अंतर धार्मिक विवाह पर ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड (All India Ulama Board) ने बड़ा फैसला लिया है. बोर्ड ने देश के सभी काजियों को एक पत्र जारी करते हुए कहा है कि दो अलग धर्म के जोड़े की शादी इसी शर्त पर कराएं जब दोनों पक्षों के माता-पिता शादी के वक्त उपस्थित रहें. बता दें कि मध्य प्रदेश में बीते दिनों सरकार के द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक- 2021 लागू कर दिया गया है जिसके चलते उलेमा बोर्ड ने अंतर धार्मिक शादियों के मामले को गंभीरता से लिया है.
उलेमा बोर्ड के एमपी प्रदेश अध्यक्ष काजी सैयद अनस अली नदवी ने कहा कि जिन अंतर धार्मिक विवाहों में माता-पिता की सहमति नहीं हो, उन्हें अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि बिना माता-पिता की सहमति वाले अंतर धार्मिक विवाह प्रदेश में शांति और धार्मिक सद्भाव बिगाड़ रहे हैं.
काजी सैयद अनस अली नदवी ने यह भी कहा कि अंतर धार्मिक विवाह पर कोई रोक नहीं है, लेकिन काजियों को सभी कागजातों और दस्तावेजों की बारीकी से जांच करने के बाद ही विवाह करवाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि शादी का मकसद धर्म परिवर्तन नहीं होना चाहिए, हमें शिकायतें मिल रही हैं कि अलग-अलग धर्मों के लोग चुपके से शादी कर रहे हैं जिसके कारण प्रदेश में धार्मिक सद्भाव बिगड़ रहा है जो कि इस्लाम और हमारी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए ठीक नहीं है.
काजी सैयद अनस अली नदवी ने कहा कि एमपी फ्रीडम आफ रिलिजन एक्ट लागू होने से कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अंतरधार्मिक विवाहों को धर्मांतरण का नाम देकर लोगों के सामने प्रस्तुत किया है जिससे समस्याएं पैदा हो रही हैं. इसी के चलते अखिल भारतीय उलेमा बोर्ड ने काजियों को पत्र लिखकर निर्देश दिया है कि अंतर धार्मिक शादियों में माता-पिता की उपस्थिति अनिवार्य हो.
बताते चलें कि मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी शासित उन राज्यों में शामिल है जहां अंतर-धार्मिक विवाह के जरिए धर्मांतरण को क्रिमिनलाइज्ड कर दिया गया है जिसे लव जिहाद का भी नाम दिया जाता है. वहीं, इस कानून का विरोध करने वाले पक्षों द्वारा ये आरोप लगाया जाता है कि इसके माध्यम से अल्पसंख्यकों को टारगेट किया जा रहा है. इन पक्षों का कहना है कि यह जोड़ों को अपनी पसंद से शादी करने से रोकने वाला कानून है.