेकिन सरकार के भीतर-बाहर वो कभी पावरफुल नहीं नजर आई.
कई मौकों पर छलका कांग्रेसियों का दर्द
झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-राजद सरकार के तमाम बड़े फैसलों में जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) अपनी शोमैनशिप की छाप छोड़ने में कामयाब रहे, वहीं उनके बगल में खड़ी कांग्रेस कभी मर्जी तो कभी मजबूरी में सहमति की मुद्रा में सिर हिलाती नजर आई. कांग्रेस कोटे के मंत्रियों, पार्टी के विधायकों और नेताओं-कार्यकर्ताओं को भी अपनी सियासी मजबूरी-कमजोरी का अहसास है. कई मौकों पर बयानों-भाषणों में उनका ये दर्द छलक भी उठता है.
एकमत नजर नहीं आई कांग्रेस
हेमंत सोरेन सरकार ने इसी महीने कैबिनेट की बैठक में 1932 के कटऑफ डेट वाली राज्य की नई डोमिसाइल पॉलिसी पर मुहर लगाई तो कांग्रेस इस पर एकमत नहीं दिखी. पार्टी के कई नेता अपनी ही सरकार के इस फैसले के खिलाफ मुखर तौर पर सामने आए. कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा, उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और झरिया की कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने इस पॉलिसी को अव्यावहारिक करार दिया.
बन्ना गुप्ता कहते रहे हैं ये बात
कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता इस पॉलिसी पर मुहर लगाने वाली कैबिनेट की बैठक में शामिल थे, लेकिन इसके दूसरे दिन से ही कहते फिर रहे हैं कि झारखंड में रहने वाला हर व्यक्ति झारखंडी है. वो जोर देकर कह रहे हैं कि यहां कोई बाहरी-भीतरी नहीं है, जबकि डोमिसाइल पॉलिसी में ये प्रावधान किया गया है कि जिन लोगों के पूर्वजों के नाम राज्य में 1932 में जमीन सर्वे के कागजात (खतियान) में नहीं होंगे, उन्हें झारखंड का डोमिसाइल यानी स्थानीय निवासी नहीं माना जाएगा.
'कांग्रेस को खत्म करने पर तुले हैं हेमंत सोरेन'
इसी साल फरवरी में कांग्रेस ने गिरिडीह 3 दिनों का चिंतन शिविर आयोजित किया था, जिसमें कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता ने यहां तक कह दिया था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ही राज्य में कांग्रेस को खत्म करने पर तुले हैं. इस शिविर में कई अन्य नेताओं ने कहा था कि सरकार के भीतर पार्टी बेचारी बनकर रह गई है. इस शिविर के बाद पार्टी के नेताओं की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ बैठक हुई. सरकार के गठबंधन दलों की को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाने का फैसला हुआ और फिर सबकुछ काफी हद तक सामान्य हो गया.
सीएम हेमंत सोरेन ने लिया एकतरफा निर्णय
इसके पहले मई-जून महीने में राज्यसभा की एक सीट पर दावेदारी को लेकर कांग्रेस और झामुमो के बीच तकरार कदर बढ़ गई थी. कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से दिल्ली में मुलाकात के अगले ही रोज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झामुमो की ओर से एकतरफा निर्णय लेकर अपनी पार्टी का प्रत्याशी उतार दिया था. इस पर कांग्रेस ने पहले गहरी नाराजगी जताई और राज्यसभा प्रत्याशी के नामांकन के दौरान पार्टी ने झामुमो से दूरी बना ली. तब ऐसा लगा कि राज्य में झामुमो और कांग्रेस की साझीदारी पर आंच आ सकती है, लेकिन 2 दिन बाद ही जब राज्यसभा चुनाव का रिजल्ट आया तो कांग्रेस गिले-शिकवे भूलकर झामुमो उम्मीदवार महुआ माजी की जीत के जश्न में शरीक थी.
यहां भी बैकफुट पर नजर आई कांग्रेस
जुलाई महीने में राष्ट्रपति चुनाव में झामुमो ने जब अप्रत्याशित तौर पर बीजेपी की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट का फैसला लिया, तो कांग्रेस नेताओं ने उसे यूपीए गठबंधन धर्म की याद जरूर दिलाई. लेकिन, इसे सियासी मजबूरी ही कहेंगे कि कांग्रेस इस मुद्दे पर सीधे-सीधे झामुमो से कुट्टी करने की स्थिति में नहीं थी. बल्कि, राष्ट्रपति चुनाव में उल्टे कांग्रेस के 18 में से 9 विधायकों ने पार्टी के निर्देश को दरकिनार पर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी. कांग्रेस नेतृत्व ने कहा कि क्रॉस वोटिंग करने वाले पार्टी विधायकों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन कुछ ही दिनों में यह बात 'आई-गई' हो गई.
कांग्रेस कोटे हैं 4 मंत्री
हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस कोटे के 4 मंत्री हैं- आलमगीर आलम, डॉ रामेश्वर उरांव, बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख. पार्टी के कई विधायक और नेता अपनी ही पार्टी के मंत्रियों की कार्यशैली पर नाराजगी जताते रहे हैं. पार्टी के भीतर मंत्रियों को बदलने की आवाज भी कई बार उठ चुकी है. कुछ महीने पहले तय हुआ था कि पार्टी के मंत्री प्रत्येक शनिवार को पार्टी कार्यालय में जनता दरबार लगाएंगे. इसकी शुरुआत भी हुई, लेकिन तीन-चार हफ्ते में ही ये सिलसिला बंद हो गया. राज्य में कांग्रेस के 18 विधायकों में 5 महिलाएं हैं. महिला विधायकों की शिकायत है कि, पहली बार इतनी संख्या में जीतकर आने के बाद भी प्रदेश सरकार में किसी महिला विधायक को मंत्री पद नहीं मिला.
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