(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Jamshedpur News: जमशेदपुर में दो बहनों ने बनाया खेती का अनूठा मॉडल, मां ने गहने गिरवी रख कर की थी मदद
Flowers Farming Jamshedpur: झारखंड के जमशेदपुर में दो बहनों ने खेती का एक अनूठा मॉडल खड़ा किया है. इन दोनों बहनों ने फूल की खेती की है जिसके लिए मां ने अपने गहने गिरवी रख मदद की थी.
Jamshedpur Flowers Farming: झारखंड के जमशेदपुर से 40 किलोमीटर दूर जादूगोड़ा के कालापाथर गांव की दो बहनों प्रियंका भगत और प्रीति भगत ने जरबेरा फूल की खेती का अनूठा मॉडल खड़ा कर दिया है. उनकी सफलता से उत्साहित जमशेदपुर के आस-पास के आधा दर्जन गांवों में कई किसान जरबेरा सहित अन्य किस्म के फूलों की खेती से आत्मनिर्भर हो रहे हैं. प्रियंका और प्रीति ने यह शुरुआत कोविड लॉकडाउन के दौरान उपजी मुश्किलों के बीच की थी.
जादूगोड़ा स्थित एक कारखाने में दिहाड़ी पर काम करनेवाले नवकिशोर भगत कोविड लॉकडाउन के दौरान घर पर बैठ गये थे. चिंता यह थी कि परिवार की गाड़ी कैसे चले? स्कूल में पढ़ने वाली उनकी दोनों बेटियां प्रियंका और प्रीति भी पिता की इस चिंता में शामिल थीं. इसी दौरान उन्होंने इंटरनेट पर स्वरोजगार की संभावनाएं तलाशने की कोशिश की. आइडिया आया कि शहरों में जरबेरा के फूलों की बहुत मांग है और इसकी व्यावसायिक खेती में अच्छा फायदा है. यह भी पता चला कि झारखंड में इसकी खेती नहीं के बराबर होती है.
मां ने गहने गिरवी रख की बेटियों की मदद
इसके बाद उन्होंने माता-पिता से आइडिया साझा किया, परिवार के पास गांव में खाली जमीन भी थी. खेती की शुरुआत के लिए लगभग एक लाख रुपये की पूंजी की जरूरत थी. मां ने गहने गिरवी रखे. बेटियों ने भी कुछ बचत कर रखी थी. शुरुआती पूंजी का इंतजाम हुआ और उन्होंने लगभग 20 कट्ठा जमीन पर जरबेरा फूलों की खेती शुरू की. आज यह परिवार हर महीने पचास से साठ हजार रुपये कमाता है. इनकी खेती का मॉडल देखने-समझने कई लोग आ रहे हैं. प्रीति बताती हैं कि फूलों की खेती में सबसे बड़ी चुनौती होती है उत्पाद को सही वक्त पर बाजार में पहुंचाना.
तीन महीने बाद आने लग जाते हैं फूल
जरबेरा की खेती इस जोखिम से काफी हद तक सुरक्षा देती है. इस फूल की खासियत यह होती है कि इन्हें तोड़ने के बाद ज्यादा वक्त तक ताजा और सुरक्षित रखा जा सकता है. यह मूल रूप से अफ्रीकन फूल है. इसलिए इसे अफ्रीकन डेजी भी कहा जाता है. इसके फूल को एक बोतल पानी में रखा जाये तो वह करीब 15 दिनों तक उसी हाल में रहते हैं. दूसरी बात यह कि एक बार इसका पौधा लग गया तो इसमें तीन महीने बाद फूल आने लगते हैं और यह सिलसिला तीन साल जारी रहता है. किसान एक महीने में 10 बार फूल की तोड़ाई कर सकते हैं. जरबेरा के एक फूल की कीमत बाजार में 15 रुपये से लेकर 30 रुपये तक मिलती है.
बाजारे से आने लगे फूलों के ऑर्डर
इसकी खेती के लिए शेड नेट बनाने की जरूरत पड़ती है. इसमें शुरूआती लागत ज्यादा आती है, लेकिन यह लंबे वक्त तक कारगर होता है. शादी-विवाह या उत्सव-समारोह के दौरान जरबेरा के फूलों की खासी डिमांड रहती है. प्रीति बताती हैं कि अब तो जमशेदपुर से लेकर आस-पास के कई शहरों में लोगों को उनकी इस खेती के बारे में जानकारी हो गयी है. इसका फायदा यह हुआ है कि बाजार से उनके पास खुद ऑर्डर आने लगे हैं. डिलीवरी भी वे खुद ले जाते हैं. प्रियंका-प्रीति के पिता नवकिशोर भगत भी बेटियों की दिखाई इस राह से बेहद खुश हैं. उनकी चाहत है कि दोनों बेटियां अपनी इच्छा से करियर में आगे का रास्ता खुद चुनें. छोटी बिटिया प्रीति 12वीं की छात्रा है और वह आगे एग्रीकल्चर की ही पढ़ाई करना चाहती है, जबकि बड़ी बहन प्रियंका इन दिनों बीए पार्ट वन की छात्रा है और उनका आगे का इरादा एलएलबी करने का है.
पूर्वी सिंहभूम के ही मुसाबनी प्रखंड अंतर्गत गोहला पंचायत के मधुराम हांसदा ने भी जरबेरा फूलों की खेती में अच्छी सफलता हासिल की है. वह पहले रोजगार सेवक के रूप में काम कर रहे थे, लेकिन उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ फूलों की खेती शुरू की. उन्हें उद्यान विभाग के सहयोग से अनुदानित दर पर उन्हें शेड नेट प्राप्त हुआ. वे साल भर जरबेरा फूल की खेती करते हैं. उनके फूलों की सप्लाई झारखंड सहित बंगाल और उड़ीसा में भी है. इसी तरह घाटशिला प्रखंड की हेंदल जुड़ी पंचायत के हलुदबनी गांव के निवासी राजेश महतो 30 डिसमिल जमीन फूलों की खेती कर रहे हैं. उन्होंने पॉलीहाउस बनाकर जरबेरा के फूलों के पौधों की खेती की है. इससे एक निश्चित सामान्य ताप पौधों को प्राप्त होता है. सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन की प्रणाली अपनाई जाती है.