Operation Octopus: 32 साल बाद नक्सल मुक्त हुआ झारखंड-छत्तीसगढ़ का बूढ़ा पहाड़, इस तरह मिली सफलता
Operation Octopus: झारखंड-छत्तीसगढ़ का बूढ़ा पहाड़ 32 साल बाद नक्सलियों के कब्जे से आजाद हो गया है. करीब एक महीने से चलाया जा रहा ऑपरेशन ऑक्टोपस पूरी तरह कामयाब रहा है.
Operation Octopus: झारखंड में माओवादी नक्सलियों के सबसे बड़े गढ़ बूढ़ा पहाड़ को सुरक्षा बलों और पुलिस ने पूरी तरह फतह कर लिया है. करीब एक महीने से चलाया जा रहा ऑपरेशन ऑक्टोपस पूरी तरह कामयाब रहा है. बूढ़ा पहाड़ की तमाम चोटियों पर अब पुलिस का कैंप है. शुक्रवार को पहाड़ पर वायु सेना का एमआई हेलीकॉप्टर उतारा गया. जवानों ने तालियां बजाकर जीत की खुशी का इजहार किया. झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशन एवी होमकर ने बताया कि बूढ़ा पहाड़ की चोटी पर कब्जे के बाद अब सुरक्षा बलों का कैंप स्थापित कर लिया गया है.
32 साल बाद नक्सल मुक्त हुआ बूढ़ा पहाड़
जवानों को रसद और दूसरे सामान की आपूर्ति हेलीकॉप्टर और दूसरे साधनों से की जायेगी. बूढ़ा पहाड़ पर पुलिस के जवान अब स्थायी रहेंगे. झारखंड डीजीपी नीरज सिन्हा भी अगले कुछ दिनों में जवानों का हौसला बढ़ाने बूढ़ा पहाड़ पहुंच सकते हैं. 55 वर्ग किलोमीटर में फैले बूढ़ा पहाड़ पर पिछले 32 सालों से नक्सलियों का कब्जा था. झारखंड-छत्तीसगढ़ के जंगलों से घिरा इलाका नक्सलियों का अभेद्य दुर्ग बना हुआ था. बूढ़ा पहाड़ झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लातेहार के गारू प्रखंड में है.
जि़ले के महुआडांड़, बरवाडीह होते हुए दूसरे जि़ले गढ़वा के रमकंडा, भंडरिया इलाके में पहाड़ की दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ का इलाका है. बूढ़ा पहाड़ पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के टॉप नक्सली लीडर और रणनीतिकार पनाह लिया करते थे. माओवादियों के पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के अरविंद उर्फ देवकुमार सिंह, सुधाकरण, मिथिलेश महतो, विवेक आर्या, प्रमोद मिश्रा, विमल यादव सहित कई बड़े नक्सली लीडरों मौजूद रहने की जानकारी पुलिस को मिलती थी.
बंकर, शस्त्रागार, फौजी दस्ते, ट्रेनिंग कैंप
पुलिस को नक्सली लीडरों तक पहुंचना अब से पहले तक नामुमकिन था. नक्सलियों के कई बंकर और शस्त्रागार भी थे. ट्रेनिंग कैंप में नक्सलियों ने कई फौजी दस्ते तैयार किये थे. पुलिस और सुरक्षा बलों को नक्सल ऑपरेशन अंजाम देने में हमेशा नुकसान हुआ. इलाके को नक्सलियों से मुक्त कराने का सबसे बड़ा अभियान वर्ष 2018 में चलाया गया था. नक्सलियों ने बारूदी सुरंगों से पहाड़ की ओर बढ़ रहे सुरक्षा बलों के छह जवानों को उड़ा दिया. पहाड़ तक पहुंचने वाले हर रास्ते पर आईईडी बम बिछा रखे गए थे.
2018 में छह जवानों की हुई थी शहादत
एक साथ छह जवानों की शहादत की घटना के बाद बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से आजाद कराने का अभियान जारी रखा गया. केंद्रीय गह मंत्रालय से मशवरे के बाद झारखंड पुलिस ने लगातार रणनीति बदली. झारखंड पुलिस के एक सीनियर आईपीएस बताते हैं कि पूर्व डीजीपी डीके पांडेय के कार्यकाल से ही कई बड़े नक्सलियों का आत्मसमर्पण कराने की रणनीति पर काम हुआ. रणनीतियों में नक्सलियों के परिजनों से संपर्क साधने, पहाड़ पर नक्सलियों तक पहुंचने वाले रसद को रोकने, ग्रामीणों में पुलिस के प्रति आत्मविश्वास जगाना शामिल था.
नक्सलियों का सरेंडर कराने की रणनीति
नक्सलियों का आत्मसमर्पण कराने की रणनीति के परिणाम भी सामने आये. पिछले तीन वर्षों में पुलिस ने तीन दर्जन से ज्यादा इनामी नक्सलियों का हथियार सहित आत्मसमर्पण कराया. वर्ष 2018 में बूढ़ा पहाड़ पर एक करोड़ के इनामी माओवादी अरविंद की बाहर से इलाज की सहायता नहीं मिलने पर मौत हो गई थी. अरविंद की मौत के बाद सुधाकरण और पत्नी को बूढ़ा पहाड़ का प्रभारी बनाया गया था. सुधाकरण ने दो वर्ष पूर्व पूरी टीम समेत तेलंगाना पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था. सुधाकरण के सरेंडर करने का सकारात्मक नतीजा दिखा.
एक दर्जन अन्य नक्सली कमांडरों ने धीरे-धीरे सरेंडर कर दिया. सरेंडर नक्सलियों से मिले इनपुट्स के आधार पर लगातार कार्रवाई जारी रखी गई. 2022 के जून-जुलाई में पुलिस को पहाड़ पर सौरभ उर्फ माकरुस बाबा, रीजनल कमेटी मेंबर नवीन यादव, रीजनल कमेटी मेंबर छोटू खैरवार के अलावा 50 नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना थी. पुलिस ने इस बार बूढ़ा पहाड़ को पूरी तरह आजाद कराने के लिए एडीजी अभियान संजय आनंद लाठकर, आइजी अभियान और एसटीएफ डीआइजी अनूप बिरथरे की अगुवाई में टीम बनाई.
गढ़वा और लातेहार के एसपी भी टीम का हिस्सा रहे. टीम ने पहाड़ के निचले हिस्से में रणनीति बनाकर धीरे-धीरे कैंप स्थापित किया. पूरी तैयारी के साथ ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया गया. ऑपरेशन ऑक्टोपस में झारखंड और छत्तीसगढ़ पुलिस, सीआरपीएफ, जगुआर एसॉल्ट ग्रुप, आईआरबी और कोबरा बटालियन के जवान शामिल रहे. पहाड़ की चोटी पर नक्सलियों के ठिकाने को निशाना बनाया गया. दोनों ओर से कम से कम आधा दर्जन बार मुठभेड़ हुई, लेकिन सुरक्षा बलों ने इस बार मजबूत मोर्चा तैयार किया था.
अब फरार नक्सलियों को पकड़ने की मुहिम
बीते 4-5 सितंबर को नक्सलियों के एक बड़े बंकर पर पुलिस ने कब्जा कर लिया. अलग-अलग तरह की कुल 106 लैंडमाइंस के अलावा एसएलआर की 350 गोलियां, 25 तीर बम, 500 मीटर कोडेक्स वायर सहित भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गयी. आखिरकार कमजोर पड़ते नक्सली पहाड़ की चोटी से भाग निकले. फरार नक्सलियों को पकड़ने के लिए पुलिस का अभियान जारी है.
आतंकी संगठन बब्बर खालसा से हैं झारखंड के नक्सलियों के कनेक्शन, NIA ने शुरू की जांच