Kharsawan Golikand: झारखंड के इस जिले में गमों के साथ आता है नए साल का पहला दिन, आंसू बहाकर स्वागत करते हैं नेता!
Kharsawan Golikand 1948: एक ओर जहां पूरी दुनिया आज एक जनवरी के मौके पर जश्न नए साल का जश्न मना रही है. वहीं, झारखंड के एक गांव में हर साल आज के दिन मातम मनाया जाता है.
Jharkhand Kharsawan Golikand: झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में एक घटना ने इतना गहरा छाप छोड़ा कि आज दशकों बाद भी लोग उभर नहीं पाए हैं. यहां नए साल के मौके पर जश्न नहीं मातम मनाया जाता है. दरअसल, स्वतंत्र भारत में आदिवासियों के खून से खरसावां की सर-जमीन लाल हो चुकी थी. मामला 1 जनवरी 1948 का है. जब तत्कालीन बिहार और वर्तमान में झारखंड के खरसावां में गुरुवार के दिन आदिवासी ग्रामीण हाट बाजार पहुंचे थे, वहां उन्हें गोलियों का का सामना करना पड़ा था. खरसावां में इस दिन निहत्थे ग्रामीण देखते ही देखते काल के गाल में समा गए और बस रह गई तो सिर्फ उनके खून से सनी खरसावां की सर-जमीन.
शहीद दिवस के साथ कई राज दफन
जहां आज तक कभी नए साल का जश्न नहीं माना. सुबे के मुख्यमंत्री हो या पूर्व मुख्यमंत्री, प्रदेश के राज्यपाल हो या जिले भर के विधायक या आम ग्रामीण, हर कोई इस गम में शरीक होने पूरी आस्था के साथ पहुंचता है. आदिवासी परंपरा का सबसे बड़ा उदाहरण माने जाने वाला शहीद दिवस अपने साथ कई राज दफन किए बैठा है. इस घटना की गंभीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज भी मरने वालों की सही गिनती किसी को नहीं पता है.
हर बरस शहीदों के मजार पर लगता है मेला
सरायकेला का खरसावां एक ऐसा स्थल है, जहां हर बरस शहीदों के नाम पर 1 जनवरी को मेले लगते हैं, जिसमें पूरे झारखंड और ओडिशा के आदिवासी जनजातीय समुदाय के लोग शरीक होते हैं. यही नहीं झारखंड के मुख्यमंत्री चाहे वह किसी भी दल से हों, हर साल इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति अनिवार्य समझते हैं. यह झारखंड की एक महत्वपूर्ण परंपरा में शामिल हो चुका है.
सीएम हेमंत सोरेन के पहुंचने की तैयारी
इस बार भी मौके पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पूरे कैबिनेट के साथ खरसावां के समाधि स्थल पहुंचेंगे और वहां पारंपरिक तरीके से शहीदों की समाधि पर श्रद्धांजलि भी अर्पित करेंगे. इसे लेकर प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है. इससे पहले भी बाबूलाल मरंडी और रघुवर दास जैसे मुख्यमंत्री सरायकेला स्थित खरसावां किसान समाधी स्थल पहुंचते रहे हैं. इस परंपरा को बरकरार रखते हुए मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी सरायकेला-खरसावां किसान मेले में अपनी हाजरी दर्ज करवाने पहुंच रहे हैं.
आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड था 'खरसावां गोलीकांड'
बता दें कि सन् 1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था, तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां और सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी.
इस दौरान एक जनवरी, 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां और सरायकेला को ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आह्वान किया था. विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे. एक जनवरी 1948 का दिन गुरुवार और साप्ताहिक बाजार-हाट का दिन था, इस कारण भीड़ काफी अधिक थी, लेकिन किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके.
रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल भी तैनात थी. इसी दौरान पुलिस और जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया, तभी अचानक फायरिंग शुरू हो गई और पुलिस की गोलियों से सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हो गए.
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