Jharkhand Politics: बाबूलाल मरांडी नहीं बन सकते नेता प्रतिपक्ष, जानें- हाई कोर्ट में कपिल सिब्बल ने क्यों दी ये दलील
Ranchi: झारखंड हाई कोर्ट में सुभाष देसाई बनाम स्पीकर महाराष्ट्र का जिक्र करते हुए बीजेपी की ओर से कहा गया कि किसी राजनीतिक पार्टी का एकाधिकार है कि वह किसे विधायक दल का नेता बनाती है.
Jharkhand News: झारखंड हाई कोर्ट में नेता प्रतिपक्ष मामले में मंगलवार को सुनवाई हुई, जहां झारखंड सरकार की तरफ से कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने सरकार का पक्ष रखा. वहीं बीजेपी की तरफ से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नेता प्रतिपक्ष के लिए बाबूलाल मरांडी का नाम विधानसभा को दिया जा चुका है. इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि, नेता प्रतिपक्ष के लिए बीजेपी को ऐसे व्यक्ति का नाम देना चाहिए, जो बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़े और जीता हो.
वहीं पिछली सुनवाई में हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र की खंडपीठ ने दो बिंदुओं पर विधानसभा सचिव से जवाब मांगा था. पहला संविधान के आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट के पास का पावर है कि वह स्पीकर को विपक्ष का नेता बनाने का निर्देश दे सके. दूसरा यदि कोई दल विपक्ष के नेता के लिए किसी का नाम देता है तो स्पीकर क्या सिर्फ इस आधार पर मामला लंबित रख सकते हैं कि उनके खिलाफ दल बदल का केस चल रहा है. बता दें कि सदन में नेता प्रतिपक्ष के नहीं होने से संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्ष की नियुक्ति में दिक्कत हो रही है. मिली जानकारी के मुताबिक, मुख्य सूचना आयुक्त और लोकायुक्त की नियुक्ति जल्द होगी. वहीं इस मामले में अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी.
बीजेपी ने क्या कहा?
सुभाष देसाई बनाम स्पीकर महाराष्ट्र का जिक्र करते हुए बीजेपी की ओर से कहा गया कि किसी राजनीतिक पार्टी का एकाधिकार है कि वह किसे विधायक दल का नेता बनाती है. महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि मुख्य सूचना आयुक्त और लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए शीघ्र बैठक होगी. विधानसभा की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल एवं हाई कोर्ट के अधिवक्ता अनिल कुमार ने पैरवी की। भाजपा की ओर से कुमार हर्ष ने पैरवी की. मामले की सुनवाई अब 30 अगस्त को होगी.
विधानसभा में अभी तक नेता प्रतिपक्ष क्यों नहीं है?
दरअसल, 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपने पार्टी जेवीएम का BJP में विलय कर दिया था. इसपर जेवीएम के विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने इसे लेकर सवाल उठाया था. उसके बाद से ही यह मामला स्पीकर के ट्रिब्यूनल में चल रहा है. वैसे, चुनाव आयोग ने इस विलय को मान्यता दे दी थी. जिसके आधार पर बाबूलाल मरांडी राज्यसभा चुनाव में बीजेपी विधायक की हैसियत से अपना वोट भी देते हैं, लेकिन सदन में उन्हें अबतक नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं दी गई है. इस बीच विपक्ष की तरफ से भाजपा को सुझाव दिए जा रहे हैं कि नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी अन्य नेता का नाम चयनित कर भेजा जाए. अब देखना यह है कि अगर बाबूलाल मरांडी नहीं तो बीजेपी की तरफ से किस नाम पर सहमति बनती है और किसे नेता प्रतिपक्ष के रूप में चुना जाता है.
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