रांची के हरमू देशावली में सरना धर्मावलंबियों ने एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया और केंद्र सरकार से इसपर जल्द निर्णय लेने की गुहार लगायी. सम्मेलन में जुटे हजारों लोगों ने एक स्वर से प्रस्ताव पारित किया कि अगर इस महीने केंद्र सरकार की ओर से सकारात्मक फैसला नहीं हुआ तो आगामी 6-7 दिसंबर को सरना आदिवासी समाज के लोग दिल्ली पहुंचकर प्रदर्शन करेंगे.
क्या है इनकी मांगे
झारखंड की विधानसभा ने पिछले साल 11 नवंबर को ही एक विशेष सत्र आहूत कर जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड दर्ज करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की संयुक्त साझेदारी सरकार द्वारा विधानसभा में लाये गये इस प्रस्ताव का राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी समर्थन किया था. हालांकि इस प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने इस मुद्दे पर कांग्रेस और झामुमो पर राजनीति करने का आरोप मढ़ा था.
इस प्रस्ताव को पारित किये जाने पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड के लिए अलग से कॉलम बनाये जाने से आदिवासियों को स्पष्ट पहचान मिलेगी. जगणना के बाद सरना आदिवासियों की जनसंख्या का स्पष्ट पता चल पायेगा. उनकी भाषा, संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन हो पायेगा. इसके साथ ही आदिवासियों को मिलने वाले संवैधानिक अधिकारों, केंद्रीय योजनाओं तथा भूमि संबंधी अधिकारों में भी लाभ होगा.
आदिवासी संगठनों का क्या है संकल्प
विधानसभा से पारित प्रस्ताव के एक वर्ष पूरे होने पर गुरुवार को रांची में आदिवासी संगठनों के सम्मेलन में इस मांग को लेकर आंदोलन तेज करने का संकल्प लिया गया. राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के केंद्रीय सलाहकार विद्यासागर केरकेट्टा ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य की विधानसभा द्वारा सरना आदिवासी धर्मकोड का प्रस्ताव पारित किये एक साल हो चुका है, लेकिन अब तक इसपर केंद्र ने निर्णय नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2011 की जनगणना में 49 लाख 57 हजार 416 लोगों ने धर्म के कॉलम में सरना लिखा था, लेकिनआधिकारिक तौर पर सरकार ने जनगणना में यह आंकड़ा नहीं जारी किया. आदिवासी समाज के नेता डॉ करमा उरांव ने कहा कि सरना धर्म कोड का प्रस्ताव दिल्ली भेजा जाना हमारी आधी जीत है. इस मुद्दे पर निर्णायक लोकतांत्रिक लड़ाई दिल्ली पहुंच कर होगी.
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