Jharkhand News: झारखंड में बदलते राजनीतिक समीकरण और चंपाई सोरेन (Champai Soren) के पाला बदलने से ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी का आदिवासी वोट बैंक विधानसभा चुनाव में बढ़ सकता है क्योंकि चंपाई आदिवासी समाज से आते हैं और कोल्हान क्षेत्र में उनका दबदबा भी है लेकिन राज्य के मुस्लिम और ईसाई वोट का क्या? क्या बीजेपी के लिए उन्हें अपने पाले में लाना आसान होगा? 


बीजेपी इस बार आदिवासी वोटरों में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है और वह राज्य की 26 फीसदी आदिवासी वोट पर नजर बनाए हुए हैं इसलिए चंपाई को प्रमुखता भी दी जा रही है. बीजेपी बीते कुछ समय से बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाकर आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. चंपाई सोरेन ने भी हाल ही में इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर की और कहा कि आदिवासियों के वंशजों की जमीन पर घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं.


चंपाई का साथ दिखा पाएगा करिश्मा?
वहीं, धऱातल पर देखें तो चंपाई की राजनीति कोल्हान तक ही सीमित है. वहीं, बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा जैसे आदिवासी नेताओं के साथ रहने के बाद भी बीजेपी को आरक्षित सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में चंपाई का साथ कितना करिश्मा दिखा पाएगा ये तो चुनाव में ही पता चलेगा. 


कहां जाएगा मुस्लिम समाज का वोट?
फिलहाल, राज्य के मुस्लिम और ईसाई वोटरों की बात करते हैं. झारखंड में ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम और ईसाई वोटर कांग्रेस और जेएमएम के अलावा कहीं और नहीं जाते तो वहीं अगड़ी जातियों का वोटर बीजेपी की तरफ इंटेक्ट माना जाता है. राज्य में 14 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं और करीब 5 फीसदी ईसाई वोटर हैं. वहीं, अगड़ी जातियों के वोटरों की संख्या 16 फीसदी है. 


तीन चुनाव में बहुत ज्यादा नहीं बढ़ी मुस्लिम विधायकों की संख्या
अगड़ी जाति वोटर तो बीजेपी के पाले में जाएंगे लेकिन मुस्लिम और ईसाई वोटरों का क्या जो चुनाव में किसी पार्टी को कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में मुसलमानों की आबादी करीब 15 प्रतिशत है और ईसाई की 4 प्रतिशत है. झारखंड में बीते तीन चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की बात करें तो 2009 में प्रदेश से पांच मुस्लिम विधायक निर्वाचित हुए थे. इनमें से दो कांग्रेस, दो जेएमएम और एक झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक से थे. वहीं, 2014 में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सिकुड़ा और केवल 2 प्रत्याशी ही निर्वाचित हुए हैं. दोनों ही कांग्रेस से थे.


2019 में विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व
वहीं, 2019 में दो कांग्रेस और दो जेएमएम से चुनकर आए. पाकुड़ से आलमगीर आलम (कांग्रेस), जामताड़ा से इरफान अंसारी (कांग्रेस) और मधुपुर से हाजी हुसैन अंसारी( जेएमएम) , गांडेय से जेएमएम सरफराज अहमद निर्वाचित हुए. बीते तीन चुनाव में बीजेपी से कोई मुस्लिम चेहरा विधानसभा नहीं पहुंचा. अगर किसी पार्टी से मुस्लिम नेता को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता तो फिर मुस्लिम वोटरों को खींचना भी आसान नजर नहीं आता. हालांकि यह देखना होगा कि बीजेपी इस चुनाव में कितने मुस्लिम नेता को टिकट देती है.


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