Reality Of Irrigation Projects In Jharkhand: झारखंड (Jharkhand) के किसानों (Farmera) के लिए सिंचाई (Irrigation) सबसे बड़ी समस्या है. आलम ये है कि, राज्य में सरकार की तरफ से किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद किसानों की खेती के लिए पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है. आजाद भारत के 75 साल बाद भी राज्य के आधे से अधिक खेतों में सिंचाई का पानी नहीं पहुंचा है. झारखंड में शुरू की गईं कई सिंचाई परियोजनाएं लंबित हैं इनमें से कई परियोजनाओं का काम तो आधा भी पूरा नहीं हो पाया है. झारखंड में कुल 31 सिंचाई परियोजना हैं, इसमें 9 बड़ी सिंचाई परियोजनाएं है. इसमें एक सिंचाई परियोजना एआइबीपी के तहत है, इसमें केंद्र सरकार (Central Government) मदद कर रही है. 8 परियोजनाएं राज्य योजना से संचालित हैं. 16 योजनाएं राज्य योजना के तहत मध्य सिंचाई परियोजनाएं हैं. जन विरोध के कारण 9 सिंचाई परियोजनाएं बंद हो चुकी हैं. 


बढ़ गया है खर्च 
किसान खेतों में सिंचाई के लिए डीजल इंजन का प्रयोग करते हैं जिस वजह से लागत बढ़ जाती है. किसानों का कहना है कि, झारखंड पठारी इलाका है और यहां भूगर्भ जल का स्तर भी नीचे हैं. इसलिए सिंचाई के लिए पानी लाना बड़ी परेशानी है. किसानों के मुताबिक, कुछ साल पहले तक डीजल सस्ता था तो सिंचाई करने में परेशानी नहीं होती थी, लेकिन अब कीमतें बढ़ने से सिंचाई का खर्च दोगुना हो गया है.


योजनाओं का हाल 
बता दें कि, गुमानी बराज योजना की शुरुआत 1976 में हुई थी. इसकी शुरुआती प्रशासनिक स्वीकृति 3.83 करोड़ रुपये की थी. समय पर योजना पूरी नहीं होने की वजह से लागत 361.35 करोड़ रुपये की हो गई है. राज्य में करीब आधा दर्जन से अधिक परियोजनाएं ऐसी हैं, जो आजादी के 20-25 साल बाद झारखंड वाले इलाके में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई थी लेकिन वो आज तक पूरी नहीं हो सकी हैं. 


सिंचाई की समस्या को दूर करने के लिए सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के लिए अब भारत सरकार 90 फीसदी राशि दे रही है. इससे 10465 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता विकसित हो सकती है. 1978 में इस योजना की 128.99 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी. समय पर निर्माण कार्य नहीं होने के कारण अब तक 12849.46 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिल चुकी है. इस योजना का खर्च 6 बार पुनरीक्षित हो चुका है. केंद्र सरकार इसमें अब तक 1889.61 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में दे चुकी है. इतना ही नहीं, कोनार परियोजना की शुरुआत 1975 में हुई थी. इसकी शुरुआती प्रशासनिक स्वीकृति 11.43 करोड़ रुपये की थी. समय पर योजना पूरी नहीं होने के कारण अब तक 2176.25 रुपये खर्च करने की प्रशासनिक स्वीकृति मिल चुकी है. इस पर अब तक करीब 500 करोड़ रुपये खर्च हो चुका है.


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