Parliament Special Session: भारतीय लोकतंत्र और संसदीय इतिहास में 19 सितंबर 2023 की तारीख हमेशा यादगार रहेगी. इस दिन सांसदों ने देश के नए संसद भवन में प्रवेश किया और वहीं संसदीय कार्यवाही में हिस्सा लिया. ऐसे में संसद में लंबे समय तक तत्कालीन बिहार व वर्तमान में झारखंड से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले शख्सियतों ने संसदीय इतिहास में अपने बेहतर कार्य और व्यवहार से संसद के साथ-साथ झारखंड को भी गौरवान्वित किया है. इनकी बुलंद आवाज से संसद में झारखंड का स्वर्णिम इतिहास गूंजता रहा है.
जयपाल सिंह ने संसद में उठाया आदिवासी हक का मुद्दा
इसमें सबसे पहला नाम आता है जयपाल सिंह मुंडा का, इनका जन्म खूंटी के पाहनटोली तकरा हातुदामी में हुआ था. वह उस संविधान सभा के सदस्य थे, जिसने भारतीय संघ के नये संविधान पर बहस की थी. उन्हें भारतीय सिविल सेवा में चुना गया था, जिससे बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 1938 में वो विदेश सचिव के रूप में बीकानेर रियासत में शामिल हुए. उन्होंने आदिवासियों की खराब स्थिति देख राजनीति में आने का फैसला किया. वहीं वो 1939 में आदिवासी महासभा के अध्यक्ष बने. 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में उन्होंने सुभाष चंद्र बोस से अलग राज्य झारखंड बनाने की जरूरत पर चर्चा की थी. जयपाल सिंह मुंडा तीन बार 1951 से 1967 तक खूंटी से सांसद रहे. 1951 और 1957 में रांची पश्चिमी के नाम से खूंटी का संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए.
इंदिरा सरकार में संसद में मुखर थीं कमला देवी
वहीं पलामू संसदीय क्षेत्र से चार बार प्रतिनिधित्व करने वाली स्व. कमला कुमारी एकमात्र जनप्रतिनिधि रहीं, जिन्हें मंत्री का दायित्व निभाने का मौका मिला. अपने चौथे कार्यकाल में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में कृषि और ग्रामीण पुनर्निर्माण विभाग की केंद्रीय उपमंत्री बनीं. 15 जनवरी 1982 से 29 जनवरी 1983 तकं बतौर मंत्री रह देश की सेवा की और इस दौरान संसद में मुखर रहीं. पलामू के वरीय कांग्रेस नेता हृदयानंद मिश्र ने बताया कि पलामू टाइगर रिजर्व को अधिसूचित कराने और रेहला में बिहार कास्टिक एंड केमिकल्स फैक्ट्री स्थापित कराने में कमला कुमारी ने विशेष भूमिका निभाई. हाईस्कूल की शिक्षिका सह प्राचार्य की नौकरी छोड़ 1967 में सांसद बनीं.
कार्तिक उरांव संसद में जनजातियों के उत्थान की आवाज बने
इसका साथ ही इंजीनियर से राजनेता बने कार्तिक उरांव तीन बार लोहरदगा से लोकसभा सदस्य चुने गए. इंग्लैंड में इंजीनियरिंग कर चुके कार्तिक को पंडित नेहरू राजनीति में लेकर आए. रांची के एचईसी प्लांट का डिजाइन तैयार करने वाले इंजीनियरों की टीम में वह सुपरिंटेंडेंट कंस्ट्रक्शन डिजाइनर थे. बाद में डिप्टी चीफ इंजीनियर डिजाइनर बने. 1959 में दुनिया के सबसे बड़े एटॉमिक पावर स्टेशन का प्रारूप बना ब्रिटिश सरकार को दिया, जो आज हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट है. पहली बार 1962 में लोहरदगा से चुनाव लड़ा, पर हार गए. 1967, 1971, 1980 में सांसद चुने गए. इन्होंने आदिवासियों के सामाजिक उत्थान की हमेशा बात की.
संसद में गुरुजी बने शिबू सोरेन
झारखंड के रामगढ़ जिले के छोटे से गांव नेमरा में शिबू सोरेन का जन्म हुआ. पिता सोबरन मांझी की हत्या के बाद इनका जीवन बदल गया. साहुकारों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया और कई बार जेल गए. 1970 में सक्रिय राजनीति से जुड़े. झारखंड राज्य बनाने के आंदोलन को मजबूती देने के दौरान संसदीय राजनीति में प्रवेश किया. 1977 में शिबू सोरेन पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े पर हार गए, लेकिन 1980 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और झारखंड के राजनीति के पर्याय बन गए और संसद में गुरुजी. संथाल परगना को अपना संसदीय राजनीतिक का केंद्र बनाया. दुमका से वह चुनाव लड़ते और जीतते रहे. 2005, 2008 और 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने.