भोजशाला सर्वे का 17वां दिन, गर्भगृह से निकाली गई लगभग 500 तगारी मिट्टी, दोनों पक्षकार रहे मौजूद
Bhojshala Survey: हिंदू समाज द्वारा धार जिले स्थित एसआई द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी के स्मारक भोजशाला को वाग्देवी को समर्पित मंदिर माना जाता है, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता आया है.
Bhojshala ASI Survey: भोजशाला सर्वे का आज 17वां दिन रहा. जहां सर्वे टीम 21 अधिकारी और लगभग 30 से अधिक मजदूरों के साथ भोजशाला पहुंची. यहां हिंदू पक्ष से गोपाल शर्मा, आशीष गोयल तथा मुस्लिम पक्ष से अब्दुल समद खान टीम के साथ भोजशाला में मौजूद रहे.
हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के आदेश पर भोजशाला का सर्वे 22 मार्च से जारी है. आज सर्वे का 17वां दिन था. आज सर्वे टीम 21 अधिकारी और 30 से अधिक मजदूरों के साथ भोजशाला पहुंची. सर्वे के दौरान भोजशाला परिसर की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी और अलर्ट है. कल 16 वें दिन भोजशाला गर्भगृह में उत्खनन का कार्य किया गया था.
दोनों पक्षों के पक्षकार भोजशाला में मौजूद रहे
सर्वे समाप्ति के बाद हिंदू पक्ष से पक्षकार गोपाल शर्मा ने बताया कि भोजशाला के गर्भगृह से लगभग 500 तगारी मिट्टी निकाली गई. अगर पूरे परिसर की बात करें तो लगभग 3500 से अधिक तगारी मिट्टी निकाली जा चुकी है. आज 17वें दिन दोनों पक्षों के पक्षकार भोजशाला में मौजूद रहे. बातचीत के दौरान दोनों ही पक्षों ने बताया कि वह ASI के सर्वे से संतुष्ट हैं.
भोजशाला परिसर में नमाज अदा की जाती है
इससे पहले भोजशाला के 15वें दिन 12 बजे दोपहर में सर्वे समाप्त कर दिया गया था. क्योंकि शुक्रवार को मुस्लिम समाज के द्वारा भोजशाला परिसर में नमाज अदा की जाती है. हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बाहर आकर बताया पश्चिमी दीवार पर खुदाई के दौरान जो पिलर बेस मिला था वह बहुत महत्वपूर्ण है.
उन्होंने यह भी कहा कि तीन सीढ़ियां स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं. सफाई के दौरान उन्होंने यह भी बताया कि ऐसा प्रतिबिंब दिख रहा है कि और भी सीढ़ियां निकलेंगे. मुस्लिम पक्ष के मोइनुद्दीन उर्फ गुरु बाबा जो कमल मौलाना बहुत साल परिसर में ही निवास करते हैं, ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.
जानिए क्या है धार भोजशाला विवाद?
हिंदू समाज द्वारा धार जिले स्थित एसआई द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी के स्मारक भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर माना जाता है. जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता आया है. 7 अप्रैल 2003 को एएसआई द्वारा यहां एक व्यवस्था बनाई गई थी कि यहां हिंदू मंगलवार को भोजशाला परिसर में पूजा कर सकेंगे और जबकि मुस्लिम शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा कर पाएंगे. यही व्यवस्था तब से चली आ रही है.
इस मुद्दे पर धार्मिक तनाव कई बार पैदा हुआ है. खासकर जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आज सोमवार को धार की विवादित भोजशाला को लेकर बड़ा फैसला दिया है. भोजशाला को लेकर एमपी हाई कोर्ट की इंदौर ब्रांच ने भोजशाला के एएसआई सर्वे के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने इसके लिए एएसआई को पांच सदस्य टीम गठित करने के निर्देश दिया. सामाजिक संगठन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से दायर याचिका पर ये फैसला आया है. अब आप सोच रहे होंगे कि यह पूरा विवाद है क्या? इसको लेकर हाई कोर्ट का अहम फैसला आया है.
धार जिले में हिंदू भोजशाला को देवी वाग्देवी का मंदिर मानते हैं जबकि मुस्लिम इस कमाल मौला की मस्जिद कहते हैं. इस मुद्दे पर धार्मिक उन्माद कई बार पैदा हुआ है. खासकर जब बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ती है क्योंकि मुस्लिम भोजशाला में नमाज अदा करते हैं और हिंदू पूजा करने के लिए कतार में खड़े होते हैं इस विवाद को समझने के लिए आपको 1000 साल से भी पीछे जाना होगा.
हिंदू धर्म के लोग आस्था रखते हैं
इतिहास के पन्नों में धार पर परमार वंश का शासन था और राजा भोज 1000 से 1055 ई तक धार के शासक थे. खास बात यह थी कि राजा भोज देवी सरस्वती के बहुत बड़े भक्त थे. 1034 में एक महाविद्यालय की स्थापना उन्होंने यहां की.
ये महाविद्यालय बाद में भोजशाला के नाम से जाना गया. जिस पर हिंदू धर्म के लोग आस्था रखते हैं. इधर अलाउद्दीन खिलजी ने कथित तौर पर 1305 ईस्वी में भोजशाला को ट्रस्ट कर दिया फिर 1401 में दिलावर खान ने भोजशाला के एक हिस्से में एक मस्जिद बनवाई. इसके बाद मोहम्मद शाह खिलजी ने 1514 ईस्वी में भोजशाला के अलग हिस्से में एक और मस्जिद बनवाई.
मुस्लिम समाज करते है ये दावा
1875 में उत्खनन में यहां मां सरस्वती के एक प्रतिमा निकली जिसे बाद में अंग्रेजों द्वारा लंदन ले जाया गया. यह प्रतिमा अब लंदन के संग्रहालय में है. हिंदू समाज सरस्वती को समर्पित इसे मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का मानना है कि राजवंश के शासनकाल के दौरान सिर्फ कुछ समय के लिए मुसलमान को भोजशाला में नमाज की अनुमति मिली थी. वहीं मुस्लिम समाज यहां नमाज अदा करने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा का दावा करता है.
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