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MP Elections 2023: चुनाव से पहले विंध्य प्रदेश को लेकर सियासत तेज, बीजेपी MLA नारायण त्रिपाठी ने की बगावत

MP News: साल 2000 में एमपी की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने केंद्र को एक संकल्प भेजा था जिसमें विंध्य प्रदेश की मांग की गई थी जिस मांग को खारिज कर दिया गया था.

MP Assembly Elections: मध्य प्रदेश में इन दिनों विधानसभा चुनाव 2023 का बिगुल बज चुका है,ऐसे में इस चुनावी दंगल की तैयारियों में राज्य की प्रमुख पार्टियां जुटी हुई हैं. हालांकि चुनाव के मद्देनजर राज्य में राजनीतिक दलों को अपनों से ही खतरा है. बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) अपनों को मनाने की तैयारी में हैं क्योंकि चुनावी साल में उनके अपने ही बाधक बन सकते हैं. बीजेपी के एक विधायक पार्टी से बगावत कर एक अलग प्रदेश बनाने की मांग कर रहें है. विंध्य की जनता को रिझाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते. हालांकि विंध्य की आम जनता भी यही चाहती है कि उसका खोया हुआ प्रदेश उसे वापस मिले इसलिए इस बार विंध्य क्षेत्र (Vindhya) की सियासी राजनीति में काले बादल छाए हुए हैं. जो राजनीतिक पार्टियों का खेल बिगाड़ सकते हैं.

दरअसल, मध्य प्रदेश के गठन से पहले विंध्य अलग प्रदेश था जिसकी राजधानी रीवा थी. आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एजेंसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य प्रदेश बनाया था. विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है. विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन भी हुआ था. विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित शंभुनाथ शुक्ला थे, जो शहडोल के रहने वाले थे. वर्तमान में जिस इमारत में रीवा नगर निगम है, वो विधानसभा हुआ करती थी. विंध्य प्रदेश करीब चार साल तक अस्तित्व में रहा. 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही यह मध्य प्रदेश में मिल गया था.

विंध्य क्षेत्र में आते हैं ये जिले

मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिले विंध्य क्षेत्र में ही आते हैं, जबकि कटनी जिले का कुछ हिस्सा भी इसी में माना जाता है. 1 नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश का गठन हुआ था. इसके बाद से विंध्य को अलग प्रदेश बनाए जाने की मांग उठने लगी थी. विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी अलग प्रदेश बनाए जाने के पक्षधर थे. तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विधानसभा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलाकर अलग विंध्य प्रदेश बनाया जाना चाहिए.

2000 में केंद्र को भेजा था प्रस्ताव

हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और बात आई-गई हो गई लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद कभी-कभी यह मांग दोबारा उठती रही. कई बार छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए. सन 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड प्रदेश बनाने के गठन को स्वीकृति दी थी. उस समय भी श्रीनिवास तिवारी के बेटे दिवंगत सुंदरलाल तिवारी ने एक बार फिर मुद्दा गर्मा दिया था. उस समय एनडीए सरकार को एक पत्र लिखा था. मध्य प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन तब केंद्र ने इसे खारिज कर केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हरी झंडी दे दी थी.

बीजेपी विधायक ने विंध्य के लिए की बगावत

विंध्य को दोबारा अस्तित्व में लाने के प्रयास में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक ने पार्टी से बगावत कर एक नई पार्टी बना ली है. बगावत की बात करने वाले विधायक का नाम नारायण त्रिपाठी है और वह सतना जिले की मैहर विधानसभा से बीजेपा विधायक हैं.अलग विंध्य प्रदेश की मांग करने वाले नारायण त्रिपाठी ने नई पार्टी की घोषणा करते हुए कहा कि अब उनकी पार्टी विंध्य में अलग तरह से चुनाव लड़ेगी. नारायण त्रिपाठी ने कहा कि विंध्य के लोग तैयार हो जाएं, मन बना लें और पूरी तैयारी कर ले. अब विंध्य प्रदेश अपने दल से चुनाव लड़ेगा. उन्होंने नया नारा दिया है कि ’तुम मुझे 30 दो, मैं तुम्हें 2024 में विंध्य प्रदेश दूंगा’.

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