Lok Sabha Elections 2024: झारखंड में स्थानीय नीति का मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा. झारखंड में 1932 के खतियानी को अब नियोजन नीति से जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, 11 नवंबर को विधानसभा के विशेष सत्र में सरकार ने झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा तय करने वाला विधेयक पारित किया. सरकार ने सदन की कार्यवाही के दौरान ही यह प्रावधान जोड़ा कि जो स्थानीय होंगे वे ही तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के पात्र होंगे, यानी उन्हें ही ये नौकरी मिलेगी.
इसके साथ ही विधानसभा में आरक्षण संशोधन विधेयक को भी पारित कराया गया. ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण सहित अन्य वर्गों के कोटे को बढ़ाकर अब आरक्षण की सीमा 77 प्रतिशत कर दी गई है. वहीं इसका बीजेपी ने घोर विरोध भी किया था और आखिरकार इस विधेयक पर केंद्रीय मोहर नहीं लग सकी. हालांकि, अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक ट्वीट किया है जिसमें वो कह रहे हैं कि, हम 1932 खतियान आधारित नीति लेकर आए थे, जिससे स्थानीय युवा को नौकरी मिले, लेकिन बीजेपी-आजसू ने षड्यंत्र के तहत उसे निरस्त करवा दिया. हम सरना आदिवासी धर्म कोड लेकर आए, उसे ठंडे बस्ते में डलवा दिया.
आदिवासी कोड का भी जिक्र
यह छोटे-छोटे गिरोह को खड़ा कर जनता को दिग्भ्रमित करने का षड्यंत्र रचते हैं. मौजूदा समय में राज्य में कई समस्याएं हैं. 20 सालों में इन्होंने समस्याओं का भंडार छोड़ रखा है, लेकिन इन सभी समस्याओं का समाधान संयमित तरीके से हो रहा है. यह सरकार अंधी, बहरी और गूंगी नहीं है. यह सरकार सबकी बात सुनती है और नियम संगत उसका समाधान भी करती है. इस ट्वीट में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासी कोड का भी जिक्र किया है. पहले समझने वाली बात यह है कि, आदिवासी कोड होता क्या है?
क्या है आदिवासी कोड?
बता दें कि, 1871 में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड हुआ करता था. जब देश में 1871 को पहली बार जनगणना हुई थी तो उस वक़्त आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की व्यवस्था हुआ करती थी. मगर 1951 की जनगणना में आदिवासियों को अलग धर्म कोड के बजाय हिन्दू धर्म के ही शेड्यूल ट्राईबल्स यानी एसटी कहा जाने लगा. बताते चले कि 2020 में झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्मकोट प्रस्ताव पास किया, जिसमें आदिवासियों को अलग धर्म का दर्जा देने की बात कही गई थी. इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार के हरे झंडे की आवश्यकता थी, लेकिन केंद्र ने इस प्रस्ताव को अनुमति नहीं दी.
आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग मानने और अलग धर्मकोट बनाने की मांग को लेकर केंद्रीय सरकार की तरफ से तर्क दिया गया कि, आदिवासी शुरू से ही सनातनी हिंदू हुआ करते थे. इनकी पूजा पद्धति हिंदुओं की पूजा पद्धति से किसी भी प्रकार से अलग नहीं है, जो लोग आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की मांग उठा रहे हैं वह धर्म और समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं.