Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) हाईकोर्ट (High Court) ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS),भोपाल (Bhopal) से पूछा है कि प्राध्यापकों और सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया के बीच में नियमों में कैसे बदलाव कर दिया गया. इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत का हवाला देते हुए दलील दी गई कि खेल शुरू हो जाने के बाद बीच में नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता.


हाईकोर्ट में राकेश कुमार मिश्रा और अन्य ने याचिका दायर कर बताया कि एम्स भोपाल में 91 प्राध्यापकों, अतिरिक्त प्राध्यापकों और सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था.याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एनएस रूपराह ने सुनवाई के दौरान कहा कि विज्ञापन के अनुसार आकलन के 50 अंक निर्धारित थे. परिणाम आने के पहले इसे 35 कर दिया गया. इसके अलावा अध्यापन और शोध अनुभव के निर्धारित 15 अंक भी हटा दिए गए.


हाईकोर्ट ने भोपाल एम्स से पूछा सवाल
याचिकाकर्ता का आरोप था कि एम्स भोपाल ने उपरोक्त नियुक्तियां विज्ञापन में दर्शाए गए मापदंड से की, लेकिन परिणाम निकालने से पहले सारे मापदंड बदल दिए. सर्वोच्य न्यायालय के न्याय दृष्टांत की नजीर प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता रूपराह ने तर्क दिया की खेल खेलने के बाद खेल के नियम नहीं बदले जा सकते है. अतः सारी नियुक्तियां अवैध हैं. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भोपाल प्रबंधन से पूछा है कि प्राध्यापकों और सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया के बीच में नियमों में कैसे बदलाव कर दिया. जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने एम्स के डायरेक्टर को इस संबंध में व्यक्तिगत हलफनामा प्रस्तुत करने के निर्देश दिए.


बॉन्ड भरवाया तो नियुक्ति क्यों नहीं दी
कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं होने पर डायरेक्टर को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होना पड़ेगा. मामले पर अगली सुनवाई 23 जून हो होगी. वहीं एक अन्य याचिका में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शासन से पूछा है कि जब मेडिकल छात्र से बॉण्ड भरवाया था तो मेडिकल ऑफीसर के पद पर नियुक्ति क्यों नहीं दी? नियमानुसार अब उसके दस्तावेज वापस क्यों नहीं किए जा रहे? चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने प्रमुख सचिव  डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन और आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.


मूलतः महाराष्ट्र के रहने वाले डॉ. भीमराव रूप सिंह पवार ने याचिका दायर कर बताया कि उन्होंने 14 जुलाई 2017 को एमडी कोर्स पूरा किया था. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने बताया कि नियमानुसार रिजल्ट घोषित होने के तीन महीने के भीतर यदि सरकार मेडिकल ऑफीसर के पद पर नियुक्ति नहीं देती, तो बॉन्ड की शर्तें स्वमेव समाप्त हो जाती हैं. दलील दी गई कि आज तक नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया, इसलिए याचिकाकर्ता के सभी मूल दस्तावेज लौटाए जाएं और बॉन्ड की शर्त से मुक्त किया जाए.


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