Group Captain Varun Singh Last Rites: वो तकरीबन मेरी ट्रेन का टाइम हो ही गया था. जब मैं घर से बैग लेकर नीचे उतर रहा था. तभी ऑफिस का फोन बजा. सर,  वरुण  सिंह की अंत्येष्टि कल भोपाल में होने की खबर आ रही है जरा पता करिये ना. बस फिर क्या था चलती गाड़ी में बैठते ही इनर कोर्ट में रहने वाले कर्नल केपी सिंह पडोसी को फोन लगाया ही था कि उन्होंने फोन उठाते ही कहा आपने सही सुना, कल सब यहीं आ रहे हैं, और अंत्येष्टि परसों होगी. अगला फोन कलेक्टर भोपाल को था. उन्होंने भी खबर की पुष्टि की. तब तक हबीबगंज अरे नहीं रानी कमलापति स्टेशन का गेट आ गया था. मैंने गाड़ी मुड़वायी और वापस घर आ गया. आॉफिस को ये खबर बतायी तो अगले दो दिन मुस्तैदी से तैनात रहने का आर्ड़र मिल गया.


अगले दिन यानिकी गुरुवार को दोपहर दो बजे से मीडिया तैनात था. भोपाल के पुराने एयरपोर्ट के कार्गो के गेट पर जहां से विशेष विमान से गु्रप कैप्टन वरुण सिंह की पार्थिव देह आने वाली थी. भोपाल के ईएमई सेंटर और एयरफोर्स के ढेर सारे अफसरों के अलावा भोपाल के प्रशासनिक अफसरों की भीड़ के बीच जब काले ताबूत में रखी वरुण सिंह का पार्थिव देह आयी तो थोड़ी देर पहले तक जगह बनाने के लिये धक्का मुक्की कर रहे मीड़िया के कैमरे सन्नाटे में हो गये. दो टेबलों को जोड़ कर बने अस्थायी मंच पर काले ताबूत पर सफेद कागज की बड़ी पर्ची लगी थी ग्रुप कैप्टन वरूण सिंह शौर्य चक्र फिर उनका सर्विस नंबर 27987 एएफपी. ताबूत के पास ही थी वरुण सिंह की बोलती हुई तस्वीर. ताबूत के ऊपर उनका कैप और बैच भी रखे गये. इस ताबूत के पास ही गमगीन खड़ा था वीर सैनिक का परिवार. पिता केपी सिंह, मां, वरूण की पत्नी दो छोटे बच्चे और भाई तनुज सिंह. सब उदास गमगीन ऐसा लगता था कि आंसू सबकी आंखों में सूख गये थे. सच में आठ तारीख के हेलीकॉप्टर हादसे में जख्मी होने के बाद से अगले आठ दिन तक वरूण ने मौत को हराया. वरना जलते हेलिकॉप्टर से कोई जिंदा बचता है क्या. केपी सिंह ने कहा भी कि वो तो फाइटर था. आठ दिन लड़ता रहा मौत से. उसकी इस जिजीविषा पर डॉक्टर भी हैरान थे. मगर भगवान को शायद ये मंजूर नहीं था और वो हमारे बीच नहीं रहा.


सन सिटी इनर कोर्ट लाया गया वरूण सिंह का शव


रीथ रिंग सेरेमनी यानिकी फूलों के गोल चक्र को ताबूत पर चढाकर सम्मान देने के बाद वरूण की देह को सेना के सजे ट्रक में रख कर उनके घर सन सिटी इनर कोर्ट तक लाया गया. रास्ते भर लोग खड़े थे अपने वीर सैनिक के दर्शन करने के लिये. किसी के हाथ में फूल थे तो कोई हाथ जोड़कर ही खड़ा था. अपार्टमेंट में ले जाने से पहले वरूण की बहन दिव्या ने उस ताबूत की आरती उतार कर टीका लगाया ठीक वैसा ही जैसा किसी सैनिक के मोर्चे पर जाने से पहले और लौट कर आने पर घर के लोग करते हैं. पूरे परिसर में जगह जगह वरूण के पोस्टर ही लगे थे. लोग दुख और गम से भरे थे. अधिकतर लोग इस बात से हैरान थे कि उनको मालुम ही नहीं कि इस कैंपस में ऐसा वीर परिवार रहता है जिसके पिता आर्मी तो एक बेटा एयरफोर्स और एक नेवी में था. और जब ये बात मालूम चली तो शौर्य चक्र विजेता वरूण सिंह उनके बीच नहीं रहे.


