Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है. देश में अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर झारखंड में भी पार्टियां जनता को अपने-अपने तरीके से साधने में जुटी हैं. ऐसे में  झारखंड में भी जाति आधारित जनगणना को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गयी है. साथ ही मानसून सत्र में झारखंड में भी जाति आधारित जनगणना को लेकर मांग उठती रही है. इस बीच राज्य सरकार ने इसे लेकर तैयारी शुरू कर दी है. दरअसल, संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि, झारखंड में जाति जनगणना कराने पर सरकार विचार करेगी. उन्होंने कहा जाति जनगणना के पक्ष में झारखंड की सरकार भी है, जल्द फैसला लिया जाएगा.


जाति आधारित जनगणना को लेकर फैसला केंद्र को लेना है. इससे पहले भी सरना धर्म कोड का मामला केंद्र के पास लंबित है. ऐसे में कहना मुश्किल है कि राज्य में जाति आधारित जनगणना को लेकर केंद्र जल्द फैसला करेगा. विधायक प्रदीप यादव ने इसे लेकर विधानसभा में सवाल भी किया जिसके जवाब में राज्य सरकार ने कहा है कि ‘जाति आधारित जनगणना’ का विचार किया जा रहा है और इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जायेगा. दरअसल, बिहार सरकार जाति आधारित जनगणना करा रही है. राज्य सरकार के इस फैसले के विरोध में पटना हाइकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. इस पर हाइकोर्ट ने फैसला देते हुए राज्य सरकार को ‘जाति आधारित जनगणना’ कराने का अधिकार होने का आदेश दिया है. अब झारखंड में भी इसे लेकर चली चर्चा से साफ है कि हेमंत सरकार जाति आधारित जनगणना का मन बना रही है. 


क्या है जाति आधारित जनगणना?


जाति आधारित जनगणना एक ऐसी जनगणना होती है जिसमें एक देश या क्षेत्र की जनसंख्या को उनकी जाति के आधार पर गणना किया जाता है. जाति एक सामाजिक अथवा वंशजाति की विशेषता और भेदभाव को दर्शाने वाला एक सामाजिक प्रणाली होती है. जाति आधारित जनगणना के माध्यम से जानकारी संकलित की जाती है और सरकार और अन्य संगठन इस जानकारी का उपयोग राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और कल्चरल नीतियों को बनाने और प्राथमिकताओं को निर्धारित करने के लिए करते हैं. इस प्रक्रिया से यह जानकारी प्राप्त की जाती है कि किस जाति के लोग किस भूभाग में अधिकांशतः निवास करते हैं और इससे उन्हें उस क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक संदर्भ के बारे में जानकारी मिलती है.


जाति आधारित जनगणना को लेकर विरोध भी हो रहा है. कुछ लोग इसे समाज में भेदभाव और दलीयता को बढ़ावा देने का माध्यम मानते हैं और इससे जुड़ी जाति की अर्थव्यवस्था और स्थिति को प्रभावित करने का आरोप लगाते हैं. साथ ही इनलोगों का कहना है कि जाति आधारित जनगणना लोगों की व्यक्तिगत जानकारी को खतरे में डाल सकती है.