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Year Ender 2024: राजनीतिक रोमांच, कई उतार-चढ़ाव... झारखंड के लिए कैसा रहा साल 2024

Year Ender 2024: साल 2024 अब खत्म होने को है, लेकिन इस साल झारखंड ने कई सियासी उतार-चढ़ाव देखे. आइए जानते हैं झारखंड के लिए कैसा रहा साल 2024.

Year Ender 2024: झारखंड में साल 2024  में कई सियासी उतार-चढ़ाव देखे तो प्रदेश के लोगों ने नेतृत्व परिवर्तन भी देखा. दरअसल, इस साल की शुरुआत एक बॉलीवुड 'थ्रिलर' की तरह हुई जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दिल्ली से रहस्यमय ढंग से लापता होने से व्यापक अटकलें लगने लगीं. 

कथित भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तलब किए गए हेमंत 30 जनवरी को रांची में अपने आधिकारिक आवास में सड़क मार्ग से 1,250 किमी लंबी दूरी तय करने के बाद उपस्थित हुए. उनके इस तरह अचानक सामने आने से हर कोई आश्चर्यचकित रह गया. यह साल के राजनीतिक घटनाक्रम की शुरुआत भर थी. 31 जनवरी को राजभवन में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद हेमंत को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस घटनाक्रम के चलते झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन के वफादार सहयोगी चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया. चंपई फरवरी में राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे और सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अपना बहुमत साबित कर दिया.

कल्पना सोरेन ने संभाला मोर्चा
हेमंत सोरेन के कानूनी और राजनीतिक संघर्ष के बीच उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के रूप में झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य में एक नया सितारा उभरना शुरू हुआ. कल्पना ने न केवल पार्टी के भीतर अपनी जगह मजबूत की, बल्कि झारखंड में एक मजबूत ताकत बनकर उभरीं.

जब चंपाई सोरेन ने बदल ली पार्टी
झारखंड की जनता उस समय हैरान हुई जब सोरेन परिवार के करीबियों में गिने जाने वाले चंपाई सोरेन जेएमएम का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हो गई. यही नहीं घुसपैठियों के मुद्दे पर उन्होंने झामुमो सरकार को जमकर घेरा.

फिर सीएम बने हेमंत सोरेन
इस बीच, लगभग पांच महीने जेल में रहने के बाद सोरेन को जून में झारखंड उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी. उनकी रिहाई के कुछ दिन बाद उन्हें झामुमो विधायक दल के नेता के रूप में फिर से चुना गया. जुलाई तक, उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और राज्य की राजनीति में एक प्रमुख ताकत के रूप में अपनी जगह और पक्की कर ली.

कई हस्तियों का सियासी पतन
हेमंत और कल्पना जब ताकत हासिल कर रहे थे, उसी दौरान कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों का पतन भी हुआ, जिनमें हेमंत की भाभी सीता सोरेन भी शामिल थीं. लोकसभा चुनाव से पहले जब वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं तो वह सुर्खियों में आ गई थीं.

उनका यह दलबदल झामुमो के लिए एक महत्वपूर्ण झटका प्रतीत हुआ, लेकिन सीता की दुमका लोकसभा सीट पर करारी हार से यह जल्द ही खत्म हो गया. वह झामुमो के नलिन सोरेन से हार गईं और बाद में विधानसभा चुनाव में भी हार गईं.

इसी तरह, अपने करियर को पुनर्जीवित करने की उम्मीद में बीजेपी में शामिल हुईं दिग्गज कांग्रेस नेता गीता कोड़ा को लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. सीता और गीता का जाना राज्य के राजनीतिक परिदृश्य की अस्थिरता की याद दिलाता है.

आजसू पार्टी के सुदेश महतो और विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी जैसे अन्य लोगों को भी करारी हार का सामना करना पड़ा, जिससे 2024 राजनीतिक पुनर्मूल्यांकन का वर्ष बन गया.

दलबदल का साक्षी बना साल 2024
चंपई सोरेन उस समय भी काफी सुर्खियों में रहे जब उन्होंने झामुमो से नाता तोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. यह वर्ष न केवल दलबदल का साक्षी रहा, बल्कि राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल के गहरा जाने का भी साक्षी बना. इस साल राज्य में तत्कालीन मंत्री आलमगीर आलम सहित बड़े लोगों की गिरफ्तारी, छापे और नकदी बरामदगी जैसी घटनाएं भी देखने को मिलीं.

जेएमएम की सत्ता में वापसी
आश्चर्यजनक वापसी करते हुए नवंबर में झामुमो नीत गठबंधन 81 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीट जीतकर लगातार दूसरी बार सत्ता में आया और हेमंत सोरेन एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए. बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए सिर्फ 24 सीट पर ही सिमट गया.

खिलाड़ियों ने छोड़ी छाप
इसके अलावा, झारखंड के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ी, जिससे राज्य को गौरव मिला और यह प्रदर्शित हुआ कि इस क्षेत्र की प्रतिभाएं भी इसके राजनीतिक परिदृश्य की तरह ही विविध हैं.

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