Navratri 2023: राजगढ़ जिले में आने वाले कलेक्टर हो या एसपी, उन्हें अपने दफ्तर में कमान संभालने से पहले मां जालपा (Mata Jalpa) के दरबार में हाजिरी लगानी होती है. मां जालपा के मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर नौ दिनों तक लाखों की तादाद में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है कि माता भी सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करती हैं.


दंत कथाओं के अनुसार 16वीं शताब्दी में भील राजाओं ने राजगढ़ से छह किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ पर माता जालपा की स्थापना की थी. तब पेड़ के नीचे माता की मढ़िया की स्थापना की गई थी, जो अब यहां भव्य मंदिर का रूप धारण कर चुका है. नवरात्रि पर्व में यहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है. लाखों की तादाद में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए राजगढ़ सहित आसपास के जिलों से आते हैं. 


झुंझुनूपुर से बना राजगढ़


दंत कथाओं के अनुसार 16वीं सदी में राजगढ़ को झुंझुनूपुर के नाम से जाना जाता था. कोई कहता है कि मां जालपा देवी की मूर्ति स्वयं जमीन से प्रकट हुई थी. वहीं, कुछ लोग कहते हैं कि 16वीं शताब्दी में यहां भील राजाओं का राज हुआ करता था. उस समय भील राजाओं ने अपनी कुलदेवी के रूप में मां जालपा की स्थापना की थी.


अब से 37 साल पहले भी यहां मंदिर के नाम पर सिर्फ एक चबूतरा ही था. एक पेड़ के नीचे मां जालपा विराजमान थीं. धीरे-धीरे यहां श्रद्धालुओं के आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ. लोगों की मनोकामनाएं पूरी हुई और यह स्थान आस्था का केन्द्र बनता चला गया. इसके साथ ही माता के इस चबूतरे ने भव्य मंदिर का रूप ले लिया.


ट्रस्ट के संरक्षक हैं कलेक्टर 


मंदिर की ख्याति बढ़ने के बाद जिला प्रशासन की ओर से मंदिर का ट्रस्ट बना दिया गया, जिसके संरक्षक स्वयं कलेक्टर हैं. बाद में मंदिर परिसर में विकास कार्य शुरू किया गया. पहाड़ी तक पहुंचने के लिए सुगम रास्ता बनाया गया. मंदिर परिसर में ही संतों के रुकने की व्यवस्था की गई. अब यहां नवरात्रि में नौ दिनों तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. 


पत्थर रख मांगते हैं मुराद


बताया जाता है कि जिनके घर नहीं है, या जो किराए के मकानों में रहते हैं. ऐसे श्रद्धालु यहां पत्थर रखकर माता से अपने घरों के लिए प्रार्थना करते हैं. मान्यता है कि माता ऐसे श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करती हैं. वहीं, उल्टा स्वास्तिक बनाकर भी श्रद्धालु माता से मनोकामना पूरी करने की अर्जी लगाते हैं. मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालुओं की ओर से उल्टे स्वास्तिक को सीधा कर दिया जाता है.


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