History: मुस्लिम शासकों के सामने घुटने टेकने से बेहतर जौहर करना समझा था रायसेन की रानी दुर्गावती ने, जानिए 490 साल पुराना इतिहास
History: रायसेन की राजपूत रानी दुर्गावती ने 6 मई 1532 को 700 महिलाओं के साथ रायसेन दुर्ग पर ही जौहर किया था. इस जौहर के आज 490 साल पूरे हो गए हैं. आइए जानते हैं इसका इतिहास.
History: फिल्म 'पद्मावती' के विवाद से चर्चाओं में आया जौहर शब्द मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से भी जुड़ा है.दरअसल यहां चर्चा किसी विवाद को लेकर नहीं बल्कि रायसेन की 700 राजपूत रानियों के जौहर की गौरवगाथा की हो रही है. 6 मई 1532 को रायसेन की राजपूत रानी दुर्गावती ने 700 महिलाओं के साथ रायसेन दुर्ग पर ही जौहर किया था. इस जौहर के आज 490 साल पूरे हो गए हैं. मुस्लिम शासकों के आक्रमण के दौर में जौहर की इस कहानी के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं.
रानी दुर्गावती को क्यों करना पड़ा जौहर
छह मई 1532 को रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ जौहर किया था. रायसेन किले पर राजा शिलादित्य की रानी दुर्गावती ने बहादुर शाह के सामने झुकने की बजाय लड़ने की बात कही थी. दुर्गावती ने मुगलों के सामने घुटने टेकने की जगह किले पर वर्तमान में मंदिर में कैद भगवान शिव को साक्षी मानकर 700 राजपूतानियों के साथ जौहर कर लिया था. रानी दुर्गावती मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की बेटी थीं. उनका विवाह रायसेन के तोमर राजा शिलादित्य से हुआ था. रायसेन के किले में हुए जौहर का उस समय के साहित्य और जनश्रुतियों में भी प्रमाण मिलता है.
राजपूत रानी दुर्गावती के जौहर के समय सिल्हादी का बेटा भूपति राय एक युद्ध अभियान पर गया था. उसे जब रायसेन में हुई इस घटना की जानकारी मिली तो वह लौटा और बहादुर शाह के सामंत को मार भगाया. इस प्रसिद्ध किले में रानी दुर्गावती के जौहर के कई प्रमाण आज भी मिलते हैं. रायसेन के गजेटियर में भी इसका उल्लेख है.
क्या गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वितीय ने दिया धोखा
इतिहासकार राजीव चौबे बताते हैं गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वितीय ने 1531 ईस्वी में मालवा पर आक्रमण किया था. तब तक रायसेन के शासक शिलादित्य से उसकी संधि हो चुकी थी. उधर दिल्ली में बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूं गद्दी पर बैठ चुका था. उस समय उज्जैन, आष्टा, रायसेन, विदिशा आदि क्षेत्र शिलादित्य के अधिकार में थे. उसी समय शेरशाह भी रायसेन पर विजय की योजना बना रहा था. वहीं बहादुर शाह को लग रहा था कि रायसेन पर अधिकार किये बिना इस क्षैत्र पर उसका अधिकार स्थायी नहीं हो पाएगा. इसलिए उसने रायसेन के शासक को जीतने की योजना बनाई. उसने शिलादित्य को सहयोगियों के साथ बंदी बना लिया.
इसके बाद शिलादित्य के बेटे लक्ष्मण सेन अपनी सेना की छोटी सी टुकड़ी के साथ रायसेन दुर्ग करने रवाना हुए. भूपति राय भी खबर लगते ही चित्तौढगढ़ की सेना साथ रायसेन की ओर चल पड़े. तोमर राजवंश के राजा शिलादित्य की पत्नी रानी दुर्गावती भी अत्यंत चतुर और साहसी स्त्री थीं. उन्होंने संदेश भेजा कि यदि महाराज शिलादित्य की आज्ञा है तो वे स्वयं दुर्ग में आकर रानी से बात करें. भूपति राय से घबराए बहादुरशाह ने रानी की इस शर्त को स्वीकार कर लिया. शिलादित्य को अपने सिपहसालार मलिक शेर के साथ 4 मई 1532 दुर्ग में पहुँचा दिया गया. दुर्ग में शिलादित्य की महारानी दुर्गावती और लक्ष्मण सेन आदि से भेंट हुई. रानी ने कहा हम सबका अंतकाल निकट है. हम वीरों की तरह शौर्य का प्रदर्शन कर प्राण त्यागेंगे. हमने निश्चय किया है कि स्त्रियां जौहर की अग्नि में कूदकर प्राण न्योछावर करेंगी और पुरुष अंतिम समय तक शत्रु से लोहा लेते हुए लड़ेंगे, लेकिन जीते जी दुर्ग दुश्मन को नहीं सौंपेंगे.
महल के कुंड में धधकी थी जौहर की ज्वाला
6 मई 1532 को रायसेन दुर्ग पर रानी महल के एक कुंड में जौहर की ज्वाला धधक उठी. रानी दुर्गावती समेत 700 राजपूत स्त्रियों ने अपने बच्चों सहित अग्नि कुंड में प्रवेश कर लिया. वहीं शिलादित्य और लक्ष्मण सेन सहित सभी राजपूत मौत से जूझने निकल पड़े. शिलादित्य अंतिम समय तक सेना का नेतृत्व करते हुए 10 मई 1532 ईस्वी को वीरगति को प्राप्त हुए.
रायसेन के राजपूत समाज के लोग 6 मई को जौहर दिवस मनाते हैं. स्थानीय निवासी अलर्क राजपूत और बबलू ठाकुर बताते हैं कि वीरांगना राजपूतानियों के जौहर और अग्नि पुत्र राजपूतों के इस अपूर्व बलिदान को रायसेन सदैव याद रखेगा.
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