Jharkhand News: झारखंड की राजधानी रांची से 32 किलोमीटर दूर पहाड़ी की तलहटी में स्थित आरा केरम गांव की सीमा में दाखिल होते ही साफ-सुथरी सड़क के किनारे एक बोर्ड दिखता है. इस बोर्ड पर गांव में रहने के नियम लिखे गये हैं. ये नियम हैं- श्रमदान, नशाबंदी, लोटा बंदी (खुले में शौच पर प्रतिबंध), चराई बंदी (मवेशियों को लावारिस छोड़ने पर रोक), कुल्हाड़ी बंदी (पेड़-पौधे काटने पर रोक), दहेज प्रथा बंदी, प्लास्टिक बंदी और डीप बोरिंग बंदी. ये वो नियम हैं, जो गांव के लोगों ने आपसी सहमति से तकरीबन पांच साल पहले खुद पर लागू किये थे. इन नियमों का असर यह हुआ कि ओरमांझी प्रखंड के आरा केरम गांव ने स्वावलंबन और विकास का एक ऐसा मॉडल खड़ा कर दिया, जिसकी चर्चा अब झारखंड के साथ पूरे देश में होती है.


पीएम मोदी कर चुके हैं तारीफ


खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मन की बात' कार्यक्रम में इस गांव के मॉडल की सराहना कर चुके हैं. झारखंड के दूसरे जिलों में आदर्श गांव के लिए आरा-केरम का मॉडल अपनाने की पहल हो रही है. खूंटी जिला प्रशासन ने आरा-केरम के ग्रामीणों का यह मॉडल एक साथ जिले के 80 गांवों में लागू करने की योजना पर काम शुरू दिया है. खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड अंतर्गत अलंकेल टोला के ग्रामीणों ने भी ऐसे ही नियम खुद के ऊपर लागू किये हैं. कोडरमा जिले की ग्राम पंचायतों के 50 नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों के एक समूह ने इसी महीने गांव का दौरा कर यहां के तौर-तरीकों को समझने की कोशिश की. कोडरमा के डीसी आदित्य रंजन खुद इस समूह की अगुवाई कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हमारी योजना है कि कोडरमा जिले की हर पंचायत में कम से कम एक गांव इस तर्ज पर विकसित हो.


आरा केरम गांव ने नशाबंदी, जल प्रबंधन, स्वच्छता, शिक्षा, जैविक खेती, बागवानी सहित विभिन्न क्षेत्रों में मिसाल कायम की है. गांव की आबादी बमुश्किल एक हजार के आसपास है. वर्ष 2018 के पहले गांव गांव के लोग रांची या ओरमांझी में दैनिक मजदूरी करने जाते थे, लेकिन उन्होंने श्रमदान कर देसी जुगाड़ से पहाड़ से बहते झरने के पानी को, एक निश्चित दिशा दी, जिससे न केवल मिट्टी का कटाव और फसल की बबार्दी रुकी, बल्कि खेतों को भी पानी मिल रहा है.




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ग्रामीणों ने किया श्रमदान


हर खेत तक बिना पंप के पानी पहुंचाना इतना आसान नहीं था. इसके लिए पहाड़ से उतरने वाले पानी से लेकर जमीन में बहने वाले पानी को रोकने के उपाय किये गये. इसके लिए मनरेगा की योजनाओं का सहारा लिया गया. झारखंड के तत्कालीन मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने गांव के लोगों को खूब प्रेरित किया. ग्रामीणों ने श्रमदान भी किया. सबसे पहले पहाड़ से बहने वाले पानी को रोकने के लिए पहाड़ में लूज बोल्डर स्ट्रक्च र बनाया गया. इसके जरिए पानी की रफ्तार कम हुई और पहाड़ की मिट्टी का कटाव कम हुआ. इसके साथ ही गांव की ढलान वाली जमीन पर ट्रेंच बनाकर खेतों तक पानी पहुंचाया जाने लगा. पहाड़ की तराई पर दो तालाब बनाए गये. उसी तालाब से आज सिर्फ पाइप लगाकर पानी खेतों तक पहुंच जाता है.


गांव के 95 प्रतिशत से ज्यादा आबादी करती है ये काम


गांव की 95 फीसद आबादी आज आजीविका के लिए कृषि और पशुपालन पर निर्भर है. 70 प्रतिशत किसान सालों भर सब्जी की खेती करते हैं. लगभग 35 एकड़ भूमि में ड्रिप इरिगेशन से खेती होती है. यहां 400 एकड़ में फैले वन क्षेत्र को बचाने के लिए सख्त नियम लागू किए गए हैं. आरा गांव के प्रधान गोपाल राम बेदिया बताते हैं कि श्रमदान और परस्पर सहयोग से आरा कैरम गांव के लोगों ने 12 डोभा (छोटे तालाब), तीन सौ एकड़ में ट्रेंच, 20 एकड़ में आम बागवानी, 5 एकड़ भूमि में औषधीय पौधे, 35 नाडेप (पीट कंपोस्ट) और 80 मवेशी शेड का निर्माण किया है.


श्रमदान गांव के विकास का मुख्य आधार


ग्राम प्रधान ने बताया कि जब हमारी सभा गांव में होती है तो वहां सभी परिवार के एक सदस्य की उपस्थिति अनिवार्य होती है. इसी क्रम में प्रति परिवार पांच रुपये की बचत कर ग्राम कोष में जमा किया जाता है. उसी पैसे से और श्रमदान कर गांव का विकास किया जाता है. श्रमदान गांव के विकास का मुख्य आधार है. श्रमदान में भी सभी घरों के लोग भाग लेते हैं. आरा गांव के बीचो-बीच चौक पर एक पोल पर लाडडस्पीकर लगाया गया है, जिससे आवाज देकर सुबह चार बजे बच्चों और उनके अभिभावकों को जगाया जाता है. बच्चे जागने और नित्यक्रम के बाद पढ़ाई में जुट जाते है, वहीं पूरे गांव में एक साथ झाड़ू लगाकर साफ-सफाई का अभियान चलाया जाता है.


गांव में जैविक खेती को दिया जाता है बढ़ावा


ग्रामीण हर गुरुवार को बैठक कर चल गांव में चल रही योजनाओं पर चर्चा करते है. आरा-केरम को झारखंड सरकार ने राज्य का पहला नशामुक्त गांव घोषित किया है. स्वच्छता के लिए गांव के लोगों ने बरसाती जल जमाव के स्रोतों को मिट्टी से पाटा, घरों की नालियों को ढका और गांव में जगह-जगह इकट्ठे कूड़े का भी प्रबंधन किया और धीरे-धीरे गांव मच्छरों से आजाद हो गया. इस अभियान के तहत गांव के सभी घरों के आगे चार गुणा तीन फीट के गड्ढे का निर्माण कराया गया है, जिसमें घर से बाहर निकलने वाले पानी संरक्षित किया जा रहा है. इसके साथ ही बारिश में सड़क बहने वाले पानी का भी काफी हद तक संरक्षण संभव हो सका.


ग्रामीण जैविक खेती को अधिक से अधिक बढ़ावा देने के लिए अमृत मिट्टी का निर्माण भी कर रहे है. अमृत मिट्टी सूखे पत्तों, गुड़ और गोबर तथा गोमूत्र की सहायता से बनाई जाती है. कोरोना काल में जब तमाम स्कूलों पर ताले लटके थे, तब यहां ग्राम सभा ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कराते हुए दो शिफ्ट में गांव के स्कूल में कक्षाएं चलाईं. यहां 11 शिक्षकों ने दो पालियों में बच्चों को रोजाना पढ़ाना जारी रखा.


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