Risk of Earthquake in MP: भूकंप के लिए संवेदनशील हैं नर्मदा घाटी के इलाके, भोपाल के पास से गुजरती है सिस्मो लाइन
Earthquake Risk: अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की सीमा पर से सिस्मो लाइन गुजरती है. इसके चलते भोपाल और सीहोर जोन 2 में आ जाते हैं तो नर्मदापुरम और रायसेन जोन 3 में आ जाते हैं.
तुर्किए में आए शक्तिशाली भूकंप के बाद गुजरात के भुज में 26 जनवरी 2001 को आए भूकंप के बाद मची तबाही की यादें ताजा हो गई हैं.भुज की तरह ही तुर्किए में भी तबाही का मंजर देखा जा रहा है.अगर हम भारत की बात करें तो देश को चार भूकंप संवेदी जोनों में बांटा गया है.मध्य प्रदेश के नर्मदा के तटीय इलाकों को भूकंप के लिहाज से संवेदनशील माना गया है. भूकंप की संवेदनशीलता के हिसाब से देश के अलग-अलग हिस्सों को बांटने वाली सिस्मो जोन की लाइन प्रदेश के बीचों बीच से गुजरती है.और इसी लाइन के बीच की पट्टिका नर्मदा घाटी के साथ-साथ चलती है.इसीलिए नर्मदा के दोनों ओर के कई जिले और सतपुड़ा सहित विंध्याचल पर्वतमालाओं के करीब के हिस्से अधिक भूकंप संवेदी जोन तीन में स्थित हैं,वहीं प्रदेश के बाकी जिले जोन दो में आते हैं,यानि सबसे कम संवेदनशील क्षेत्र.
भूकंप का खतरा
भूगर्भीय हलचल के शोधकर्ताओं ने भारत को भूकंप के खतरे या संवेदनशीलता के आधार पर चार अलग-अलग हिस्सों में बांटा है.इसे सिस्मो जोन कहा जाता है.जोन-2 जो सबसे कम सक्रीय या काम संवेदनशील इलाका होता है.इसके बाद जोन 3 है, जो मध्यम संवेदनशील मना जाता है. इन इलाकों में भूकंप का खतरा अपेक्षाकृत थोड़ा अधिक होता है.वहीं जोन 4 अधिक सक्रीय या संवेदनशील इलाकों में आता है.इनमें भूकंप का खतरा सबसे अधिक रहता है. वहीं जोन 5 में अत्यधिक सक्रिय या संवेदनशील हिस्से आते हैं.
मध्य प्रदेश के अधिक संवेदनशील यानी जोन 3 में आने वाले जिले खंडवा, खरगोन, हरदा, नर्मदापुरम, नरसिंघपुर, सिवनी, जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, अनूपपुर, उमरिया, शहडोल और सीधी, सिंगरौली है. ये सभी जिले नर्मदा घाटी के आसपास बसे हैं. इन इलाकों में भूगर्भिय हलचल को लेकर अध्ययनकर्ता संवदेनशील स्थिति मानते हैं.
सिस्मो जोन-2 में कौन-कौन से इलाके आते हैं
वहीं जोन 3 के अपेक्षाकृत सुरक्षित जोन 2 में इंदौर, ग्वालियर, अशोक नगर, भोपाल, आगर मालवा, उज्जैन, उमरिया, कटनी, ग्वालियर, गुना, श्योपुर, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर, शिवपुरी, भिंड, बुरहानपुर, मुरैना, पन्ना, बड़वानी, रीवा, रतलाम, सागर, देवास, शाजापुर, नीमच, दतिया, मंदसौर, छिंदवाड़ा, बैतूल, राजगढ़, बालाघाट, विदिशा, धार, रायसेन और दमोह जिले शामिल हैं.
भूगर्भीय हलचलों के अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक प्रदेश की राजधानी की सीमा पर से सिस्मो लाइन गुजरती है. इसके चलते भोपाल और सीहोर जोन 2 में आ जाते हैं तो नर्मदापुरम और रायसेन जोन 3 में आ जाते हैं. अध्ययनकर्ताओं का मानना है की भूकंप संवेदनशीलता के हिसाब से प्रदेश के हिस्से दो सिस्मो जोन में आते हैं. नर्मदा घाटी की पट्टी से लगे इलाके अधिक संवेदनशील जोन 3 में आते हैं, जबकि राजधानी भोपाल सहित प्रदेश का बाकी हिस्सा सबसे कम संवेदनशील जोन 2 में आता है.
नर्मदा नदी पर बने बांध और भूकंप
भूगर्भीय हलचलों पर अध्ययन करने वाले संजय राठी ने बताया की मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के पंधाना क्षेत्र में वर्ष 1994-95 के दौरान भूगर्भीय हलचलें हुईं.यह इलाका नर्मदा के करीब का माना जाता है,लेकिन 2000 के बाद से यहां स्थिति सामान्य सी है.इसके पहले यहां भूगर्भीय हलचलें होती रही हैं,लेकिन अध्ययनकर्ता के मुताबिक यहां का प्रेशर भुज में जाकर रिलीज हो गया है.उनका मानना है की भुज में गंभीर श्रेणी की भूगर्भीय हलचल हुई थी.ऐसी ही हलचल अब तुर्किए में हुई है. खंडवा के पंधाना का क्षेत्र सुक्ताभृंश (सुक्ता क्रेक) कहलाता है. इसके ऊपर ही पंधाना बसा हुआ है.ऐसा माना जाता है की यहां पूर्व से ही भूगर्भीय हलचलें होती आई हैं.
भूगर्भीय हलचलों के अध्ययन कर्त्ता संजय राठी ने कहा की ऐसा माना जाता है की नर्मदा के तटीय इलाके भूकंप के हिसाब से काफी संवेदनशील हैं,लेकिन सरकार ने इस मामले में काफी रिसर्च करवाई है.तब जाकर ही नर्मदा नदी पर बड़े बांधों का निर्माण करवाया गया है.जबकि सामाजिक संगठनों का मानना है की भूकंप संवेदी क्षेत्र होने के चलते यहां पर बांध नहीं बनाए जाने चाहिए थे.लेकिन सरकार ने भूगर्भीय हलचलों की स्थिति पर नजर रखने के लिए नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर बांध क्षेत्र के 5 अलग अलग हिस्सों में भूकंप अध्ययन केंद्र या भूकंप वेधशालाएं बनाई हैं, जो हरेक वक्त ऐसी किसी भी स्थिति पार नजर रखती हैं.
ये भी पढ़ें