Live In Partner: झारखंड के जनजातीय बहुल इलाकों में हजारों जोड़ियां लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्ते के साथ साल-दर-साल से रहती चली आ रही हैं. ऐसे कई रिश्तों की उम्र तो 40-50 साल हो चुकी है. झारखंड में अब ऐसे रिश्तों को कानूनी और सामाजिक मान्यता दिलाने की मुहिम चल रही है. जनजातीय इलाकों में लिव-इन के इस रिश्ते को लोग ढुकु के नाम से जानते हैं. ऐसी जोड़ियां एक छत के नीचे एक साथ बरसों-बरस गुजारने के बाद भी अपने रिश्ते को शादी का नाम नहीं दे पातीं.
कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की पहल पर पिछले चार-पांच वर्षों से ऐसे रिश्तों को कानूनी और सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए ऐसी जोड़ियों के सामूहिक विवाह का अभियान शुरू हुआ है. इसी कड़ी में झारखंड के खूंटी जिला मुख्यालय में स्वयंसेवी संस्था निमित्त की ओर से आयोजत एक समारोह में 50 ऐसी जोड़ियां सामाजिक और कानूनी तौर पर शादी के बंधन में बंध गईं.
इस मौके पर जिले के उपायुक्त शशि रंजन एवं उपविकास आयुक्त नीतीश कुमार सिंह सहित कई अतिथि मौजूद रहे. उपायुक्त शशि रंजन ने कहा कि लिव इन रिलेशन में रहने वाले परिवारों के लिए यह उम्मीद भरा कार्यक्रम है. विवाह बंधन में बंध रहे दंपतियों को जिला प्रशासन की कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाएगा और उनके विवाह का निबंधन भी कराया जाएगा.
संस्था की सचिव निकिता सिन्हा ने बताया कि जनजातीय इलाकों में ऐसी कई जोड़ियां चिन्हित की गयी हैं, जो सालों से ढुकु रिश्ते के नाम पर एक घर में रह रही हैं लेकिन आज तक सामाजिक और कानूनी तौर पर उनकी शादी मान्य नहीं है.
ढुकु परंपरा के पीछे की सबसे बड़ी वजह आर्थिक मजबूरी है. दरअसल, आदिवासी समाज में यह अनिवार्य परपंरा है कि शादी के उपलक्ष्य में पूरे गांव के लिए भोज का इंतजाम किया जाता है. भोज के लिए मीट-चावल के साथ पेय पदार्थ हड़िया का भी इंतजाम करना पड़ता है. कई लोग गरीबी की वजह से इस प्रकार की व्यवस्था नहीं कर पाते और इस वजह से वे बिना शादी किए साथ में रहने लगते हैं. ऐसी ज्यादातर जोड़ियों की कई संतानें भी हैं, मगर समाज की मान्य प्रथाओं के अनुसार शादी न होने की वजह से इन संतानों को जमीन-जायदाद पर अधिकार नहीं मिल पाता.
ऐसे बच्चों को पिता का नाम भी नहीं मिल पाता. ढुकु शब्द का अर्थ है ढुकना या घुसना. जब कोई महिला बिना शादी किए ही किसी पुरुष के घर में घुस जाती है यानी रहने लगती है तो उसे ढुकनी के नाम से जाना जाता है और ऐसे जोड़ों को ढुकु कहा जाता है. ऐसी महिलाओं को आदिवासी समाज सिंदूर लगाने की भी अनुमति नहीं देता.
इसे भी पढ़ें: