झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व की अजब कहानी है. टाइगर रिजर्व में कोई बाघ भी है या नहीं, इस बारे में वन विभाग के पास पुख्ता जानकारी नहीं है. ये हाल तब है, जब पलामू टाइगर रिजर्व पर पिछले पंद्रह वर्षों में 60 करोड़ से भी ज्यादा की राशि खर्च कर दी गई है. पलामू के बेतला में तत्कालीन बिहार सरकार ने 1974 में इसे टाइगर रिजर्व के रूप में नोटिफाई किया था. उस वक्त टाइगर रिजर्व में लगभग 50 बाघ थे. पलामू टाइगर रिजर्व 1,026 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जबकि इसका कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में है. रिजर्व के पूरे इलाके में 250 से अधिक गांव हैं. टाइगर प्रोजेक्ट के कोर एरिया में नौ गांव हैं.


झारखंड बनने के बाद पहली बार 2005 में बाघों की गिनती


झारखंड अलग राज्य बनने के बाद पहली बार 2005 में बाघों की गिनती करायी गयी. सरकार की फाइल के अनुसार 2005 में कुल 38 बाघ थे. अगले ही साल यानी 2006 में बाघों की संख्या 17 बताई गयी. आधिकारिक तौर पर 2009 में दूसरी बार गिनती हुई तो बाघों की संख्या आठ थी. 2010 में छह बाघ रह गये और 2014 में संख्या सिर्फ तीन बताई गई. 2018 में एक भी बाघ की मौजूदगी के प्रमाण नहीं थे. 


अब इस साल फिर बाघों की गिनती कराई जा रही है. पलामू टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर आशुतोष बताते हैं कि पिछले 22 दिसंबर को छह स्केट (मल) का सैंपल जांच के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया देहरादून भेजा गया था. इनमें से एक स्केट का सैंपल टाइगर से मैच हुआ है. इसके आधार पर माना जा सकता है कि कम से कम एक टाइगर की मौजूदगी है. 


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टाइगर रिजर्व में वन्य प्राणियों की घटती संख्या पर वन विभाग के अपने तर्क हैं. विभाग का कहना है कि टाइगर रिजर्व एरिया में पुलिस पिकेट बना दिये गये हैं. नियम के मुताबिक कोर एरिया में पुलिस पिकेट नहीं होना चाहिए. वर्तमान में बेतला, कुटकू, बरवाडीह, गारू, बारसेन, महुआटांड सहित अन्य इलाकों में एक दर्जन से अधिक पुलिस पिकेट हैं. नक्सलियों के खिलाफ गोलीबारी से जानवरों पर विपरीत असर पड़ता है. उसके कारण जंगली जानवर पड़ोस के जंगलों की ओर रुख करते हैं.


पलामू टाइगर रिजर्व की गड़बड़ियों पर हाईकोर्ट में याचिका


पलामू टाइगर रिजर्व की गड़बड़ियों को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में भी एक याचिका पर सुनवाई चल रही है. अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान पिछली तारीखों में वन विभाग के खिलाफ सख्त टिप्पणी भी की थी. अदालत ने यहां तक कहा कि अजब विरोधाभास है कि एक तरफ वन्य प्राणियों की संख्या लगातार घटती गयी और दूसरी तरफ वन विभाग में अफसरों और कर्मियों की संख्या बढ़ती गयी. 


झारखंड के निर्दलीय विधायक सरयू राय ने भी अदालत में हस्तक्षेप याचिका दायर कर रखी है. उन्होंने याचिका में कहा है कि केंद्र से मिले फंड से रिजल्ट क्षेत्र में एक चाहरदीवारी बना दी गई है, जिससे जानवरों के जाने का मार्ग बाधित हो गया है. बनाए गए 100 वाच टावर भी काम नहीं कर रहे हैं. याचिका में पलामू टाइगर रिजर्व की कई अन्य गड़बड़ियों के बारे में बताया गया है. 


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