जबलपुर: भले ही आज बीजेपी नेता उमा भारती मध्य प्रदेश में शराबबन्दी की मांग कर रही हैं, लेकिन जबलपुर में एक ऐसा आदिवासी गांव है, जहां 12 साल से शराबबंदी लागू है. गांव के लोगों ने एकता और अनुशासन की ऐसी मिसाल पेश की है कि गांव में अब कोई भी शराब पीकर या लेकर नहीं आता है.'शराब सामाजिक बुराई है. इसे मिलजुलकर ही खत्म किया जा सकता है', यह स्लोगन अक्सर आपने सुना होगा, लेकिन दुर्भाग्य से इसका पालन कोई नहीं करता. हर समाज और वर्ग के लोग नशे की इस बीमारी से परेशान हैं, लेकिन वे फिर भी इससे छुटकारा नहीं पा सके. आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे गांव कहानी जिसने नशाबंदी की मिसाल पेश की है.


शराब पीकर आने वालों की खैर नहीं


जबलपुर का एक आदिवासी बाहुल्य गांव इस मामले में अलहदा साबित हो रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में रहने वाले लोगों ने बीते 12 सालों में शराब को नजदीक से देखा तक नहीं है. दरअसल 12 साल पूर्व गांव के लोगों ने शराबबंदी का संकल्प लिया और तब से आजतक इस गांव में न तो शराब खरीदी गई, न बेची गई और न ही किसी ने इसे हाथ लगाया. यदि कोई शख्स बाहर से शराब लेकर या पीकर आए तो समझो उसकी खैर नहीं. ग्राम पंचायत द्वारा शराब के उपयोग पर सीधे 10 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया है. इसके लिए बकायदा प्रस्ताव पारित किया गया था यानि इस गांव में अपनी ही एक सरकार चलती है जो लोगों की जिंदगी को शराब जैसी बुराई से बचाकर रखे हुए है.


आइए अब आपको भी इस गांव से मिलवाते हैं. जबलपुर जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बरगी विधानसभा के आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत देवरी नवीन के पंचों एवं महिलाओं ने शराबबंदी को लेकर आपसी सौहार्द्र से 12 साल पूर्व एक ऐतिहासिक फैसला लिया था. ग्राम पंचायत द्वारा नशामुक्ति के लिए एक समिति का गठन करते हुए ग्राम पंचायत में शराबबंदी करने का निर्णय लिया गया. इस मामले को लेकर एक संकल्प पारित करते हुए गांव में बैठक कर इसको पूरा किया गया. 


इतना लगता है जुर्माना


गांव के मुखिया जय सिंह बरकड़े कहते हैं कि शराब हर विवाद की जड़ है. शराब से अच्छे-अच्छे घर बर्बाद हुए और कई परिवार बिखर गए.यह नौबत कभी गांव में न आए इसलिए गांव की पंचायत ने शराब बिक्री पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने के साथ पीने वाले व्यक्ति पर 10 हजार रुपये का जुर्माना और गाली-गलौज करने वाले पर 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का निर्णय लिया है. हैरानी की बात यह है कि खेती और मजदूरी करने वाले गरीब आदिवासी परिवारों ने इतनी बड़ी रकम का जुर्माना लगाना स्वीकार भी कर लिया. ग्रामीण आदिवासी बीते 12 सालों से इस नियम को परंपरा मानकर रहते चले आ रहे हैं.


बरकड़े के मुताबिक ग्राम पंचायत देवरी नवीन के साथ तिन्हेटा और बाड़ीबारा गांव में भी शराब पीने वाले व्यक्ति पर जुर्माने लगाने का नियम है. यह सब वहां की महिलाओं के संकल्प से हुआ है. महिलाएं आगे आकर खुद शराब पीने वाले व्यक्ति का नाम बताती हैं. इसके साथ ही शराब पीने वाले व्यक्ति से जुर्माने के रूप में जो राशि मिलती है, वह गांव के विकास, गरीब बच्चों की शादी और शिक्षा जैसे कार्यों पर खर्च की जाती है.


रंग लाई महिलाओं की पहल


गांव की महिला पंच झूना बाई मरकाम बताती हैं कि एक दौर था जब ग्राम पंचायत के हर मोहल्ले में जगह-जगह अनाधिकृत रूप से शराब बनाई जाती थी और बेची जाति थी. ग्राम पंचायत के युवा और बुजुर्ग शराब के आदी हो रहे थे. चारों ओर अशांति फैल रही थी. शराब की बिक्री के कारण गांव में महिलाओं और छोटे बच्चों पर विपरीत असर पड़ रहा था. शराब बंदी का निर्णय लेने के बाद शुरूआती सालों में शराबियों को काफी परेशानी भी हुई, क्योंकि शराब बेचने और पीने वाले को सबसे पहले समिति के सामने पेश किया जाता था. फिर समिति के सदस्य पूरी जानकारी के साथ ग्राम पंचायत में मामले को लाते थे. जहां ग्राम पंचायत द्वारा शराब पीने वालों ओर बेचने वाले दोनों पर जुर्माना लगाया जाता था. लेकिन विगत पांच सालों से गांव में शराब पीने, बेचने का एक भी मामला सामने नहीं आया और पूरा गांव अब शराब मुक्त हो चुका है.


हर कोई करता है तारीफ


गांव के सरपंच रामकुमार सैयाम बताते हैं कि गांव का एक युवक रोज शराब पीकर अपने घर आता था. इस बात से परेशान होकर उसकी पत्नी ने ही इसकी शिकायत गांव की पंचायत से की. इसके बाद गांव की पंचायत ने अपना फैसला सुनाया और युवक पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. ऐसा ही एक मामला और गांव की पंचायत में आया. जहां गांव के कुछ लोगों ने शिकायत की एक युवा आए दिन बाहर से शराब लाकर गांव में बेच रहा है. गांव की पंचायत ने उस पर भी 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया. जुर्माने की रकम का सदुपयोग पंचायत में होने वाले शुभ कार्यों के लिए बर्तन खरीदने में किया गया. शराबबंदी के लिए पूर्व में कलेक्टर, कमिश्नर और मुख्यमंत्री तक इस ग्राम पंचायत की सराहना कर चुके हैं.


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