अगला दिन और दुख भरा था. बैरागढ़ के श्मशान घाट पर ठीक ग्यारह बजे वरूण सिह का शव सजे हुए ट्रक से आ चुका था. यहां पर भी एक बार फिर से रीथ रिंग सेरेमनी हुए ये शहीद जवान को अंतिम विदाई देने का क्षण था. वरूण के साथी पायलट दूर दूर से बहादुर दोस्त को आखिरी सैल्यूट करने आये थे. सबकी आंखें नम थीं. सबके पास अपने साथी को लेकर ढेर सारी बातें और किस्से थे जो रह रहकर याद आ रहीं थे. मगर देश को अपना सर्वोच्च बलिदान देकर वरूण तो अपने साथियों को बहुत पीछे छोड़़कर निकल गया था. श्मशान घाट के शेड़ में जब वरूण का शव गोकाष्ट से सजी चिता पर रखा गया. तो माहौल और भावुक हो उठा. भारत माता की जय और जब तक सूरज चांद रहेगा वरूण तेरा नाम रहेगा के बीच जैसे ही वरूण के भाई तनुज और उनके बेटे ने चिता को मुखाग्नि दी तो अब तक आंखों में आंसू रोक कर खड़े वरूण के परिजन के सब्र का बांध टूट पड़ा. पिता केपी सिंह मां उमा, पत्नी गीतांजलि के आंसू छलक उठे. थोड़ी देर बाद ही तनुज भी अपने को रोक ना सके और चिता के करीब बैठकर ही फफक पड़े.


देश ने खोया अपना वीर सैनिक


सच है देश ने वीर सैनिक को खोया मगर इस बहादुर परिवार ने तो बेटा पति भाई और पिता खोया है. इस कमी को कोई भी पूरा कभी नहीं कर सकता ये वहां मौजूद हर शख्स जानता था. मगर सेना का परिवार किसी धातु का बना होता है ये पता मुझे तब चला जब उनके पिता ने अंत्येष्टि के बाद मुझसे कहा कि हम भी आंसू बहा सकते हैं मगर क्यों बहाये ये हमारे लिये गर्व का विषय है. इस घड़ी में पूरा देश जिस तरीके से हमारे साथ खंड़ा हुआ है वो अविस्मरणीय है. वो हर हाल में फायटर पायलट ही बनना चाहता था अपने औसत नंबरों के बाद भी वो पायलट ही बना. जब भी चुनौती आई ड़टकर मुकाबला किया. तेजस जब बिगड़़ा तो उसे छोड़कर निकला नहीं बल्कि काबू में कर नीचे उतारा. वो अपने साथी पायलटों में सबसे तेज था इसलिए सबसे पहले आगे निकल गया, हम सबको छोड़़कर मगर हमारे बीच वो हमेशा रहेगा दूसरे जांबाज पायलटों के रूप में. इसलिये दुखी मत होई ये गौरव का पल है. इतना कह कर उनकी आंखें नम हो उठीं. बात खत्म होते ही मैंने भी उस वीर पिता के चरणों में अपना सर झुका दिया.


ये भी पढ़ें :-


17 दिसंबर को भोपाल में होगा ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का अंतिम संस्कार, कल लाया जाएगा पार्थिव शरीर


Indore News: कैलाश विजयवर्गीय का विवादित बयान, कहा- 'कोई भी इंसान धर्मनिरपेक्ष नहीं, जो धर्मनिरपेक्ष है वह जानवर है'