Sohari Kohbar Painting: झारखंड की 5 हजार साल पुरानी सोहराई-कोहबर चित्रकला को मिला जीआई टैग, जानें- खास बात
Jharkhand News: झारखंड (Jharkhand) की 5 हजार साल पुरानी सोहराई-कोहबर चित्रकला को भारत सरकार (Indian Government) ने इसके ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई टैग) को मान्यता देते हुए रजिस्टर्ड कर लिया है.
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Jharkhand Five Thousand Year old Sohari Kohbar Painting: झारखंड (Jharkhand) की 5 हजार साल पुरानी सोहराई-कोहबर चित्रकला (Sohari Kohbar Painting) को अब स्थायी और मुकम्मल पहचान मिल गई है. भारत सरकार (Indian Government) ने इसके ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई टैग) को मान्यता देते हुए रजिस्टर्ड कर लिया है. झारखंड के लिए ये उपलब्धि इस मायने में भी बड़ी है कि राज्य को किसी भी क्षेत्र में पहला जीआई टैग प्राप्त हुआ है.
सोहराई-कोहबर चित्रकला विशिष्ट श्रेणी में हुई शामिल
बता दें कि, देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कला, संस्कृति, धरोहर और विशिष्ट वस्तुओं के लिए अब तक लगभग 700 जीआई टैग जारी किए गए हैं. सोहराई-कोहबर चित्रकला भी अब इसी विशिष्ट श्रेणी में शामिल हो गई है. भारत सरकार के रजिस्ट्रार ऑफ ज्योग्राफिकल इंडिकेशन की ओर से जीआई टैग का प्रमाण पत्र झारखंड के डिपूगढ़ा हजारीबाग स्थित सोहराई कला महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के नाम पर जारी किया है. समिति को विगत 3 नवंबर को ये प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ.
ये रिकॉर्ड है
समिति की ओर से सोहराई-कोहबर चित्रकला को जीआई टैग प्रदान करने की दावेदारी का केस रजिस्ट्रार ऑफ ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के समक्ष अधिवक्ता डॉ सत्यदीप सिंह ने पेश किया था. डॉ सत्यदीप ने आईएएनएस को बताया कि पूरे देश का ये पहला केस है, जिसमें रिकॉर्ड 9 महीने की अवधि में ही जीआई टैग प्रदान कर दिया गया है. सोहराई-कोहबर के लिए जीआई टैग का केस हजारीबाग के तत्कालीन स्थानीय उपायुक्त रविशंकर शुक्ल की पहल पर फाइल किया गया था. कोलकाता के 'रोसोगुल्ला' और बिहार की मधुबनी पेंटिंग की तरह अब झारखंड की इस प्राचीन चित्रकला को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की विशिष्ट बौद्धिक संपदा के रूप में पेश किया जा सकेगा.
5000 वर्षों से अधिक पुराना है इतिहास
बता दें कि, सोहराई झारखंड के आदिवासी-मूलवासी समुदाय का त्योहार है. इस त्योहार के मौके पर घरों की दीवारों पर कलात्मक चित्र उकेरे जाते हैं. इसी तरह झारखंड में शादी-विवाह के मौके पर वर-वधू के कक्ष में भी खास तरह के चित्र बनाए जाने की परंपरा रही है, जिसे 'कोहबर' कहा जाता है. इन दोनों तरह की चित्रकारियों में एक जैसी पद्धति अपनाई जाती हैं. शोध में ये प्रमाणित हुआ है कि इस आदिवासी कला का इतिहास 5000 वर्षों से अधिक पुराना है. इसकी शुरूआत का काल 7,000-4,000 ईसा पूर्व के बीच आंका गया है.
मिले हैं रॉक पेंटिंग के कई प्रमाण
झारखंड के हजारीबाग जिले की पहाड़ी श्रृंखलाओं में रॉक पेंटिंग के कई प्रमाण मिले हैं. इन्हें प्रागैतिहासिक मेसोलिथिक रॉक (7,000 ईसा पूर्व) बताया गया है. भारत के प्रसिद्ध मानवविज्ञानी शरत चंद्र रॉय ने 1915 में अपनी पुस्तक में इस पेंटिंग के अभ्यास के बारे में बताया था. दुनिया के सामने मिथिला पेंटिंग को लाने वाले ब्रिटिश अधिकारी डब्ल्यूजी आर्चर ने भी 1936 में प्रकाशित एक ब्रिटिश जर्नल में इस कला के बारे में जिक्र किया था.
अभी जारी हैं प्रयास
जीआई टैग मामलों के विधि विशेषज्ञ डॉ सत्यदीप सिंह ने बताया कि झारखंड सरकार के सहयोग से राज्य के पूर्वी सिंहभूम, मांडर एवं चिरौंजी इलाके की पाटकर चित्रकल और देवघर के पेड़ा को भी जीआई टैग दिलाने की दिशा में प्रयास किया जा रहा है. इनसे जुड़े केस रजिस्ट्रार ऑफ ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के पास फाइल करने की प्रक्रिया चल रही है.
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