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Jharkhand News: क्या झारखंड है ऑपरेशन कमल का अगला निशाना? JMM का ये फैसला हो सकता है कांग्रेस से दूरी की वजह

Jharkhand Politics News: अमित शाह से हेमंत सोरेन की मुलाकात बंद कमरे में लगभग एक घंटे तक चली थी. दोनों के बीच किन-किन मुद्दों पर बात हुई, इसकी खबर किसी को नहीं, लेकिन बाहर कई तरह की चर्चा हो रही है.

Jharkhand Politics News: क्या महाराष्ट्र (Maharashtra) के बाद ऑपरेशन कमल का अगला पड़ाव झारखंड (Jharkhand) है? सियासत के गलियारे में इन दिनों इस सवाल की गूंज बहुत गहरी है. संभावनाओं और चर्चाओं पर यकीन करें तो झारखंड में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने पेश होने वाली है. राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) की अगुवाई में चल रही सरकार में कांग्रेस (Congress) दूसरी बड़ी सहयोगी है. उसके सामने एक तरफ झामुमो के साथ तालमेल बरकरार रखने और दूसरी तरफ अपने सभी 18 विधायकों को एकजुट रखने का कठिन चैलेंज है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच हाल में हुई मुलाकात के बाद कांग्रेस के कान खड़े हैं. बताया गया कि हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति चुनाव में अपनी पार्टी का स्टैंड तय करने के पहले अमित शाह से मुलाकात का वक्त लिया था. बाद में इसी दिन उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से भी मुलाकात की थी. सामान्य तौर पर झामुमो यूपीए फोल्डर की पार्टी है, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में वह एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का मन बना चुकी है.

झामुमो का ये फैसला बन सकता है कांग्रेस से दूरी की वजह

इसकी वजह यह कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए पहली आदिवासी महिला उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है और अगर झामुमो उनके खिलाफ मतदान करता है तो उसके आदिवासी विरोधी होने का नैरेटिव आसानी से सेट किया जा सकता है. आदिवासी फैक्टर झामुमो की राजनीति का सबसे मूल आधार है और वह कतई नहीं चाहेगा कि इसे कोई नुकसान पहुंचे. झामुमो ने अब तक आधिकारिक तौर पर अपने स्टैंड का खुलासा नहीं किया है, लेकिन यह तय है कि एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने के उसका यह संभावित निर्णय कांग्रेस से उसकी दूरी बढ़ायेगा.

अमित शाह से हेमंत सोरेन की मुलाकात बंद कमरे में लगभग एक घंटे तक चली थी. दोनों के बीच किन-किन मुद्दों पर बात हुई, इसकी खबर किसी को नहीं, लेकिन बाहर कई तरह की संभावनाओं पर चर्चा हो रही है. खास बात यह कि इस मुलाकात के छह दिन गुजर चुके हैं और इसके बाद से ही झामुमो और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच पहले जैसी तल्ख बयानबाजियों का सिलसिला बंद है. इसके पहले बीते कुछ महीनों से सीएम हेमंत सोरेन, उनकी पार्टी और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच संगीन आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा था.

बीजेपी पर बोलने से बच रहे हैं सीएम सोरेन

सीएम हेमंत सोरेन ने पिछले तीन दिनों में लगभग आधा दर्जन सार्वजनिक समारोह में शिरकत की और कई जनसभाओं को भी संबोधित किया, लेकिन उन्होंने अपने भाषणों में केंद्र सरकार या बीजेपी के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा. इसके पहले अपने भाषणों में वह बीजेपी पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. ऐसे में कयास यह लग रहा है कि एनडीए और झामुमो के बीच दोस्ती के एक नये रिश्ते की शुरूआत हो रही है. यह रिश्ता अगर आगे बढ़ा तो झामुमो के साथ कांग्रेस की साझेदारी पर संकट खड़ा होगा.

चर्चा है कि यह झारखंड में ऑपरेशन कमल की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. आपको बता दें कि भाजपा और झामुमो के बीच झारखंड में पहले भी दोस्ताना रहा है. 2009 से 2012 के बीच दोनों दलों की साझेदारी से राज्य में सरकार बनी थी. इस दौरान एक बार झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और दूसरी बार बीजेपी के अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने थे. मुंडा के नेतृत्व वाली सरकार में हेमंत सोरेन उपमुख्यमंत्री हुए थे. वरिष्ठ पत्रकार और रांची से प्रकाशित दैनिक अखबार के संपादक हरिनारायण सिंह कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. झारखंड में भी भविष्य में सत्ता समीकरण में बदलाव आये तो कोई अचरज नहीं.

