(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
लखनऊः लोगों के लिए मिसाल है शशांक के हौसले की कहानी, व्हीलचेयर से गोल्ड मेडल तक का सफर
पैरालंपिक खिलाड़ी शशांक की कहानी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है. व्हीलचेयर पर आ जाने के बाद भी उसने हौसला नहीं छोड़ा और 8 से ज्यादा मेडल जीते.
लखनऊ, एबीपी गंगा। कहावत है हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा. यह कहावत भले ही सदियों पुरानी हो लेकिन यह सच आज भी है. हिम्मत वाले की ही मदद खुदा भी करता है. जिनके इरादे पक्के होते हैं, हौसलों में जान होती है, वही अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. कुछ ऐसी कहानी है 24 साल के शशांक की.
बाराबंकी के किसान के बेटे शशांक को बचपन में ही पोलियो हो गया. पोलियो ने शशांक को तो दोनों पैरों से लाचार बना दिया लेकिन उसके हौसलों को पोलियो तनिक भी डिगा नहीं पाया. बैडमिंटन के रैकेट और शटल से सामंजस्य बिठाने के लिए जिन पैरों की फुर्ती की जरूरत होती है वो भले ही बेजान हो, लेकिन शशांक ने बैडमिंटन में मेडल्स को जीतकर साबित कर दिया कि जान किसी अंग में नहीं, हौसलों में होती है.
जिस बैडमिंटन के गेम को बेडौल शरीर वाले खुद को चुस्त फूर्त बनाकर सुडौल बनाते हैं. शशांक उस गेम को इस व्हीलचेयर के सहारे खेलते हैं और वह भी इतना अच्छा, इतनी सफाई से कि कोई आम खिलाड़ी क्या खेलता होगा.
4 साल की उम्र में पोलियो शशांक को 4 साल की उम्र में पोलियो हुआ. इसके चलते उनके पैर लाचार हो गए. लेकिन इस लाचारी को उन्होंने अपनी ताकत बना लिया और अपने शौक बैडमिंटन से ही जिंदगी को नई दिशा देने में जुट गए. आज शशांक पैरा बैडमिंटन की सबसे कठिन कैटेगरी में खेलते हैं. शशांक अब तक 8 राष्ट्रीय और एक अंतरराष्ट्रीय मैच में हिस्सा लेकर 8 मेडल जीत चुके हैं. शशांक का इरादा अब थाईलैंड में होने वाली ओपन चैंपियनशिप और पैरा बैडमिंटन की वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का है.
मैरिज हॉल में की प्रैक्टिस दुनिया भर में कोविड-19 के चलते सभी खेल आयोजन तो रद्द कर दिए गए लेकिन शशांक ने अपनी प्रैक्टिस को रद्द नहीं होने दिया. प्रैक्टिस वाला स्टेडियम बंद हुआ तो उन्होंने अपने दोस्त के मैरिज हॉल के सीमेंटेड ग्राउंड पर प्रैक्टिस शुरू कर दी है.
दोस्त भी दे रहा साथ कहावत है जिसके पैर फटे ना बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई. लिहाजा शशांक के इस हौसले को कोई और नहीं उसका दोस्त बखूबी समझता है, क्योंकि उसका दोस्त राम हरक भी पैरा गेम्स का ही खिलाड़ी है. एक किडनी से 400 मीटर और 100 मीटर बाधा दौड़ लगाने वाला राम हरक अपने दोस्त को बैडमिंटन की प्रैक्टिस कराने के लिए रोज आता है. राम हरक खुद एक किडनी से अपनी जिंदगी जी कर, पैरा गेम्स में नाम रोशन कर रहा है लेकिन उसके अपनी इस कोशिश के साथ अपने दोस्त को भी सफलता के मुकाम तक ले जाने की है.
लोगों के लिए प्रेरणा है शशांक शशांक उन लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं जो जरा सी मुश्किल में जिंदगी जीना तो दूर जिंदगी से ही नाता तोड़ने का गलत फैसला ले लेते हैं. थोड़ी सी परेशानी से जिंदगी में मायूस होने वालों के लिए शशांक एक हौसला हैं. शशांक के पास ना तो पैसा है और ना ही स्वस्थ शरीर लेकिन अगर है तो सिर्फ दुनिया मे कुछ कर गुजरने की इच्छा और इच्छा को पूरा करने के लिए जज्बा.
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