Bhuri Bai: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया गया. इसमें एक नाम ऐसा है जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही है. ये नाम है 'भुरी बाई'. भूरी बाई को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए पद्मश्री दिया गया है.
कौन है भुरी बाई?
आदिवासी समुदाय से आने वाली भूरी बाई, मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गांव की रहने वाली हैं. बचपन से ही भूरी बाई चित्रकारी करने की शौकीन थी. उन्होंने कैनवास का इस्तेमाल कर आदिवासियों के जीवन से जुड़ी चित्रकारी को करने की शुरूआत की और देखते ही देखते ही उनकी पहचान पूरी देश में हो गई. भूरी बाई की बनाई गई पेटिंग्स ने न केवल देश बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई. उनकी पेटिंग अमेरिका में लगी वर्कशॉप में भी लगाई गई. जहां उनकी पेटिंग खूब पसंद की गई. वे देश के अलग-अलग जिलों में आर्ट और पिथोरा आर्ट पर वर्कशॉप का आयोजन करवाती हैं.
पद्मश्री मिलने के बाद भुरी बाई ने कहा "ये पुरस्कार मुझे आदिवासी भील पेंटिंग करने के लिए मिला है, मैंने मिट्टी से पेंटिंग की शुरुआत की थी. मैं भोपाल के भारत भवन में मज़दूरी करती थी और उसके साथ पेंटिंग भी बनाती थी. मेरी पेंटिंग आज देश विदेश में जाती है. मैं बहुत खुश हूं."
हालांकि भूरी बाई का यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता था. भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरूआत की. बाद में उनकी पेटिंग की पहचान सब जगह में होने लगी. इसके बाद भुरी बाई भोपाल आकर मजदूरी करने लगी. उस दौर में भोपाल में पेटिंग बनाने का काम करती थी. बाद में संस्कृति विभाग की तरफ से उन्हें पेटिंग बनाने का काम दिया गया. जिसके बाद वे भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करने लगी. उन्हें 1986-87 में मध्य प्रदेश सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार शिखर सम्मान से सम्मानित किया जा चुक है. इसके अलावा 1998 में मध्य प्रदेश सरकार ने ही उन्हें अहिल्या सम्मान से भी सम्मानित किया था.
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