मध्य प्रदेश के चुनावी रण में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को घेरने और पार्टी पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी आचार संहिता से पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा करने में जुटी है. 39 प्रत्याशियों के ऐलान के एक महीने बाद बीजेपी अब दूसरी लिस्ट जारी करने की तैयारी में है. 


कहा जा रहा है कि बीजेपी की दूसरी लिस्ट में 35 नाम हैं. हालांकि, सियासी गलियारों में सबसे अधिक सवाल कांग्रेस की सूची को लेकर पूछे जा रहे हैं. कांग्रेस ने कर्नाटक की तर्ज पर चुनाव की घोषणा से पहले प्रत्याशियों की लिस्ट जारी करने की बात कही थी. कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन जितेंद्र सिंह 15 सितंबर के डेडलाइन का भी जिक्र किया था. 


मई में पार्टी नेताओं के साथ मीटिंग के बाद राहुल गांधी ने कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस की बड़ी जीत का दावा किया था. राहुल ने कहा था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस 150 सीटों पर जीत दर्ज करेगी.


कांग्रेस ने कर्नाटक की रणनीति एमपी में लागू करने के लिए वहां के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला को मध्य प्रदेश में तैनात किया है.


हालांकि, टिकट वितरण में हो रही देरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी को 2018 में यहां की 114 सीटों पर जीत मिली थी.


100 नामों पर चर्चा, लेकिन फाइनल एक भी नहीं
दिल्ली में 2 दिन तक कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक चली है. इसमें 100 संभावित उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हुई है, लेकिन आपसी सहमति नहीं बन पाने की वजह से नाम होल्ड कर दिए गए. आने वाले दिनों में और बैठकें होंगी, जिसके बाद ही उम्मीदवारों की घोषणा की जाएगी.


स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के बाद कमलनाथ ने पत्रकारों से कहा कि एक भी नाम फाइनल नहीं हुआ है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक मीटिंग में मौजूद नेता टिकट वितरण के किसी एक फॉर्मूले पर सहमत नजर नहीं आए. 


बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कांग्रेस प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि एक दिन में टिकट फाइनल नहीं होत है. बैठक की अभी शुरुआत हुई है, जल्द ही हम टिकट वितरण का काम निपटा लेंगे.


सूची जारी करने में क्यों पिछड़ी कांग्रेस?


1. गढ़ में गुटबाजी का डर- महाकौशल, नर्मदांचल और विंध्य की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस पार्टी में एक से ज्यादा दावेदार है. यहां तक की जीती हुई सीटों पर भी विधायक के अलावा कई नेताओं ने दावेदारी ठोक रखी है. जिन सीटों पर दावेदारी अधिक है, उन सीटों की गिनती कांग्रेस के गढ़ के रूप में होती है.


ऐसे में इन सीटों पर टिकट की घोषणा करना पार्टी को पक्ष में नहीं दिख रहा है. कांग्रेस रणनीतिकारों को इन सीटों पर बगावत का भी डर सता रहा है. सूत्रों के मुताबिक इस बार कांग्रेस टिकट की सीधी घोषणा के बजाय गुपचुप तरीके का इस्तेमाल कर रही है.


इसके तहत जिन सीटों पर ज्यादा दावेदारी है, उन सीटों पर एक उम्मीदवार को फोन कर तैयारी करने के लिए कह दिया गया है. हाल ही में कमलनाथ ने अपने बयान के जरिए इसका संकेत भी दिया था. 


कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा था कि टिकट घोषणा में कोई जल्दबाजी नहीं है, जिसे टिकट देना है उसे मैंने इशारा कर दिया है. हालांकि, कहा जा रहा है कि कमलनाथ का ग्रीन सिग्नल सिर्फ बड़े नेताओं को ही मिला है. 


2. बीजेपी के होल्ड में दावेदार फाइनल नहीं- कांग्रेस इस बार बीजेपी को उसके गढ़ में भी मजबूती से टक्कर देने की रणनीति पर काम कर रही है. पार्टी ने मध्य प्रदेश विधानसभा के 66 सीटों के लिए अलग से प्लान तैयार किया है. इसमें बुधनी, दतिया, नरेला और इंदौर की सीटें शामिल हैं.


पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी के मजबूत सीटों पर एक नाम तय नहीं हुआ है. उदाहरण के लिए- बुधनी सीट पर शिवराज सिंह चौहान चुनाव लड़ते हैं. कांग्रेस इस बार यहां शिवराज मजबूत घेराबंदी करना चाहती है, लेकिन अब तक दावेदार फाइनल नहीं किया गया है.


पिछली बार बुधनी से कांग्रेस ने अरुण यादव को चुनाव लड़वाया था. इस बार यहां स्थानीय प्रत्याशी देने की मांग हो रही है. इसी तरह भोपाल की नरेला सीट का हाल है. यहां से बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है. नरेला में इस बार 2 दावेदारों के बीच पेंच फंस गया है.


पार्षद मनोज जोशी और पूर्व प्रत्याशी महेंद्र सिंह चौहान यहां से टिकट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. वहीं इंदौर की सभी सीटों पर पार्टी में एक से ज्यादा दावेदार हैं.


3. गठबंधन को लेकर तस्वीर साफ नहीं- मध्य प्रदेश में कांग्रेस से कई दलों के गठबंधन की बात चल रही है. इनमें सपा, गोंडवाना पार्टी और आम आदमी पार्टी प्रमुख है. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का असर आदिवासी सीटों पर है, जबकि सपा बुंदेलखंड में सक्रिय है.


इसी तरह सीधी इलाकों में आम आदमी पार्टी ने अपना दबदबा बना रखा है. 2018 में सपा को भले एक सीट पर जीत मिली थी, लेकिन पार्टी के उम्मीदवार 5 सीट पर कांग्रेस-बीजेपी को कड़ी टक्कर देने में कामयाब रहे थे. 


गोंगपा ने भी 20 सीटों पर कांग्रेस बीजेपी का खेल बिगाड़ा था. गोंगपा और सपा से अभी तक सीट फाइनल नहीं हुआ है. सपा ने करीब आधा दर्जन सीटों पर अपना दावा ठोका है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गोंगपा भी गठबंधन में कम से कम 5 सीट चाह रही है.


आम आदमी पार्टी ने पहले से 10 सीटों पर उम्मीदवार उतार रखे हैं. 


टिकट वितरण में देरी के सवाल पर मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नितिन दुबे कहते हैं- हमारे यहां सब सही है. दिल्ली से नाम फाइनल होने के बाद एक साथ उम्मीदवारों की सूची आएगी. बीजेपी भगदड़ के डर से छोटी-छोटी लिस्ट जारी कर रही है. 


कांग्रेस में टिकट पाने का फॉर्मूला सेट, 4 प्वॉइंट्स


1. सूत्रों के मुताबिक 2018 में 5000 से कम वोटों से हारे हुए उम्मीदवारों को कांग्रेस इस बार टिकट दे सकती है. हालांकि, उम्मीदवार जातीय और स्थानीय समीकरण में फिट बैठता हो. करीब 20-22 सीटें ऐसी है, जहां 2018 में 5 हजार से कम वोटों से कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हारे थे. 


2. 2018 में 20 हजार या उससे अधिक वोटों से हारने वाले उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया जाएगा. उनके सर्वे में आए दूसरे नामों को तरजीह दी जाएगी. कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इसके लिए सर्वे करावाए हैं. 


3. लगातार तीन बार चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों को इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा. टिकट वितरण में अंडर 50 का फॉर्मूला लागू करने की तैयारी है. कांग्रेस ने महिलाओं को भी तरजीह देने की रणनीति बनाई है.


4. कांग्रेस में इस बार कमलनाथ, अजय सिंह, अरुण यादव, जीतू पटवारी, कांतिलाल भूरिया जैसे नेता विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. सभी नेता सेफ सीट से ही चुनाव लड़ेंगे. पार्टी की कोशिश ज्यादा से ज्यादा सीटें जितने की है.