Presidential Election 2022 Draupadi Murmu Victory: द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने बृहस्पतिवार को विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को एकतरफा मुकाबले में हराने के साथ ही भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति निर्वाचित होकर इतिहास रच दिया. मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति बनने के लिए निर्वाचक मंडल सहित सांसदों और विधायकों के मतपत्रों की मतगणना में 64 प्रतिशत से अधिक मान्य मत प्राप्त करने के बाद यशवंत सिन्हा के खिलाफ भारी अंतर से जीत हासिल की. 10 घंटे से अधिक समय तक चली मतगणना प्रक्रिया समाप्त होने के बाद, निर्वाचन अधिकारी पीसी मोदी ने मुर्मू को विजेता घोषित किया और कहा कि उन्हें सिन्हा के 3,80,177 मतों के मुकाबले 6,76,803 मत हासिल हुए.


सीएम हेमंत सोरेन ने दी बधाई 
द्रौपदी मुर्मू की जीत पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने उन्हें बधाई दी है. सीएम सोरेन ने ट्वीट कर कहा कि, ''देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने पर आदरणीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं. भगवान बिरसा मुंडा और अमर शहीद सिदो-कान्हू की वीर भूमि तथा समस्त झारखण्ड वासियों की ओर से आपको जोहार.''






जानें क्या बोले बाबूलाल मरांडी 
द्रौपदी मुर्मू की जीत पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) ने उन्हें बधाई दी है. बाबूलाल मरांडी ने ट्वीट कर कहा कि, ''आदरणीय द्रौपदी मुर्मू जी का देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचन आज़ाद भारत के इतिहास के लिए स्वर्णमयी क्षण है. एक जनजातीय समाज की महिला के लिए ये गौरव देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कारण संभव हो पाया है. समस्त जनजातीय समाज उनका आभार व्यक्त करता है.''






सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति
बता दें कि, स्वतंत्रता के बाद जन्म लेने वाली द्रौपदी मुर्मू पहली राष्ट्रपति होंगी और शीर्ष पद पर काबिज होने वाली सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति होंगी. वो राष्ट्रपति बनने वाली दूसरी महिला भी हैं. मुर्मू 25 जुलाई को पद और गोपनीयता की शपथ लेंगी. शपथ लेने के साथ ही वो आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बन जाएंगी. 


ओडिशा के मयूरभंज जिले हुआ जन्म 
मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था. रायरंगपुर से ही उन्होंने बीजेपी की सीढ़ी पर पहला कदम रखा था. वो 1997 में स्थानीय अधिसूचित क्षेत्र परिषद में पार्षद बनी थीं और 2000 से 2004 तक ओडिशा की बीजद-बीजेपी गठबंधन सरकार में मंत्री बनीं. वर्ष 2015 में, उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 2021 तक इस पद पर रहीं. वो संथाली और ओडिया भाषाओं में उत्कृष्ट वक्ता हैं. उन्होंने क्षेत्र में सड़कों और बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है.


ये भी जानें 
चमक-दमक और प्रचार से दूर रहने वाली मुर्मू ब्रह्मकुमारियों की ध्यान तकनीकों की गहन अभ्यासी हैं. उन्होंने गहन अध्यात्म और चिंतन का दामन उस वक्त थामा था, जब उन्होंने 2009 से लेकर 2015 तक की 6 वर्षों की अवधि में अपने पति, 2 बेटों, मां और भाई को खो दिया था.


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