Jharkhand News: झारखंड विधानसभा को तीन साल बाद जल्द ही विपक्ष का नेता मिल सकता है. दरअसल, अगले सप्ताह मानसून सत्र शुरू होने से पहले बीजेपी विधायक दल के नेता का नाम घोषित कर देगी. अपने दिल्ली दौरे में प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) से मिल चुके हैं. संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह, प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी और नागेंद्र के बीच भी इस मुद्दे पर लगातार बातचीत जारी है. वहीं पूर्व सीएम रघुवर दास हालचाल जानने के बहाने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा से मिलने गए थे. अर्जुन मुंडा का पिछले दिनों ऑपरेशन हुआ है, लेकिन उस दौरान सांगठनिक बातें भी हुईं.
इस तरह प्रदेश कमेटी और विधायक दल के नेता को लेकर होमवर्क लगभग पूरा हो चुका है. हालांकि, अभी बैकवर्ड-फॉरवर्ड के पेंच में विधायक दल का नेता पद फंसा हुआ है, क्योंकि दोनों समुदाय को साधना बीजेपी की मजबूरी है. बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बन जाने के बाद अब किसी आदिवासी के विधायक दल का नेता बनाने का मार्ग बंद हो गया है. वहीं अमर बाउरी एससी समाज से हैं पर उनके नाम पर विरोध इसलिए है कि वे भी झाविमो से आए हैं. प्रदेश अध्यक्ष, विधायक दल का नेता, सभी झाविमो से लौटे नेता को बनाने पर सवाल खड़े हो गए हैं. इसलिए, फॉरवर्ड या बैकवर्ड से नेता चुनना पार्टी की मजबूरी हो हुई है.
इन नामों पर चर्चा शुरू
फॉरवर्ड से सीपी सिंह, भानु प्रताप शाही, अनंत ओझा व राज सिन्हा हैं. भानु पर कई मुकदमे चल रहे हैं. ओझा का नाम पंकज मिश्रा से जुड़ रहा है. सिन्हा को इस पद के योग्य नहीं माना जा रहा है. ऐसे में सीपी सिंह को मौका मिल सकता है. इधर बैकवर्ड क्लास से विरंची नारायण का नाम सबसे ऊपर है. हालांकि, रामचंद्र चंद्रवंशी व अमित मंडल उनका पीछा कर रहे हैं.अध्यक्ष बनने के बाद मरांडी ने विधायक दल का नेता व प्रदेश कार्यसमिति के पदाधिकारियों का नाम तय करने का मामला पार्टी पर छोड़ दिया है. स्पष्ट कहा है कि पार्टी के शीर्ष नेता जो नाम तय करेंगे उसे उन्हें मानने में कोई गुरेज नहीं है. इसके बाद ही कर्मवीर सिंह, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, नागेंद्र, अर्जुन मुंडा व रघुवर दास जैसे बड़े नेताओं की जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है.
विधानसभा में स्थानीयता का सवाल फिर गूंजेगा. बीजेपी विधायक भानु प्रताप शाही ने पिछले दिनों इसका यह कह कर संकेत दे दिया है कि किस स्थानीय और नियोजन नीति पर राज्य सरकार प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में सहायक आचार्यों की नियुक्ति करने जा रही है. इसके अलावा सरकार भी कई विधेयकों को फिर से पेश कर सकती है. खास कर उन विधेयकों को जिन्हें राज्यपाल ने आपत्ति के साथ लौटा चुके हैं.