Jharkhand Politics: राज्यपाल के 'एटम बम' वाले बयान पर बढ़ी सियासी तकरार, JMM और कांग्रेस ने किया पलटवार
Jharkhand Politics: 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' से जुड़े मसले पर राज्यपाल रमेश बैस का बयान सामने आने के बाद राज्य में सियासी सरगर्मी बढ़ गई है. जेएमएम (JMM) और कांग्रेस ने भी प्रतिक्रिया दी है.
Jharkhand Politics Over Office of Profit Case: झारखंड (Jharkhand) में एक बार फिर सियासी पारा चढ़ गया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' से जुड़े मसले पर राज्यपाल रमेश बैस (Ramesh Bais) के बयान पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) और कांग्रेस (Congress) ने पलटवार किया है. जेएमएम नेता सुप्रियो भट्टाचार्य (Supriyo Bhattacharya) कहा है कि हम कारपेट बॉम्बिंग करेंगे. वहीं कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि राज्यपाल का बम डिफ्यूज हो चुका है.
क्या बोले राज्यपाल?
गौरतलब है कि, राज्यपाल रमेश बैस ने 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' मामले को लेकर कहा था कि, इस मामले में उन्होंने चुनाव आयोग (Election Commission) से सेकंड ओपिनियन मांगा है. आयोग का ओपिनियन आने के बाद वो अपने संवैधानिक अधिकारों के अनुसार सोचेंगे कि उन्हें क्या फैसला लेना है. राज्यपाल ने यहां तक कहा था कि, झारखंड में एकाध एटम बम फट सकता है.
'बाध्य नहीं किया जा सकता'
बता दें कि, राज्यपाल ने रायपुर में एक निजी चैनल से बातचीत में कहा था कि मैं एक संवैधानिक पद पर हूं. मुझे संविधान के अनुसार चलना है. मैं नहीं चाहता कि कोई मुझपर ये आरोप लगाए कि मेरा फैसला बदले की भावना से लिया गया है. यदि सरकार को अस्थिर करने की मंशा होती तो निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर निर्णय ले सकता था. यही वजह है कि मैंने सेकेंड ओपिनियन मांगा है. उन्होंने कहा कि जब तक गवर्नर संतुष्ट नहीं हो जाये तब तक ऑर्डर करना ठीक नहीं है. बैस ने कहा कि राज्यपाल को ये अधिकार है कि चुनाव आयोग के ओपिनियन पर वो कब निर्णय करें. इसके लिए उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता.
'ये संवैधानिक मामला है'
राज्यपाल ने कहा कि चुनाव आयोग के मंतव्य का पत्र मेरे पास आया तो राज्य में सियासी हलचल चालू हो गई. झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रतिनिधि मंडल ने आकर मुझसे आयोग के मंतव्य की कॉपी मांगी. ऐसा प्रावधान नहीं है कि उन्हें मंतव्य की कॉपी दे दी जाए. उन्होंने चुनाव आयोग से भी ऐसी मांग रखी, लेकिन आयोग ने इनकार कर दिया. ये संवैधानिक मामला है. संवैधानिक संस्थाओं पर दबाव बनाकर उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता.
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