Politics Over Ranchi Violence Accused Posters: रांची में हिंसा और उपद्रव के आरोपियों की तस्वीरों की होर्डिंग्स लगाने और करीब एक घंटे बाद इन्हें हटा लिए जाने पर सियासत गरमा गई है. सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) एवं कांग्रेस (Congress) और प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी (BJP) के बीच इसे लेकर जुबानी जंग छिड़ गई है. पूरे मामले में राज्यपाल, राज्य सरकार और पुलिस के स्टैंड पर भी बहस खड़ी होती दिख रही है. बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) के बयान को लेकर रांची (Ranchi) में 10 जून को विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. मेन रोड में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने अचानक पथराव शुरू कर दिया था और जवाब में पुलिस ने फायरिंग की थी, जिसमें 2 की मौत (Death) हुई थी और दर्जनों घायल हुए थे. इनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे. इसी घटना को लेकर झारखंड (Jharkhand) के राज्यपाल रमेश बैस (Ramesh Bais) ने बीत सोमवार को राज्य के डीजीपी सहित कई अफसरों को राजभवन तलब पर उपद्रव-हिंसा के आरोपियों की तस्वीरों की होर्डिंग्स लगाने का निर्देश दिया था. इसके अगले ही दिन मंगलवार को पुलिस ने उपद्रव के 3 दर्जन आरोपियों की तस्वीरों के साथ पोस्टर जारी किए और इनकी होर्डिंग्स भी लगाई, लेकिन करीब एक घंटे बाद ही इन्हें हटा लिए जाने पर सवाल खड़े होने लगे. 


JMM ने जताई आपत्ति
दरअसल, होर्डिंग्स जब लगाए जा रहे थे, लगभग उसी वक्त राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसपर आपत्ति जताई थी. पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता और पार्टी के रणनीतिकार सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि ऐसे पोस्टर लगाने से सामाजिक-सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा. भट्टाचार्य के इस बयान के तुरंत बाद रांची पुलिस ने होर्डिंग्स हटा ली. रांची के एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा का कहना है कि पोस्टर में कुछ तकनीकी खामियां रह गई थी. संशोधन के बाद नए सिरे से होर्डिंग्स लगाई जाएंगी. 


बीजेपी ने सरकार को घेरा 
बुधवार को इस मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सरकार पर हमला बोला. पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि राज्य की मौजूदा सरकार सांप्रदायिक शक्तियों के आगे नतमस्तक हो गई है. पुलिस और जिला प्रशासन भी सरकार के अनुचित दबाव में है. यही वजह है कि राज्यपाल के निर्देश पर पुलिस प्रशासन ने उपद्रवियों के पोस्टर लगाए, लेकिन दबाव में इसे हटा लिया. आखिर किसके आदेश पर पोस्टर हटाए गए, ये जांच का विषय है. ये पुलिस मैनुअल में भी है कि बड़ी वारदातों में शामिल अपराधियों के पोस्टर शहर के चौक-चौराहे पर चिपकाए जाएं. पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि उपद्रवियों के पोस्टर झामुमो के दबाव में उतारे गए हैं. सत्ता में बैठे लोग इस जोड़-घटाव में जुटे हैं कि वोट बैंक के तुष्टिकरण की उनकी पॉलिसी को नुकसान ना पहुंचे, भले शहर को आग में झोंकने वाले उपद्रवियों को बचाकर इसकी कीमत चुकाई जाए. 


'पोस्टर लगाकर किसी को अपराधी नहीं बताया जा सकता'
इधर, सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं का इस घटनाक्रम पर अलग नजरिया है. झारखंड के वित्त मंत्री एवं पूर्व आईपीएस डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा है कि जब तक अपराधी तय नहीं हो जाते, तब तक पोस्टर लगाकर किसी को अपराधी नहीं बताया जा सकता. घटना के दिन जो पुलिस ने फायरिंग की, जैसी  कार्रवाई की, उसके बारे में वो कुछ नहीं कह सकते क्योंकि उनका अनुभव है कि ऐसे मामलों में परिस्थिति के आधार पर पुलिस को कई बार मैनुअल की किताब से अलग भी निर्णय लेना पड़ता है.


'पोस्टर लगाना ठीक नहीं'
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि रांची की हिंसा दुखद है, लेकिन हमारा प्रयास होना चाहिए कि सबसे पहले शांति व्यवस्था बहाल हो. उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने पुलिस अफसरों को तलब कर जो कुछ भी कहा, उसे सुझाव के तौर पर लेना चाहिए था. तत्काल पोस्टर लगाने की कार्रवाई ठीक नहीं है. जब राज्य की चुनी हुई सरकार ने पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए 2 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, तो इसका इंतजार तो किया ही जाना चाहिए.


पुलिस को संयमित होकर उठाना चाहिए
रांची में मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन इस्लामिया के अध्यक्ष रहे मोहम्मद इबरार अहमद ने कहा कि पुलिस को कोई भी कदम संयमित होकर उठाना चाहिए. कोई भी ऐसा कदम नहीं उठना चाहिए जिससे बेकसूर लोगों पर अपराधी होने की तोहमत लग जाए.


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