Lok Sabha Elections 2024: भारतीय जनता पार्टी (BJP) शीर्ष नेतृत्व ने एक बार फिर से अपने पुराने नेता बाबूलाल मरांडी पर विश्वास जताया है. करीब डेढ़ दशक तक बाबूलाल मरांडी बीजेपी से दूर रहे. इस दौरान बाबूलाल मरांडी ने कांग्रेस और जेएमएम के साथ भी तालमेल किया, लेकिन अब एक बार फिर बीजेपी नेतृत्व ने बाबूलाल मरांडी के कंधे पर ही बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. अब यह तय होगा कि, झारखंड में 2024 में बीजेपी बाबूलाल मरांडी के फेस को आगे कर चुनाव मैदान में उतरेगी. उनके सामने लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव को लेकर भी रणनीति बनाने बड़ा दायित्व होगा. साल 2024 के चुनाव ठीक पहले बाबूलाल मरांडी को जिम्मेदारी सौंप कर केंद्रीय नेतृत्व ने साफ कर दिया गया है कि, अगला चुनाव उनके नेतृत्व में ही पार्टी लड़ेगी.
बाबूलाल मरांडी सीएम उम्मीदवार होंगे या नहीं इस पर अभी पार्टी का कोई नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं, लेकिन यह तय है कि झारखंड में आदिवासी चेहरा को सामने रखने कर ही बीजेपी चुनाव मैदान में उतरेगी. बाबूलाल मरांडी 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में क्या 1996, 1998, 1999 की तरह अपने पुराने इतिहास को फिर एक बार दोहराएंगें. राजनीतिक हलकों में अभी से यह चर्चा शुरू हो गई कि, बाबूलाल मरांडी ही झारखंड में नवंबर-दिसंबर 2024 में होने चुनाव में बीजेपी का नेतृत्व करेंगे. बाबूलाल मरांडी का लम्बे अर्से से दुमका समेत समूचे संताल परगना से गहरा नाता रिश्ता रहा है. गिरिडीह का कोदायबांक गांव उनकी जन्म भूमि है. जबकि 1990 के दशक से उन्होंने दुमका-समेत समूचे संताल परगना को अपनी कर्मभूमि बनाया.
80 के दशक में विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े
बता दें कि, कभी कोदायबांक और सतगंवा साधन विहिन गांवों में शुमार था. पैदल या पगडंडी वाले कठिन रास्ते पर सफर कर उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की. इसके बाद में भूगोल से एमए की डिग्री हासिल कर शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए. कहते हैं कि शिक्षक पद पर रहते हुए एक बार वे गिरिडीह के उपायुक्त से मिलने गये, लेकिन उपायुक्त से मिलने के क्रम में उन्हें प्रशासन और जनता के बीच की दूरी और आमलोगों के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों के रुखे व्यवहार का कटु अनुभव हुआ. उन्होंने सरकारी शिक्षक के पद से त्यागपत्र दे दिया. बाबूलाल मरांडी 80 के दशक के अंतिम दौर में वे पूर्णकालिक सदस्य के रूप में विश्व हिन्दू परिषद से जुड़ कर संगठन के विस्तार में जुट गए. संगठन ने भी उन्हें पूर्ण कालिक सदस्य के रूप में दुमका समेत पूरे संतालपरगना में संगठन विस्तार का दायित्व सौंपा.
विहिप से जुड़ कर संगठन विस्तार में जुटे
1958 में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने महज तीस साल की उम्र में शिक्षक की अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी. घर द्वार छोड़कर संताल परगना में संगठन विस्तार के साथ खासकर आदिवासी समाज में राजनीतिक चेतना जाग्रत करने के अभियान में निकल पड़े. संगठन के प्रति समर्पण की बदौलत वे बीजेपी के संस्थापक सदस्य कैलाशपति मिश्र जैसे नेताओं के चहेते बन गये. रामजन्म भूमि आंदोलन परवान चढ़ रहा था. अयोध्या रथ यात्रा के क्रम में बिहार के समस्तीपुर में बीजेपी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार कर लिये गये. इससे आहत बीजेपी ने भी जनता दल की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. जिससे उस समय के प्रधानमंत्री बीपी सिंह की सरकार गिर गयी. इसके बाद वर्ष 1991 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई.
शिबू सोरेन के खिलाफ बेहतर प्रत्याशी
बीजेपी को संतालपरगना खास कर दुमका में झामुमो के शीर्ष नेता शिबू सोरेन के खिलाफ बेहतर प्रत्याशी की तालाश थी. बस क्या था बीजेपी ने 1991 में पहली बार शिबू सोरेन के खिलाफ बाबूलाल मरांडी पर दांव लगाया. बीजेपी ने बाबूलाल जैसे 32 साल के युवा को लोकसभा के चुनाव में उतार दिया. 1991 में बाबुलाल मरांडी सीधे तौर पर बीजेपी जैसी पार्टी के बैनर तले अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. इस समय तक छोटानागपुर-संताल परगना अब झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में बतौर सांसद बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे कुछ ही नेता-कार्यकर्ता थे. इसमें कड़िया मुंडा, रीतलाल बर्मा, रूद्र प्रताप सारंगी और विधायक के रूप में ललित उरांव, इन्दर सिंह नामधारी, समरेश सिंह, निर्मल बेसरा और सत्यनारायण दुधानी शामिल थे. 1991 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने झामुमो के शीर्ष नेता रहे शिबू सोरेन के खिलाफ बाबू लाल मरांडी को चुनाव मैदान में उतारा. इस चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी के पक्ष 1.25 लाख वोट बटोर कर दुमका के राजनीतिक फिंजा में हलचल मचा दी.
राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव हारे
हालांकि, वे अपने राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव हार गये, लेकिन झामुमो के दिशोम गुरु शिबू सोरेन के राजनीतिक भविष्य पर चिंता की लम्बी लकीर खींच दी. बाबूलाल भी हार मानने वाले नहीं थे. उस दौरान शिबू सोरेन और सूरज मंडल समेत झामुमो के चार सांसद सांसद रिश्वत प्रकरण में उलझ गए थे. बीजेपी ने बिहार और वनांचल प्रदेश कमेटी का गठन कर संगठन को और मजबूत बनाने का अभियान शुरू किया. साल 1994 में बीजेपी ने वनांचल प्रदेश कमेटी का गठन कर अध्यक्ष की कमान युवा बाबूलाल को सौंप दी. वहीं 1998 में तीसरे प्रयास में बाबूलाल मरांडी महज 40 साल की उम्र में झामुमो के कद्दावर नेता शिबू सोरेन को हरा कर पहली बार सांसद चुने गये और झारखंड ही नहीं पूरे देश में राजनीतिक हलके में हलचल मचा दी. 1998 में बीजेपी के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्र में पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और दुमका के सांसद बाबूलाल मरांडी को वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री का दायित्व सौंपा गया. लेकिन कुछ महीने में ही अटल बिहारी की सरकार गिर गई.
दूसरी बार बाबूलाल मरांडी दुमका से चुनाव मैदान में
1999 में पुनः मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें बीजेपी ने पुनः बाबूलाल मरांडी को दुमका से मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन्होंने झामुमो के टिकट पर मैदान में उतरीं दिशोम गुरु शिबू की धर्म पत्नी रूपी किस्कू को गहरी शिकस्त दी. बाबूलाल मरांडी दूसरी बार दुमका से सांसद चुने गये. एक बार फिर वे केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग के पूर्ण बहुमत की सरकार में पुनः वन एवं पर्यावरण मंत्री बने. लेकिन बाबूलाल मरांडी इतने से ही कहां संतुष्ट होने वाले थे. वे विभिन्न चुनावों में जनता से अलग झारखंड राज्य बनाने के वायदे को धरातल उतारने के संकल्प पर कार्य करते रहे. बाबूलाल मरांडी वायदों को पूरा करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं को मनाते रहे. केन्द्र और एकीकृत बिहार सरकार पर अलग राज्य के सपनों को साकार करने के लिए दबाव बनाते रहे. अंततः अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी नीत राजग की सरकार ने 15 नवम्बर 2000 को अलग झारखंड राज्य निर्माण की घोषणा कर दी.
झारखंड के पहले सीएम बने
केन्द्र सरकार की घोषणा के आलोक में झारखंड अलग राज्य का सपना साकार हुआ और उस समय के दुमका के सांसद केन्द्रीय मंत्री बाबूलाल मरांडी को बतौर मुख्यमंत्री अपने नवनिर्मित राज्य झारखंड को सजाने संवारने की जिम्मेदारी सौंपी गई. बीजेपी जदयू और आजसू के विधायकों के समर्थन से 2003 मार्च के तीसरे सप्ताह तक वे राज्य के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे. इसके बाद पार्टी ने उन्हें फिर से संगठन के कार्य से जुड़ने की जिम्मेदारी सौंप दी. बीजेपी ने उन्हें केन्द्रीय कमेटी में उपाध्यक्ष का दायित्व सौंप दिया. वे 2004 में बीजेपी के टिकट पर कोडरमा से सांसद चुने गये. इसके बाद 2005 में सम्पन्न चुनाव में बीजेपी ने खास कर संताल परगना में झामुमो और कांग्रेस का गढ़ रहे जामा, जामताड़ा सरीखे कई सीटों पर बीजेपी का विजय पताका फहराकर झामुमो और कांग्रेस की नींव हिला दी, लेकिन पार्टी ने अर्जुन मुंडा को पुनः मुख्यमंत्री बना दिया.
बीजेपी से आहत होकर बनाई अपनी पार्टी
पार्टी नेतृत्व की ओर से किनारा किये जाने से आहत बाबूलाल मरांडी ने कोडरमा संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी छोड़ने के बाद उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक नामक पार्टी का गठन किया. इसके बाद कोडरमा से उपचुनाव में वे फिर से झारखंड विकास मोर्चा उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए. 2009 में विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झाविमो ने कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन कर लिया. उनकी पार्टी राज्य में दमदार उपस्थिति दर्ज की. 2006 से 2020 तक करीब 14 वर्षों तक बाबूलाल मरांडी बीजेपी से वनवास लेकर झाविमो का अलख जगाते रहे. लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व की पहल बाबूलाल मरांडी 2020 में फिर एक बार पार्टी में शामिल हो गए और अपनी पार्टी झाविमो का बीजेपी में विलय करा दिया. बीजेपी ने भी उनपर विश्वास जताया और झारखंड विधानसभा में बीजेपी विधायक दल के नेता का दायित्व उन्हें सौंप दिया.