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झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन में आ चुकी हैं मतभेद की ख़बरें

राज्य में झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन की मौजूदा सरकार पिछले ढाई साल से चल रही है, लेकिन इस दौरान कई बार आपसी मतभेद सामने आये हैं. मसलन, राज्य में 12वें मंत्री के सवाल पर कांग्रेस और झामुमो के बीच कई बार जिद पैदा हुई है. 82 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में सत्ताधारी गठबंधन का संख्या बल 49 है. इनमें झामुमो के 30, कांग्रेस के 18 और राजद का एक विधायक है. राज्य में फिलहाल 11 सदस्यीय मंत्रिमंडल है. इसमें झामुमो कोटे से मुख्यमंत्री सहित छह, कांग्रेस कोटे से चार और राजद कोटे का एक मंत्री है.

नियमानुसार राज्य मंत्रिमंडल में 12 मंत्री हो सकते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक बर्थ शुरू से खाली रखा है. कांग्रेस जब-तब 12वें मंत्री के बर्थ पर दावेदारी पेश करती है, लेकिन झामुमो इसे मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार बताकर उसका दावा खारिज कर देता है. झामुमो के महासचिव और केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि मंत्रिमंडल में किसे जगह देनी है, यह तय करने का अधिकार सीएम के सिवा किसी के पास नहीं है।.12वां मंत्री बनाने का फैसला अगर हुआ तो उसपर कांग्रेस की तुलना में झामुमो का दावा ज्यादा मजबूत है.

12वें मंत्री पद पर कांग्रेस ठोक रही है दावा

दूसरी तरफ झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि 12वें मंत्री के पद पर दावा तो हमारी पार्टी का बनता है, लेकिन हम ऐसी किसी भी दावेदारी पर गठबंधन के भीतर ही बात करेंगे. हमारी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ऐसे मसले पर उचित निर्णय लेने में सक्षम है. गठबंधन के भीतर कांग्रेस के सामने शुरू से यह चुनौती रही कि वह कैसे अपनी पार्टी के हितों को ज्यादा से ज्यादा साध पाये, लेकिन इन ढाई वर्षों में वह सरकार के भीतर कभी बहुत प्रभावी भूमिका में नहीं दिखी. सरकार की ओर से लिये गये ज्यादातर अहम फैसलों में झामुमो का निजी स्टैंड प्रभावी रहा.

राज्य में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भाषाई नीति, स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण की नीति जैसे मसलों पर कांग्रेस की ओर से तीव्र आपत्ति के बावजूद सरकार के झामुमो के समीकरणों के हिसाब से मजबूत फैसले लिये. कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता, कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह, ममता देवी, इरफान अंसारी, प्रदीप यादव सहित कई नेता सरकार के फैसलों और स्टैंड पर खुलकर नाराजगी का इजहार करते रहे हैं.

कांग्रेस के विधायकों के टूटने का है खतरा

इसी महीने हुए राज्यसभा की दो सीटों के लिए हुए चुनाव के दौरान भी झामुमो और कांग्रेस के बीच गहरा मतभेद खड़ा हो गया था. राज्यसभा की सीट पर कांग्रेस ने शुरू से अपनी दावेदारी पेश की थी. इस मुद्दे पर हेमंत सोरेन की दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ मुलाकात भी हुई थी, लेकिन बाद में उन्होंने रांची लौटकर अपनी पार्टी का प्रत्याशी उतार दिया. इसपर कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय सहित पार्टी के तमाम नेताओं ने शुरूआत में गहरी नाराजगी जतायी, लेकिन बाद में उसके तेवर ढीले पड़ गये.

झामुमो प्रत्याशी महुआ माजी के नामांकन का अघोषित तौर पर बहिष्कार करने वाली कांग्रेस दो दिन बाद ही झामुमो प्रत्याशी की जीत के जश्न में शामिल हुई. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि कांग्रेस खुद से झारखंड की सत्ता से दूर होने का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं है. ऐसा होने पर पार्टी के विधायकों के टूटने का खतरा है.

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